कहा – अहिल्या सरीखी संस्कृत को सजीव बनाने की जरूरत।

सामुदायिक भावना को विकसित करने का आह्वान,
सफाईकर्मी में भी देखें मातृ गुण।

संस्कृत सम्भाषण पर दिया जोर, स्वयं सेवकों को किया प्रोत्साहित।

योग, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता विषय पर आयोजित विशेष शिविर का हुआ उद्घाटन।

#MNN@24X7 दरभंगा, संस्कृत विश्वविद्यालय के बहुउद्देश्यीय भवन में शिक्षा शास्त्र विभाग की एनएसएस इकाई द्वारा योग, स्वास्थ्य व स्वच्छता विषय पर गुरुवार को आयोजित विशेष शिविर को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा कि यूं तो सभी भाषाएं अच्छी होती हैं लेकिन संस्कृत उसमें से कई मामलों में अलग है। इस भाषा के छात्र अध्यात्म व धर्म के ज्यादा करीब रहते हैं। ये संस्कार व संस्कृति के वाहक होते हैं। सामाजिक सरोकारों से इसका सीधा जुड़ाव रहता है। आचार-विचार व नीति सिद्धान्त के ये पोषक होते हैं। इनकी मानसिक स्थिति मजबूत होती है। शायद यही कारण है कि संस्कृत के छात्र कभी आतंकवादी नहीं बनते हैं। यह हमसभी के लिये गौरव की बात है।

स्वयं सेवकों को किया प्रोत्साहित

उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि कुलपति प्रो0 पांडेय ने स्वयं सेवकों को काफी प्रोत्साहित किया और खुद में व समाज मे सामुदायिक भावना को विकसित करने को कहा। कुलपति ने कहा कि एक तो आप सभी संस्कृत के छात्र हैं और एनएसएस के स्वयं सेवक भी हैं। इसलिए आपसभी पर समाजिकता व राष्ट्रीयता की बड़ी व दोहरी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि यहां से डिग्री हासिल कर आप जहां कहीं भी जाएं तो संस्कृत व संस्कृति की रक्षा के लिए सदैव सचेष्ट रहेंगे, यही आप से उम्मीद है।

स्वच्छता का दिया नया दर्शन

कुलपति प्रो0 पांडेय ने स्वच्छता को लेकर स्वयं सेवकों को नया दर्शन दिया। कहा कि स्वच्छता सुनने व पढ़ने में बहुत छोटा लगता है लेकिन इसकी परिधि बहुत बड़ी है। उन्होंने तन व मन की स्वच्छता पर गहराई से विचार व्यक्त किया । साथ ही, आंतरिक व बाह्य स्वच्छता को भी परिभाषित किया। इसी क्रम में कुलपति प्रो0 पांडेय ने कहा कि सफाई कर्मी भी हमारे आपके बीच के ही होते हैं। उनके प्रति सद्भाव रखिये। उनमे मातृ गुण है। इसलिए उसे उचित सम्मान दीजिये। सामुदायिकता की भावना को विकसित कर हम खुद व समाज दोनों को स्वच्छ रख सकते हैं।

कहा कि जब आप कहीं गन्दगी फैलाते हैं तो सोचना चाहिए कि हम जैसा ही कोई इसे साफ करेगा। तब क्या सफाई के प्रति आपकी सोच व नजरिया नहीं बदलेगी, इसे आत्मसात करने की जरूरत है। स्वच्छता कुछ समय के लिए नहीं बल्कि इसे सतत जारी रखने की जरूरत है। यह भी एक प्रकार का योग है। ऐसे में ही अच्छे स्वास्थ्य की परिकल्पना की जा सकती है। स्वच्छ रहने व रखने के प्रति हमेशा जागरूक रहें।

संस्कृत सम्भाषण पर दिया जोर

अपने सम्बोधन के क्रम में कुलपति संस्कृत सम्भाषण पर जोर देना नही भूले। उन्होंने कहा कि आज की संस्कृत अहिल्या बन गयी है। पूरी तरह से निर्जीव सरीखी हो गयी है। इसमें जान फुँकनी है और इस कार्य को आप सभी आगे बढ़ा सकते हैं। इस विशेष शिविर में भी आप सभी संस्कृत सम्भाषण का कार्यक्रम रखें। समाज मे जहां जाएं वहां संस्कृत में बोलें।इसे व्यवहार में लाएं। इससे माहौल परिवर्तित होगा और इस भाषा के प्रति समाज मे अनुराग भी बढ़ेगा। धीरे धीरे ही सही संस्कृत की पकड़ बढ़ेगी और इसमें सजीवता भी आ जायेगी। उन्होंने कहा कि सिर्फ सनकॉज के कारण हमसभी इस भाषा से दूर होते चले गए हैं। अब भी समय है, आइए हमसभी मिलकर इसे नए मुकाम तक पहुंचाएं। तभी हमसभी की सार्थकता भी सिद्ध होगी।

इसी क्रम में संस्कृत भारती के संगठन मंत्री श्रवण कुमार ने भी संस्कृत की उपयोगिता व प्रसांगिकता को विस्तार से समझाया। उन्होंने भी संस्कृत को बोलचाल में लाने पर बल दिया।

वहीं,शिक्षा शास्त्र विभाग के निदेशक डॉ घनश्याम मिश्र ने आगत अतिथियों का स्वागत किया और विषय प्रवर्तन करते हुए योग व स्वच्छता पर प्रकाश डाला। विश्वविद्यालय एनएसएस कार्यक्रम समन्वयक डॉ सुधीर झा ने भी 30 मई से 05 जून तक आयोजित विशेष शिविर के औचित्य व व्यापकता को समझाया। सुंदरपुर वीरा गांव का चयन किया गया है। यहीं सारी गतिविधियां सम्पन्न होंगी।

इसके पूर्व मुकेश कुमार, चित्रसेनजीत पांडेय, सुमित कुमार झा व सुशांत कुमार मिश्र समेत अन्य छात्रों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया।विभाग की छात्राओं ने स्वागत गान व कुलगीत गाया। आगत अतिथियों का धन्यवाद विभाग की शिक्षिका डॉ प्रीति रानी ने ज्ञापित किया।

कार्यक्रम में शिक्षा शास्त्र विभाग के एनएसएस समन्वयक पवन सहनी सहित अन्य शिक्षक व कर्मी संजीव कुमार, अमन राय, गोपाल कुमार महतो,अनामिका कुमारी, श्रीधर कुमार, राकेश कुमार, अरुण कुमार शर्मा के अलावा सभी छात्र भी मौजूद थे। मौके पर स्नातकोत्तर विभागों के भी अधिकांश शिक्षक उपस्थित थे।