संस्कृत साहित्य में वर्णित नीति आज भी प्रासंगिक : प्रो0 जीवानन्द

दरभंगा। संस्कृत के प्रचार व प्रसार के लिए विश्वविद्यालय मुख्यालय में आयोजित संस्कृत सप्ताह समारोह के छठे दिन काफी उत्सवी माहौल में छात्रों के बीच कई विधाओं में जमकर प्रतियोगिता हुई जिसमें करीब चार दर्जन छात्रों ने भाग लिया। इसी क्रम में ‘ संस्कृत व राजनीति ‘विषय पर गहन चर्चा करते हुए विशिष्ट विद्वान लनामिविवि के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो0 जीवानन्द झा ने कहा कि भारतीय वेद व आधुनिक साहित्य में राजनीति की चर्चा शुरू से ही रही है। संस्कृत साहित्य में वर्णित नीति व व्यवस्था को अपनाकर विश्व मे आज भी शांति कायम की जा सकती है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि जब जब इन नीति व अवधारणा की उपेक्षा हुई है तब- तब देश ही नहीं बल्कि विश्व मे अव्यवस्था व अशांति का वातावरण उत्पन्न हुआ है। शुक्राचार्य, वृहस्पति,कामनदत्त,चाणक्य, कालिदास जैसे दर्जनों नीति निर्धारकों व नीतिकारों की चर्चा करते हुए प्रो0 झा ने याद दिलाया कि जो राजा व शासक इनलोगों के मुताबिक चले और राज पाट चलाये वे सभी के सभी सफल व लोकप्रिय रहे।उन्हें समस्याएं भी कम आईं। कुल मिलाकर प्रो0 झा के विचार का लब्बोलुआब यह रहा कि भारतीय संस्कृत साहित्य व शास्त्रों में उल्लेखित नीति व सिद्धांतों को अपना कर आज भी विश्वव में आतंकवाद, भ्रष्टाचार व अन्य समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है।

उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ शशिनाथ झा ने विश्व मे शांति के लिए भारतीय शास्त्रों का प्रचार प्रसार को जरूरी ठहराया। विशिष्ट विद्वान प0 राजेन्द्र झा ने कहा कि वेद पथ प्रदर्शक हैं। इसके आधार पर चलकर समाज को सुसंगत व सुसभ्य किया जा सकता है। वहीं, महारानी काम सुंदरी के प्रतिनिधि डॉ लक्ष्मीनाथ झा ने संस्कृत भाषा को बोलचाल में सुगमता से व्यवहृत करने पर बल दिया। डॉ यदुवीर शास्त्री के संचालन में सम्पन्न छठे दिन के कार्यक्रम में स्वागत भाषण डीन प्रो0 सुरेश्वर झा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ वरुण कुमार झा ने किया।