विश्वविद्यालय स्थापना दिवस की स्वर्ण जयंती के अवसर पर सी एम कॉलेज के हिन्दी विभाग द्वारा प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर कार्यक्रम आयोजित।

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में रंगमंचीय संभावनाएँ कार्यक्रम में प्रधानाचार्य, बर्सर तथा डा कृष्ण कुमार पासवान ने रखे महत्वपूर्ण विचार।

आज दिनांक 30 जुलाई , 2022 को ‘मुंशी प्रेमचंद जी जयंती’ की पूर्व संध्या पर ”मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में रंगमंचीय संभावना” विषयक डॉ कृष्ण कुमार पासवान, सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, आरसीएस कॉलेज, मंझौल, बेगूसराय का ‘एकल व्याख्यान’ कार्यक्रम का आयोजन सी एम कॉलेज के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में आयोजित किया गया, जिसमें प्रधानाचार्य डॉ अनिल कुमार मंडल ने कहा कि इस प्रकार के साहित्यिक कार्यक्रमों से छात्र-छात्राओं में विचार अभिव्यक्ति, कला- कौशल एवं साहित्यिक परिचर्चा का विकास होता है। साथ ही मुंशी प्रेमचंद जैसेे महान साहित्यकारों के साहित्य का जीवंत स्थानांतरण (एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक) होता है | प्रधानाचार्य ने मंत्र, नमक का दरोगा, बूढ़ी काकी, पूस की रात इत्यादि कहानियों के पात्रों के विषय में व्याख्यान दिया एवं कार्यक्रम की भूरी- भूरी प्रशंसा की।

महाविद्यालय के बर्सर डा आर एन चौरसिया ने प्रेमचंद की कहानियों की विशेषता बताते हुए कहा कि उनके पात्र जीवंत रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। कहानी के पात्र बड़े राजा- महाराजा या कुलीन न होकर ज्यादातर आम समाज से हैं। जो दलित, गरीब, पिछड़े व अल्पसंख्यक हैं जो समाज का सच्चा प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी कहानियों में रंगमंच संभावना सर्वाधिक है, क्योंकि कहानी पढ़ते समय सारे पात्र जीवंत रूप में अभिनय करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं जो पाठकों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। प्रेमचंद्र समाज में सद्भावना के साथ ही संवेदनशील समाज की कल्पना की थी।

मुख्य वक्ता के रूप में डॉ कृष्ण कुमार पासवान ने मुंशी प्रेमचंद के साहित्य का उदाहरण देखकर उनके साहित्य को सामयिक संदर्भ से जोड़ा, उनके पुस्तकों एवं कहानियों में व्याप्त रंगमंच की विशेषताओं के विषय में बताते हुए कहा कि प्रेमचंद की भाषा सरल व सहज हैं। प्रारंभिक कहानियों में प्रभावोत्पादकता कम है, लेकिन अंतिम प्रतिनिधि कहानी के आते-आते वे भी आदर्शोन्मुखीयथार्थवादी हो गए हैं।

उन्होंने कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी नामक नाटकों के कथानकों का परिचय देते हुए उनमें व्याप्त संकलन त्रय के विषय में कहा कि नाटकों में स्थान समय और क्रिया का रोचक का मिश्रण होता है और भारतीय कहानी परंपरा में भी मंचीय विशेषताओं पर आधारित सूत्रधार की कल्पना, भरतमुनि के नाट्य शास्त्र में वर्णित नट -नटी प्रसंग के माध्यम से संचालित हुआ था और ‘ठाकुर का कुआं’ नामक कहानी में यह सूत्रधार प्रणाली नाटक के कशमकश को बयां कर देता है।उनकी कहानियों की विडंबना यह है कि जब पीने के पानी के लिए ‘ठाकुर का कुआं’ ही एकमात्र उपाय हो और वह पानी पीने लायक नहीं हो तो इस प्रकार की कहानियों में मुंशी प्रेमचंद जमीनी धरातल स्तर पर बात करते हैं | मुंशी प्रेमचंद के यथार्थ कहानियों के माध्यम से व्याख्यान दिया।

कार्यक्रम का संचालन डॉ मीनाक्षी राणा ने किया, जबकि अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष अखिलेश कुमार राठौर ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डा रूपेन्द्र झा ने किया | इस कार्यक्रम में अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डा अवसार आलम, डा आलोक कुमार राय, आचार्य विकास कुमार सहित 100 छात्र- छात्राएं उपस्थित हुए।