उन्होंने कहा कि – राष्ट्रवाद से जुड़े सभी विषय साहित्य का हिस्सा हो।
तीन दिवसीय चन्द्रगुप्त साहित्य महोत्सव का संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में हुआ उद्घाटन।
#MNN@24X7 दरभंगा, बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति माननीय राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने शुक्रवार को दरभंगा में कहा कि उन सभी विषयों को साहित्य में शामिल करने की जरूरत है जो राष्ट्रवाद व समाज हित पर केंद्रित हो। सिर्फ हिंदी में ही नहीं बल्कि इसके लिए तमाम उन भाषाओं को भी इसमें जगह मिले जिसमे ऐसी गतिविधियां लिखित या किसी भी माध्यम से प्रदर्शित की जा रही हो। इसके लिए उन्होंने दूसरी भाषाओं के साहित्य को भी पढ़ने व समझने की वकालत की। कहा कि वहां क्या हो रहा है उसे भी जानने की दरकार है।
उन्होंने मिथिला की धरती को श्रेष्ठ व संवृद्ध बताया। संस्कृत विश्वविद्यालय के खेल मैदान में आयोजित त्रिदिवसीय चन्द्रगुप्त साहित्य महोत्सव का उद्घाटन करने के बाद उपस्थित कुलपतियों, राष्ट्रीय स्वयं सेवक के विभिन्न स्तर के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं ,लेकिन शिक्षकों, शोधर्थियों, छत्रों व आयोजकों को सम्बोधित करते हुए माननीय कुलाधिपति ने उक्त बातें कही।
उन्होंने कहा कि उत्सव व उत्साह मिलकर महोत्सव को सफल बनाते हैं। इस महोत्सव में काफी गूढ़ विषयों पर चिंतन, मंथन व मनन होने वाला है जो अच्छी बात है। तीन दिनों में जिन गम्भीर विषयों पर चिंतन मंथन होगा उसके फलाफल को पुस्तक के आकार में भी समाज के सामने लाने की जरूरत है। समाज के लिए कुछ नवनीत करके जाएंगे तभी महोत्सव की असली सफलता मानी जायेगी। इसी क्रम में उन्होंने महोत्सव के आयोजकों के लिए एक टास्क भी दिया। कहा कि आने वाले समय मे मुझे क्या करना है यानी समाज किस ओर जाए और वह भी कैसे। भविष्य का चिंतन प्रवाह किस ओर जाएगा इस पर महोत्सव में मुख्य फोकस देने की जरूरत है। राष्ट्रवाद व राष्ट्रीय एकता मुख्य परिधि में होनी चाहिए। उन्होंने जयपुर लिटरेरी फेस्टीवल की भी याद दिलाई। जहां भारत विरोधी गतिविधियों की ही बातें की जाती है। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि साहित्यिक दर्जा किसे मिले इस पर गहन विचार की जरूरत है। राष्ट्रवादी विचार धाराएं कैसे आगे आएंगी, इस पर भी चिंतन होना चाहिए।
उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि महामहिम ने फ़िल्म, सिनेमा, नाटक, उपन्यास, कविता, यहां तक कि कहानी श्रुति के उन सभी विषयों को साहित्य में शामिल करने का पुरजोर समर्थन किया जो राष्ट्र हित व समाज हित पर आधारित हो। इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र साहित्य सम्मेलन की प्रशंसा की। कहा कि ऐसा कार्यक्रम सभी राज्यों में सभी जगहों पर होनी चाहिए। उन्होंने चन्द्रगुप्त साहित्य महोसत्व के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि वे काफी आशान्वित हैं कि कार्यक्रम में अन्य गहन विषयों पर चर्चा होगी जिससे समाज को एक नई दिशा मिलेगी। इसके पूर्व उन्होंने मंच साझा कर रहे आयोजन समिति के स्वागताध्यक्ष युवराज कपिलेश्वर सिंह को धन्यवाद दिया एवं भारतीय संस्कृति व सभ्यता की रक्षा के लिए उनके पुरखों द्वारा किये गए पुनीत कार्यों की भी मुक्तकंठ से प्रशंसा की। उद्घाटन सत्र को युवराज कपिलेश्वर सिंह, साहित्य अकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष डॉ कुमुद शर्मा, कार्यक्रम के संयोजक राजेन्द्र गुप्ता, नरेंद्र ठाकुर ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय पिछले कई दिनों से विशेष सक्रिय रहे। एलएन मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ संजय कुमार चौधरी ने भी अपनी गरिमामय भागीदारी निभाई। कार्यक्रम में बिहार के अधिकांश विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने भाग लिया।
विशेष सक्रिय रहे स्वागत समिति के सदस्य
कार्यक्रम को सफल बनाने व अन्य व्यवस्थाओं के लिए कुलपति प्रो0 पांडेय के निर्देशन में गठित
आठ सदस्यीय सहयोग समिति के सभी सदस्य
अध्यक्ष छात्र कल्याण डॉ० शिवलोचन झा, कुलसचिव प्रो. ब्रजेशपति त्रिपाठी, परीक्षा नियंत्रक डॉ मुकेश कुमार झा,विकास पदाधिकारी डॉ पवन कुमार झा,सहायक प्राचार्य डॉ० रामसेवक झा , सी.सी.डी.सी. डॉ० दिनेश झा, भू-सम्पदा पदाधिकारी डॉ उमेश झा तथा विधि पदाधिकारी डॉ कृष्मणानन्द मिश्र आज विशेष सक्रिय रहे। किसी को कोई परेशानी न हो इसका भरपूर ख्याल रखा गया। कुलसचिव प्रो0 त्रिपाठी पूरा वक्त गतिशील रहे। वहीं कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ सुधीर कुमार झा के नेतृत्व में एनएसएस स्वयंसेवकों ने भी व्यवस्था में
सहयोग किय