#MNN@24X7 पिछली शताब्दी में पक्षी की लगातार गिरावट और विलुप्त होने के कगार पर गौरैया के अचानक गायब होने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पिछले 14 वर्षों से 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। पक्षी वैज्ञानिक सूर्यकांत खंदारे कई वर्षों से इस विश्व गौरैया दिवस को तत्काल बंद करने की मांग कर रहे हैं।
पक्षी वैज्ञानिक सूर्यकांत खंदारे आगे इस बारे में बात करते हैं, परंपरागत ज्ञान के आधार पर गौरैया की संख्या में गिरावट के कई कारण दिए जाते हैं, जैसे घटते जंगल, तेजी से शहरीकरण, मोबाइल टावरों से विकिरण, ध्वनि प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण आदि। पक्षी वैज्ञानिक सूर्यकांत खंदारे विलाप करते हैं कि गौरैया को गलत तरीके से देखा गया। जहाँ तक गौरैया की गिनती का सवाल है, कई गलत या अधूरी टिप्पणियों को दर्ज किया गया है, उदा लखनऊ में 2015 की पक्षी जनगणना में, 5692 गौरैया दर्ज की गईं और 775 गौरैया के झुंड विभिन्न स्थानों पर दर्ज किए गए, जबकि 2017 में तिरुवनंतपुरम में केवल 29 गौरैया दर्ज की गईं, आंध्र प्रदेश में गौरैया की संख्या में 80% और राजस्थान, गुजरात, केरल में 20% की कमी आई है। यह डेटा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा दर्ज किया गया है। इस प्रवृत्ति के कारण, गौरैया को पंजाब में विलुप्त होने के कगार पर दर्ज किया गया था। मनुष्य लाखों जीवित प्रजातियों में से एक प्रजाति है, प्रकृति के इस जीवनचक्र में मनुष्य स्वामी बनने की कोशिश कर रहा है।
कुछ लोग यह दिखाना उचित समझते हैं कि मेरे प्रयास के कारण ही प्रकृतिक स्थिरता संभव है। इस बारे में पक्षी विज्ञानिक सूर्यकांत खंदारे का कहना है कि गर्मी आते ही पक्षियों को खिलाने- पिलाने वालों की संख्या अचानक से बढ़ जाती है, लेकिन उनकी इसी गतिविधि के कारण प्रकृति के लिए खतरनाक पक्षी की एक नई प्रजाति पैदा हो जाती है और उनके अनुसार ऐसे पक्षी होंगे मानव अश्रित या मानवी खाद्य पर निर्भर परवलंबी इन्हें कहा जाता है आकाश के चुहे। प्रकृति का सबसे अच्छा इंजीनियर गौरैया है जो बिना किसी शैक्षिक योग्यता के स्वर्गीय प्रकृति का घोंसला बनाती है, लेकिन कुछ लोग पक्षियों के जीवित रहने की क्षमता पर संदेह करते हैं, यही वजह है कि मानव निर्मित घोंसले बनाने शुरू हो गए हैं।
पक्षी शोधकर्ता सूर्यकांत खंदारे अपने शोध कार्य के बारे में कहते हैं कि विश्व स्तर पर पक्षी जीवन पूरी तरह से बदल गया है, भारत में सैकड़ों साल पहले की प्राकृतिक जीवन शैली के आधार पर पक्षी संरक्षण किया जा रहा है, इसलिए पक्षी जगत में हुए परिवर्तनों का अध्ययन किए बिना पक्षी संरक्षण किया जा रहा है। पारंपरिक तरीके इस प्रकार प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। पक्षी के परंपरागत ज्ञान के आधार पर विश्व गौरैया दिवस मनाने वाले स्वयंभू पक्षी पालक इस दिन का मुख्य उद्देश्य यह दिखाने के लिए करते हैं कि एक दूसरे का काम कितना महान है।
लेकिन ओर्णीथोलॉजी रिसर्च सेंटर द्वारा कराए गए शोध में गौरैया की आबादी अच्छी स्थिति में दर्ज की गई। दरअसल ज़िला कितना भी छोटा क्यों न हो, 5 अंकीय चिमनियों का आवास न्यूनतम है।गौरैया खत्म नहीं हुई तो बस अधिवास बदली हैं।विश्व गौरैया दिवस गलत आंकड़े दिखाकर मनाया जाता है। पक्षी खंदारे सूर्यकांत खंदारे विश्व गौरैया दिवस को तत्काल रद्द करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय में लगातार फॉलोअप कर रहे हैं, क्योंकि गौरैया संरक्षण के लिए कोई वैज्ञानिक विचार नहीं है।(साभार)