– एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी में बार-बार गांठ निकले तो घबराएं नहीं
– टीबी का इलाज सिर्फ सरकारी अस्पताल में ही संभव
-टीबी लाइलाज बीमारी नहीं, दवा का कोर्स पूरा करना आवश्यक
#MNN@24X7 समस्तीपुर 7 नवंबर। विभूतिपुर प्रखंड के चकहबीब गांव के वार्ड नंबर 9 के महादलित बस्ती से आने वाले गुलाबीया देवी और मोहन सदा के 4 साल की बच्ची ज्योति कुमारी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी हो गया था समस्या इतना ज्यादा बढ़ गया था कि गांव के चिकित्सकों तथा निजी अस्पतालों में दिखाने के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हो रही थी माता-पिता उम्मीद खो चुके थे लेकिन बच्चे के माता-पिता ने हिम्मत नहीं हारी तथा गांव के आशा कार्यकर्ता के सहयोग से सरकारी अस्पताल में बच्चे का इलाज करवाया जहां बच्चे गंभीर समस्या से पीड़ित होने के बावजूद धीरे-धीरे उसमें सुधार हुआ अब बच्चा सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा है.
परिजन का सभी जगह मिला निराशा :
ज्योति को विगत वर्ष गर्दन पर गांठ निकलने लगा, और इसके साथ साथ ज्योति को सूजन, दर्द, हल्का बुखार, रात में पसीना, भूख नहीं लगना की समस्या होने लगी। वह धीरे-धीरे गांठ घाव के रूप में तब्दील होना शुरू हो गया और वह पूरे गर्दन पर फैल गया कुछ समय के बाद उस घाव से पस निकलना प्रारंभ हो गया, जिसके कारण परिवार के सदस्य दिन रात परेशान होने लगे, बच्चे के पिता ने ग्रामीण चिकित्सक से इसका इलाज करवाया परंतु घाव ठीक नहीं हुआ, ग्रामीण चिकित्सक ने बताया कि यह ठीक नहीं हो सकता परंतु माता-पिता ने यह ठान लिया कि अपनी आंखों के सामने अपनी बेटी को मरते हुए नहीं देख सकते , अतः वे अपने बच्चे को गांव से लेकर हरियाणा स्थित करनाल चले गए, जहां वे दिन – रात मजदूरी करके अपने बच्चे का उपचार प्राइवेट अस्पतालों में करवाना शुरू किया, परंतु वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी तत्पश्चात वे थक हार कर गांव आ गए.
सरकारी अस्पताल में हुआ इलाज ठीक हुआ बच्चा :
उसी दौरान पोलियो का कार्यक्रम चल रहा था, आशा मंजू देवी दवा पिलाने के क्रम में उनके घर पर पहुंची, इस दौरान आशा कार्यकर्ता मंजू ने ज्योति को देखा और ठीक हो जाने की बात बतलाई लेकिन परिवार के सदस्यों को लगा ,जब यह बड़े प्राइवेट अस्पताल में नहीं ठीक हो पाया, तो सरकारी अस्पताल में कहां से ठीक होगा, परंतु निराशा में भी बच्चे की बचने की एक उम्मीद लिए हुए आशा की बात मानी, आशा मंजू देवी बच्चे को स्वास्थ्य केंद्र ले गई जहां से बच्चे का एफएनएसी जांच हेतु दरभंगा भेजा गया जहां बच्चे का जांच हुआ, और जांच में ज्योति एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पॉजिटिव आया, आशा ने बच्चे को नियमित रूप से दवा खिलाना प्रारंभ किया गया, धीरे-धीरे उनके घाव में कमी आने लगी, और स्वास्थ्य सुधार होने लगा और दवा का कोर्स पूर्ण होते होते बच्चा पूर्णरूपेण ठीक हो गया.और सरकार द्वारा निश्चय पोषण राशि भी उन्हें प्राप्त हुई है, वो इस कार्य के लिए वह सरकार और स्वास्थ विभाग को धन्यवाद ज्ञापित करती है. बताती हैं कि , अगर स्वास्थ्य विभाग नहीं होता तो शायद हमारी बच्ची नहीं बच पाती.
टीबी बीमारी के प्रति फैली है अंधविश्वास:
बच्चे के माता-पिता ने कहा जब हम लोग गांव आए तो गांव में टीबी के बारे में काफी अफवाहें थी . आसपास के लोग अपने बच्चे को ज्योति के नजदीक नहीं जाने देना चाहते थे, ना ही उसके साथ खेलने देना चाहते थे, यह हम लोगों के लिए काफी चिंता का विषय बना.उन्होंने बताया कि बीमारी के प्रति लोगों की मानसिकता को बदलने की जरूरत है और यहां के लोग मानते हैं कि यह बीमारी पटने वाला है इसलिए अपने बच्चे को उनके यहां नहीं जाने देते हैं, जिसके कारण बच्चे के परिवार वाले को और मानसिक समस्या हो रही थी. लेकिन उम्मीद थी जब हम लोगों ने बच्चे का इलाज सरकारी अस्पताल में कराया तो डॉक्टरों ने बताया था कि बच्चे का टीबी आसानी से ठीक हो जाएगा. नियमित बच्चे को दवा खिलाई और हमारे बच्चा आज पूर्णत: स्वस्थ हो गया है.
क्या है एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी:
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉक्टर विशाल कुमार बताते हैं कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु के कारण होने वाला क्षयरोग रोग संक्रमित हवा में सांस लेने से एक दूसरे में फैलता है। फुफ्फुसीय तपेदिक यानी पल्मोनरी टीबी क्षयरोग का एक आम रूप माना जाता है, जिसमें जीवाणु फेफड़ों पर हमला करते हैं। जिनसे फेफड़ों के अलावा अन्य अंग भी टीबी से संक्रमित पाए गए। इसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं इससे घबराना नहीं चाहिए.