याज्ञवल्क्य स्मृति पर राष्ट्रीय संगोष्ठी 13 को

दक्षिण व उत्तर के विद्वानों का होगा संगम

#MNN@24X7 दरभंगा, संस्कृत विश्वविद्यालय में 13 जुलाई को याज्ञवल्क्य स्मृति पर व्यवहार विचार विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जाएगी। कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय की अध्यक्षता में मुख्यालय के दरबार हॉल में आयोजित इस संगोष्ठी में पहली बार उत्तर एवं दक्षिण भारत के विद्वानों का संगम होगा और उनका विशेष व्याख्यान भी सुनने को मिलेगा। संस्कृत विश्वविद्यालय एवम सदविद्या परिपालन ट्रस्ट, चेन्नई के सामूहिक सौजन्य से होने वाले इस कार्यक्रम में उद्घाटन भाषण प्रोवीसी प्रो0 सिद्धार्थ शंकर सिंह करेंगे। विषय प्रवर्तन की जिम्मेदारी प्रो0 सुरेश्वर झा को सौंपी गई है।

उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि संगोष्ठी को लेकर कुलपति प्रो0 पांडेय एवं नवनियुक्त कुलसचिव प्रो0 ब्रजेशपति त्रिपाठी काफी संवेदनशील हैं और कार्यक्रम के संयोजक धर्म शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो0 दिलीप कुमार झा से
मंगलवार को भी इस मुत्तलिक समेकित विचार विमर्श किये।

कुलपति प्रो0 पांडेय ने कहा कि खासकर बाहर से आ रहे विद्वानों को किसी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए। वहीं कुलसचिव प्रो0 त्रिपाठी ने कहा कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों में संगोष्ठी, कार्यशाला व सम्भाषण कार्यक्रम आयोजित होने से सभी स्तरों में बौद्धिक वृद्धि होती है। ऐसा आयोजन बीच बीच मे होते रहना चाहिए।

मालूम हो कि प्रथम सत्र के संयोजक दर्शन विभाग के प्रध्यापक डॉ धीरज कुमार पांडेय तथा द्वितीय व समापन सत्र के संयोजक धर्मशास्त्र विभाग के प्रध्यापक प्रो0 पुरेन्द्र वारीक बनाये गए हैं।

आमंत्रित विद्वान जो देंगे विशेष व्याख्यान

पीआरओ ने बताया कि चार सत्रों में आयोजित इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को यादगार बनाने के लिए जिन विद्वानों को आमंत्रित किये हैं उनमें आयोजक संस्कृत विश्वविद्यालय के दो दो पूर्व कुलपति प्रो0 शशिनाथ झा एवं प्रो0 रामचन्द्र झा भी शामिल हैं। इसके अलावा सदविद्या परिपालन ट्रस्ट के सदस्य आईआईटियन श्रीकृष्णन् वेङ्कटरामन व ए. आर. मुकुन्दन आमंत्रित किये गए हैं। दोनों अतिथि विधि विशेषज्ञ के साथ साथ धर्मशास्त्र विषय के भी बड़े विद्वान हैं। इसी तरह श्रीचन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती विश्वमहाविद्यालय, इन्थॉर, तमिलनाडु के संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. आर. नवीन भी अपना व्याख्यान देंगे। इसके साथ ही
दरभंगा व्यवहार न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम डॉ रमाकांत शर्मा भी संगोष्ठी में भाग ले रहे हैं। इनकी प्राच्य विषयों में गहरी रुचि है और धर्म शास्त्र से खासा लगाव है। वहीं, अन्य आमंत्रित विद्वानों में
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वराणसी के पूर्व
विभागाध्यक्ष प्रो. राजीव रंजन सिंह, बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के पूर्व संस्कृत विभाग अध्यक्ष प्रो. इन्द्रनाथ झा समेत संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा के पूर्व धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीपतित्रिपाठी शामिल हैं।

न्याय प्रक्रिया की कुंजी है याज्ञवल्क्य दर्शन

पीआरओ ने बताया कि महान दार्शनिक महर्षि याज्ञवलक्य प्रणीत स्मृति भारतीय विधि शास्त्र का सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ है जिसमें व्यवहार अध्याय में विवाद निष्पादन की भारतीय दृष्टि का समावेश है। इस स्मृति पर पठन पाठन एवं विचार संगोष्ठी आदि होने से भारतीय विद्या और शास्त्र का विस्तार व समाज कल्याण होगा। सर्वविदित है कि महान दार्शनिक याज्ञवल्क्य के दर्शन या फिर याज्ञवल्क्य स्मृति आज भी न्यायिक प्रक्रिया की कुंजी है। कई मामलों में मुख्य रूप से याज्ञवल्क्य स्मृति से परामर्श लिया जाता है। निरपेक्ष न्याय में उनका दर्शन हमेशा सहायक रहेगा।