-बीएड (नियमित) विभाग में दीक्षारंभ-सह-वर्गारंभ समारोह का हुआ आयोजन।
-अच्छा इंसान ही बेहतर शिक्षक बन सकते हैं : प्रो. डॉली सिन्हा।।
-छात्रों के अध्ययन के मकसद को पूरा कराना शिक्षकों का कर्तव्य: कुलसचिव।
#MNN@24X7 दरभंगा, शिक्षकों की भूमिका दाता के रूप में होनी चाहिए। शिक्षको को निरंतर अपनी सामर्थ्य में बढ़ोत्तरी करते रहना चाहिए और इसके लिए स्वाध्याय ही एकमात्र रास्ता है। कविगुरु रविन्द्रनाथ टैगोर को उद्धृत करते हुए कहा कि जिस दीये (शिक्षक) में जितना तेल (ज्ञान) होगा वही दूसरे दीये (छात्र) को उतना प्रकाश (ज्ञान) दे पाएगा।
उक्त बातें विश्वविद्यालय परिसर स्थित जुबली हॉल में बी.एड. (नियमित) विभाग की ओर से मंगलवार को सत्र 2023-25 एवं 2022-24 के छात्रों के लिए आयोजित दीक्षारंभ-सह-वर्गारंभ समारोह को संबोधित करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कही।
कुलपति ने कहा कि दीक्षारंभ की शुरुआत ऋग्वेद कालीन शिक्षा से होती है। ऋग्वेद काल में आश्रम में गुरुओं द्वारा शिक्षा देने की व्यवस्था थी। गुरु का मकसद पहले दिन दीक्षारंभ में छात्रों को अनुभव देना एवं अनुभूतियों को जागृत करना होता था। आजकल जिसे एक्सपेरिएंशिअल लर्निंग (अनुभव जन्य शिक्षा) कहते हैं। शिक्षकों के लिए छात्रों के अवलोकन में खरा उतरना ही बड़ी चुनौती है।
उन्होंने कहा कि ‘चलता है’ कार्य प्रणाली से काम नहीं चलेगा। जिम कॉलिंस की ‘गुड टु ग्रेट’ का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रारंभ से ही अपने आपको पायदान पर ऊपर रखना एवं सोचना होगा। ल. ना. मिथिला विश्वविद्यालय ने लगातार चार वर्षों से सीईटी-बीएड की परीक्षा और नामांकन का कार्य पूरी पारदर्शिता के साथ पूरा किया है। आप सब अपनी काबिलियत की बदौलत बीएड (नियमित) विभाग में नामांकन लिया है। शिक्षकों का कार्य समाज का निर्माण करना है। इसके लिए आप सभी संकल्पित हों। इसलिए आप सभी नवोदित छात्रों का सफर ‘अच्छा से महानता’ की ओर होना चाहिए। आपकी दिशा हमेशा ऊंचाई की तरफ होनी चाहिए। मैं आप सभी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।
प्रति-कुलपति प्रो. डॉली सिन्हा ने संबोधित करते हुए कहा कि यूजीसी ने भी दीक्षारंभ पर काफी जोर दिया है। दीक्षारंभ के माध्यम से छात्रों को अपने विभाग को जानने का अवसर प्राप्त होता है। शिक्षा से ही जीवन में बदलाव आ सकता है। शिक्षकों को खुला विचार का होना चाहिए। अच्छे इंसान के बिना बेहतर शिक्षक नहीं बन सकते हैं।
उन्होंने ज्योतिबा फुले एवं सावित्री बाई की समावेशी शिक्षा, स्वामी विवेकानन्द की चरित्र निर्माण की शिक्षा, महात्मा गाँधी की चरित्र के साथ कर्म की शिक्षा एवं रविंद्रनाथ टैगोर की शिक्षा की व्यापक अवधारणा की चर्चा की। शिक्षकों को शिक्षा के नए दौर में छात्रों का चरित्र निर्माण,जीवनयापन, समावेशी शिक्षा और शिक्षा को प्रकृति से जोड़ने पर जोर देना होगा। उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2023 में ‘आनंद के साथ पढ़ना’ और सीखाने पर जोर दिया गया है।
कुलसचिव डॉ. अजय कुमार पंडित ने कहा कि उत्कृष्ठ नागरिक ही बेहतर देश का निर्माण करता है। शिक्षक शिक्षा के माध्यम से संपूर्ण नागरिक का निर्णाण कर सकते हैं। छात्रों के अध्ययन का मकसद को पूरा कराना शिक्षकों का कर्तव्य है। शिक्षा से ही समाज में बदलाव लाता है। शिक्षा के माध्यम से समाज में फैले असमानता को समझा जा सकता है एवं उसे दूर करने का प्रयास किया जा सकता है।
दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. हरेकृष्ण सिंह ने कहा कि शिक्षा गंगोत्री है। शिक्षा से ही विकास की धारा निकलती है। शिक्षक उसकी पतवार है। शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी निभानी है। साथ ही उन्होंने सभी का धन्यवाद ज्ञापन भी किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में बीएड (नियमित) विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार मिलन ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए छात्र-छात्राओं से कहा कि यह विभाग आपको चिंतन करने, प्रश्न करने का मौका देगा। यह विभाग प्रश्न पूछना छात्रों का मौलिक अधिकार मानता है तथा उनके संतोषप्रद जवाब देना शिक्षक का मौलिक कर्तव्य। विभाग में आनेवाला दो वर्ष आपका आनंदमय बीते इसकी मैं कामना करता हूँ। मंच का संचालन डॉ. निधि वत्स ने किया। द्वितीय वर्ष के छात्र-छात्राओं ने स्वागत गान किया। दीक्षारंभ-सह-वर्गारंभ समारोह में डॉ. शुभ्रा, डॉ. कुमारी स्वर्णरेखा, उदय कुमार, डॉ. मिर्जा रुहुल्लाह बेग, कुमार सत्यम, गोविंद कुमार, डॉ. जय शंकर सिंह, डॉ. रेशमा तबस्सुम, प्रसेनजित रॉय, डॉ. बबिता रानी, सुनील कुमार गुप्ता, राजू कुमार और विभाग के शिक्षकेत्तर कर्मी एवं बी.एड. द्वितीय एवं प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।