#MNN@24X7 दरभंगा, आज दिनांक 14.09.2023 को विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, ल. ना मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा द्वारा हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर समारोह का आयोजन विभागाध्यक्ष प्रो० उमेश कुमार की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर विद्यार्थियों के लिए भाषण सह काव्य पाठ प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। इस मौके पर हिंदी विभाग की महत्त्वाकांक्षी ‘किसलय’ भित्ति पत्रिका का उद्घाटन मानविकी संकाय एवं हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो०प्रभाकर पाठक के कर-कमलों द्वारा हुआ।

मुख्य अतिथि प्रो० प्रभाकर पाठक ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति को बेर की तरह नहीं बल्कि नारियल की तरह होना चाहिए। किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि राजेन्द्र कॉलेज, छपरा में हिंदी के महान विद्वानों का जमावड़ा होता था। शिवपूजन सहाय भी वहाँ मौजूद रहते थे और उन्होंने एक दिन कहा कि सभाकक्ष में बैठे सभी विद्वानों को पाँच मिनट हिंदी में बोलना है। सहायजी ने कहा कि जो पाँच मिनट अपने विषय में ही धाराप्रवाह हिंदी में बोल लेगा उसे हिंदी का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा। जब उनकी उम्मीदों पर कोई खड़ा नहीं उतरा तब लगा कि डॉ० राजेन्द्र प्रसाद इस कार्य को पूरा कर लेंगे लेकिन वे भी अंतिम क्षणों में ‘खैर’ शब्द का प्रयोग कर असफल घोषित हो गए। इस तरह से हिंदी बोलना अत्यंत दुष्कर है।

प्रो० पाठक ने कहा कि महादेवी वर्मा की हिंदी का लोहा सभी मानते थे। दिनकर की कविता को उद्धरित करते हुए उन्होंने कहा कि आज के भूमंडलीकरण को उन्होंने बहुत पहले ही पहचान लिया था। विद्या भाषा से आती है। भाषा मनुष्य का सबसे बड़ा आविष्कार है। छात्रों को उन्होंने कहा ली भाषा पर उन्हें अधिकार करने की जरूरत है क्योंकि यह अतुल कीर्ति दाता है। प्रो० पाठक ने कहा कि भविष्य हिंदी का है, उस के बिना किसी का भी काम नहीं चलेगा। हिंदी रोटी देती है लेकिन रोटी खाने का संस्कार जिनके पास नहीं होता वे ही भूखे सोते हैं। हिंदी विश्ववभूषणी और विश्वभाषिणी हो चुकी है। संसार में हर सातवां आदमी हिंदी बोलता है, इससे ही हिंदी की बढ़ती गति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

प्रो० उमेश कुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि साहित्य कभी रुकता नहीं, इसी लिए हिंदी कभी नहीं रुकेगी। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए निरंतर विदेश मंत्रालय प्रयासरत है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदी अपनों से हार जाती है। सच्चाई यह है कि हिंदी का वर्चस्व सम्पूर्ण विश्व में छा रहा है। नई शिक्षा नीति पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी पढ़ने की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

बीज वक्त डॉ० सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि हिंदी जनभाषा है, यहाँ की जनता ने इस भाषा का विकास किया है। हिंदी सिर्फ हिंदी नहीं बल्कि हिंदवी भी है। इस भाषा में अमीर खुसरो और सरहपा दोनों गले मिलते नज़र आते हैं। जिन लोगों का हिंदी से कोई लेना देना नहीं वे हिंदी के नाम पर राजनीति करते हैं। हिंदी जनांदोलनों की भाषा है। परसाई जी ने हिंदी पर राजनीति करने वालों पर जमकर व्यंग्य किया है। हिंदी हमारी साँझी विरासत का प्रतीक है। हिंदी-उर्दू की पहली पत्रिका के सम्पादक अजीमुल्ला खान थे जिन्होंने भारत का नारा बुलंद किया। अआज हिंदी का साम्प्रदायिकरण किया जा रहा है। हिंदी सवा अरब भारतीय जनता की कंठहार है।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अन्य विभागों के विद्यार्थियों ने भाषण एवं काव्य पाठ प्रतियोगिता में भाग लिया। राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो० मुनेश्वर यादव, डॉ० मुकुंद बिहारी वर्मा, कृष्णा अनुराग, अभिषेक कुमार सिन्हा, सियाराम मुखिया, दुर्गानन्द ठाकुर, कंचन रजक, अनुराधा प्रसाद, रोहित कुमार, सुभद्रा कुमारी की सक्रिय उपस्थिति रही। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शोधार्थी और छात्र मौजूद रहे।