शहीद सूरज नारायण सिंह की हत्या से ही जयप्रकाश ने 74 में सत्ता परिवर्तन की शुरुआत की।
आज दिनांक 21 अप्रैल 2022
दरभंगा। महाराणा प्रताप महाविद्यालय लहरिया सराय परिसर में शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच की ओर से स्मृति दिवस मनाया गया, जिसकी अध्यक्षता शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच के अध्यक्ष डॉ अशोक कुमार सिंह ने की।
शहीद सूरज नारायण सिंह के स्मृति में आयोजित सभा में सूरज बाबू के फोटो पर सूरज नारायण सिंह विचार मंच के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक कुमार सिंह, कार्यक्रम के संयोजक नवनीत कुमार सिंह उर्फ बिजली सिंह, समाजसेवी अरुण कुमार सिंह, राजेश्वर सिंह राणा, निशांत कुमार सिंह उर्फ प्रिंस, अनिल सिंह, भीम आर्मी के नेता बिट्टू पासवान, शरद कुमार सिंह, ऋषभ सिंह, चंदन चौधरी, आदि ने पुष्पांजलि अर्पित करते हुए श्रद्धांजलि दी।
स्मृति सभा को संबोधित करते हुए शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच के अध्यक्ष डॉ अशोक कुमार सिंह ने कहा कि मधुबनी जिला के नरपति नगर गांव में 17 मई 7 को एक निर्भीक, क्रांतिकारी, समाजवादी देशभक्त का जन्म हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय गंगा सिंह एक संभ्रांत जमींदार थे। सूरज बाबू स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने से लेकर किसान और मजदूरों के हित एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए जीवन पर्यंत समर्पित रहे। उन्होंने जिस आजाद भारत का सपना देखा था, वह अभी कोसों दूर है। वह समतामूलक समाज का सपना देखा था, जहां आर्थिक गैर बराबरी के लिए कोई स्थान ना हो।
उनका विचार था कि जब तक ग्रामीण जनता की आर्थिक सामाजिक दशा में सुधार नहीं होगा, उन्हें विकास का उचित अवसर नहीं मिलेगा। भारत के सर्वांगीण विकास संभव नहीं हो सकेगा। सूरज बाबू कम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी मजदूर और किसानों के हित के अलावा शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका रही। उन्होंने अनेक विद्यालयों की स्थापना में अपना योगदान दिया। क्रांतिकारी स्वभाव एवं देश को आजाद करने का जज्बा के कारण 14 साल की उम्र में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उनका नाम स्कूल से काट दिया गया तो 1921 में हुआ अपनी शिक्षा पूरी करने बनारस के काशी विद्यापीठ पहुंचे। इसी बीच वे भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त आदि को ट्रेनिंग देने वाले मुजफ्फरपुर के क्रांतिकारी से योगेंद्र शुक्ल के संपर्क में आए। 1931 में भगत सिंह के फांसी के सजा ने उनकी जीवन रेखा बदल दी। वह सब कुछ छोड़कर क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त हो गए। सैकड़ों लोगों को अपने साथ जोड़ा और दर्जनों मामले में उनका नाम आया। इसी बीच हुआ जयप्रकाश नारायण से जुड़ गए। द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सेनाओं के भर्ती के खिलाफ प्रोटेस्ट के अपराध जेपी के साथ गिरफ्तार हुए और हजारीबाग जेल भेज दिया गया ।वहां जाकर भी आंदोलन नहीं थमा। वहां के व्यवस्था के खिलाफ 21 दिनों तक अनशन किया। 1942 में जब गांधी जी ने क्विट इंडिया मूवमेंट शुरू किया तो इन लोगों ने निर्णय लिया कि अब जेल में नहीं रह सकते। सूरज बाबू ने जेपी से कहा जेपी अभी आपके कुशल नेतृत्व की जरूरत है देश को ।जेपी को भी इसके प्रस्ताव के सामने समझौता करना पड़ा और जेल से भागने का प्लानिंग की गई 9 नवंबर दीपावली की रात जयप्रकाश नारायण, पंडित राम नंदन मिश्र, योगेंद्र शुक्ला ,गुलाब चंद्र गुप्ता, शालिग्राम सिंह और सूरज नारायण सिंह जेल के दीवार फांद गए। शहीद सूरज नारायण सिंह शरीर से इतने ताकतवर थे कि जयप्रकाश नारायण और पंडित राम नंदन मिश्र को अपने कंधे पर लेकर साथियों के सहयोग से दीवार फांद गए।
मई 1943 में पुलिस ने नेपाल से जेपी ,लोहिया, श्यामनंदन, कार्तिक प्रसाद ,बृज किशोर सिंह बैजनाथ झा आदि को गिरफ्तार कर लिया और हनुमान नगर थाने ले गई। सूरज नारायण सिंह को खबर हुई।जेपी के रक्षक बनकर वह दूसरी बार भी जेल से उन्हें भगाने आए। 50 के करीब सशस्त्र क्रांतिकारियों के साथ उन्होंने थाने पर हमला कर दिया और सभी गिरफ्तार ओ को छुड़ा लिया। आजादी के बाद सूरज नारायण सिंहने अपना अधिकतम समय किसान और मजदूरों के आंदोलन को दिया। हिंद मजदूर सभा के अध्यक्ष के रूप में मजदूरों के हक के लिए लड़ने लगे। सन 1973 में सूरज नारायण सिंह के नेतृत्व में रांची के उषा मार्टिन कंपनी के मजदूरों ने अपने वाजिब मांगों के लिए हड़ताल कर दी ।आंदोलन को दबाने के लिए मौजूदा कांग्रेस सरकार ने उषा मार्टिन कंपनी के साथ मिलकर वहां के अपनी एक पैकेट यूनियन के द्वारा अव्यवस्था फैलाने की साजिश रची। लेकिन
सूरज नारायण सिंह के लोकप्रियता के सामने किसकी चलती सामने किसी की न चली। 14 अप्रैल में 1973 को मजदूरों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। लोकल एडमिनिस्ट्रेशन एवं कंपनी के प्रबंधन मजबूर होकर टेबल टॉक के लिए तैयार हुआ। सूरज नारायण सिंह वार्ता में गए तभी मजदूरों पर पुलिस और गुंडों ने अचानक बर्बर हमला कर दिया ,पता चलते ही सूरज बाबू दौड़े । उन्हें पुलिस ने बुरी तरह पीटा। हमले में बाबू सूरज नारायण सिंहगंभीर रूप से जख्मी हुए ।उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन इतनी गहरी चोट आई थी कि उनकी अस्पताल में ही 21 अप्रैल में 1973 को मौत हो गई। 21 अप्रैल में 1973 को उनके मौत के बाद पटना बांस घाट में जेपी उनके शव से लिपट कर फूट-फूटकर रोए। रोते हुए वह कह रहे थे कि आज मेरा दाया हाथ चला गया । मैं इतना अकेला मेरी पत्नी प्रभावती के मौत के बाद भी महसूस नहीं किया था और कहा अंग्रेज की सेना भी सूरज बाबू को नहीं मार सका लेकिन कांग्रेसी गुंडों ने मिलकर सूरज बाबू की हत्या कर दी। विचलित जे पी ने 1974 में एक बड़ा आंदोलन देश में खड़ा कर दिया सूरज बाबू की हत्या से ही सत्ता परिवर्तन की शुरुआत हुई। बिहार सरकार और भारत सरकार से शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच मांग करती है कि सूरज नारायण सिंह के नाम पर सामाजिक शोध संस्थान की स्थापना हो इससे आने वाली पीढ़ी सूरज बाबू की इतिहास को पढ़कर देश की एकता और अखंडता समतामूलक समाज के आदि पाठ पढ़ सकें।
कार्यक्रम के संयोजक नवनीत कुमार सिंह उर्फ बिजली सिंह ने कहा सूरज बाबू जैसे महान क्रांतिकारी, देशभक्त की जीवनी युवाओं के पाठ्यक्रम में आनी चाहिए। उन्होंने किसान और मजदूर के नेता शहीद सूरज नारायण सिंह के स्मृति में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में एक चेयर की स्थापना और उनके आदम कद प्रतिमा दरभंगा शहर में लगाने की मांग की।
शहीद सूरज नारायण सिंह विचार मंच भारत सरकार और बिहार सरकार से मांग करती है कि क्रांतिकारी देशभक्त सही सूरज नारायण सिंह को भारत रत्न मिले।इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक नवनीत कुमार सिंह उर्फ बिजली सिंह, राजेश्वर सिंह राणा सुधीर कुमार सिंह, अनिल सिंह दिनेश सिंह अरुण कुमार सिंह निशांत कुमार सिंह प्रिंस, मनमोहन सिंह मनीष सिंह शरद कुमार सिंह आदि ने संबोधित करते हुए पुष्पांजलि अर्पित की। भीम आर्मी के नेता बिट्टू पासवान ने कहा शहीद सूरज बाबू दलित और दलित मजदूर और किसान के मसीहा थे।अंत में राष्ट्रगान के साथ स्मृति सभा की समाप्ति की गई।