*”श्रवण क्षमता का महत्व एवं उसके बचाव हेतु सतर्कता” विषयक विचारगोष्ठी में 50 व्यक्तियों की हुई सहभागिता*
*प्रो अजीत, चंद्रभूषण, डा दिनेश, डा वकील, डा चौरसिया व रामाशंकर आदि ने रखे महत्वपूर्ण विचार*
*दुरुस्त ज्ञानेंद्रियों के बल पर पुरुषार्थ चतुष्टय- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति संभव- प्रो अजीत*
*बहरेपन से न केवल एक व्यक्ति, बल्कि माता-पिता सहित पूरा परिवार होता है प्रभावित- डा वकील*
*तेज पटाखों व डीजे आदि विस्फोटक एवं तेज आवाज से दूर रहकर अपनी श्रवण- शक्ति को बचाएं- डा दिनेश*
*समर्थ श्रवणशक्ति द्वारा एक- दूसर की भावनाओं को समझना व व्यक्त करना आसान- चन्द्रभूषण*
*विश्व की 5% जनसंख्या आंशिक या पूर्णरूपेण सुनने की समस्या से ग्रसित- डा चौरसिया*
दिव्यांगता निवारण, पुनर्वास एवं जागरूकता हेतु समर्पित राष्ट्रीय संस्था सक्षम की दरभंगा शाखा तथा हिन्दी साहित्य भारती, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में ‘विश्व श्रवण दिवस’ के अवसर पर “श्रवण क्षमता का महत्व एवं उसके बचाव हेतु सतर्कता” विषयक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें बेगूसराय से सक्षम के प्रांत सह सचिव संजय बंधु, पूर्वी चंपारण से ब्रजकिशोर प्रसाद, डा अरुनेन्द्र कुमार, सतीशचन्द्र पाठक, अंजनी कु झा, श्याम, शरदचन्द्र, नलिन झा, निशितचन्द्र,आशीष, कृष्णा, रामाधार, साधना, मुकुंद, आनंद, नवीन, मनीष, जवाहर, त्रिपुरारी, अभिषेक, विजय, पीयूष, शहनाज, ऋषिकेश, आशुतोष, रौनक, रवीन्द्र, ओमप्रकाश, सुरेंद्र, व धर्मेंद्र 50 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया। सक्षम के उत्तर बिहार प्रांत के अध्यक्ष चन्द्रभूषण पाठक की अध्यक्षता में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम का उद्घाटन हिन्दी साहित्य भारती के बिहार प्रांत- अध्यक्ष डा दिनेश प्रसाद साह ने किया, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में हिन्दी साहित्य भारती के बिहार प्रांत- महामंत्री प्रो अजीत कुमार सिंह, मुख्य वक्ता के रूप में अली यावर जंग राष्ट्रीय वाणी एवं श्रवण दिव्यांग संस्थान के उत्तर भारत क्षेत्रीय केन्द्र, नोएडा के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक डा वकील प्रसाद साह, विषय प्रवेशक के रूप में सक्षम, दरभंगा के संरक्षक तथा हिन्दी साहित्य भारती के दरभंगा जिला अध्यक्ष डा आर एन चौरसिया तथा सक्षम के सक्रिय सदस्य रामा शंकर पांडे आदि ने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
अपने संबोधन में प्रो अजीत कुमार सिंह ने कहा कि कान एक अत्यंत महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्री है, जिसके माध्यम से हम दूसरों के विचारों एवं भावों को सही तरह से समझ पाते हैं। दुरुस्त ज्ञानेंद्रियों के बल पर पुरुषार्थ चतुष्टय- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति संभव है। उन्होंने दिव्यांगों के लिए जागरूकता एवं सरकारी सुविधाओं की जानकारी हर व्यक्ति को दिए जाने पर बल दिया। डा दिनेश प्रसाद साह ने कहा कि कान का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। उन्होंने विषय को अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं समसामयिक बताते हुए कहा कि तेज पटाखों व डीजे आदि विस्फोटक एवं तेज आवाज से दूर रहकर हम अपनी श्रवण शक्ति बचा सकते हैं।
मुख्य वक्ता डा वकील प्रसाद साह ने कर्णरोग के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आज श्रवण बाधिता दूर करने के अनेक तकनीक व सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। बहरेपन से न केवल एक व्यक्ति, बल्कि उनके माता-पिता सहित पूरा परिवार प्रभावित होता है। इससे बचने के लिए अवांछित ध्वनि- श्रवण से बचते हुए कान में पेंसिल, रबड़, खिलौना व लकड़ी आदि नहीं डालना चाहिए। उन्होंने अभिमन्यु का उदाहरण देते हुए कहा कि बच्चा अपने मां के गर्भ से ही सुनना प्रारंभ कर देता है।
अतिथियों का स्वागत व विषय प्रवेश कराते हुए डा आर एन चौरसिया ने कहा कि भारत में प्रतिवर्ष 10 लाख लोगों के बहरेपन के मामले दर्ज होते हैं। यह एक आम समस्या है जो निरंतर चिंताजनक रूप से बढ़ती जा रही है। अनुवांशिकता, अधिक उम्र, संक्रमण, तेज आवाज, चोट, शराब सेवन और धूम्रपान आदि से श्रवण शक्ति को नुकसान होता है। शोर से बचाव, कानों की सफाई, समय पर इलाज तथा श्रवण यंत्रों के प्रयोग से इस बीमारी को दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 5% जनसंख्या आंशिक या पूर्ण रूपेण सुनने की समस्या से ग्रसित है।
अध्यक्षीय संबोधन में चंद्रभूषण पाठक ने कहा कि समर्थ श्रवण शक्ति द्वारा हम एक- दूसरे की भावनाओं को समझ सकते हैं और व्यक्त भी कर सकते हैं। श्रवण बाधिता जन्मजात या जन्मोपरांत भी उत्पन्न हो सकती है। ठीक से नहीं सुनने के कारण भाषा विकृतियां भी आती हैं। उन्होंने कहा कि तेज घरेलू उपकरणों, उद्योगों के आवाज तथा ध्वनि प्रदूषण को रोककर श्रवण शक्ति को बचाया जा सकता है। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन सक्षम, दरभंगा के सक्रिय सदस्य रमाशंकर पांडे ने किया।