#MNN@24X7 भारत में हर साल 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। आज ही के दिन 1826 में हिन्दी भाषा का पहला अखबार उदंत मार्तड के नाम से कोलकाता से शुरू हुआ था। इस अखबार के पहले प्रकाशक और संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे। आज हिन्दी पत्रकारिता के 197 साल पूरे हो गए हैं। आजादी के आंदोलन में हिन्दी पत्रकारिता देशवासियों की सशक्त आवाज बनी। आजादी के बाद हिन्दी पत्रकारिता ने देश की प्रगति और विकास का मार्ग तेजी से तय किया।

1820 के युग में बंग्ला, उर्दू तथा कई भारतीय भाषाओं में पत्र प्रकाशित हो चुके थे। 1819 प्रकाशित बंगाली दर्पण के कुछ हिस्से हिन्दी में भी प्रकाशित हुआ करते थे, लेकिन हिन्दी के प्रथम समाचार पत्र होने का गौरव ‘‘उदन्त मार्तण्ड’’ को प्राप्त है। 30 मई 1826 को प्रकाशित यह समाचार पत्र 4 दिसंबर 1827 को बंद हो गया। इसके बंद होने में ब्रिटिश शासन का असहयोग मुख्य कारण था।

30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस

हिन्दी पत्रकारिता दिवस प्रत्येक वर्ष ‘‘30 मई’’ को मनाया जाता है। प्रथम हिन्दी समाचार पत्र के प्रकाशक पं. जुगल किशोर मूलतः कानपुर के निवासी थे। वे सिविल एवं राजस्व उच्च न्यायालय कलकत्ता में पहले कार्यवाहक रीडर तथा बाद में वकील बन गए।

उदन्त मार्तण्ड’ क्रांतिकारी अखबारों में से एक था। ये साप्ताहिक अखबार ईस्ट इंडिया कंपनी की दमनकारी नीतियों के खिलाफ खुलकर लिखता था। बता दें कि ये अखबार 8 पेज का होता था और ये हर मंगलवार को निकलता था। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ खबरें छापने के चलते अंग्रेजी सरकार ने इस अखबार के प्रकाशन में अड़ंगे लगाना शुरू कर दिया था। फिर भी पंडित जुगल किशोर शुक्ल झुके नहीं, वे हर सप्ताह अखबार में और धारदार कलम से अंग्रेजों के खिलाफ लिखते।

‘उदन्त मार्तण्ड’ के पहले अंक में 500 प्रतियां छापी गई थीं। उस समय इस साप्ताहिक अखबार के ज्यादा पाठक नहीं थे। इसका कारण था इसकी भाषा हिंदी होना, चूंकि ये अखबार कोलकाता से निकलता था, और वहां हिंदी भाषी कम थे इसलिए इसके पाठक न के बराबर थे। फिर भी पंडित जुगल किशोर इसे पाठकों तक पहुंचाने के कड़ी जद्दोजेहद करते थे इसके लिए वे इसे डाक से अन्य राज्यों में भेजने की कोशिश करते थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने इस अखबार को डाक सुविधा से भी वंचित रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिस कारण अखबार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। नतीजा ये रहा कि इस अखबार को 19 महीने बाद ही बंद करना पड़ा गया। पंडित जी की आर्थिक परेशानियों और अंग्रेजों के कानूनी अड़ंगों के चलते 19 दिसंबर 1827 में इस अखबार का प्रकाशन बंद हो गया।

आपातकाल और अघोषित आपातकाल भी भारतीय प्रेस ने और हिन्दी पत्रकारिता ने देखे। तमाम बाधाओं, प्रतिबंध और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी भारतीय पत्रकारिता ने अपनी विकास यात्रा तय की। आने वाले वर्ष 2026 में हिन्दी पत्रकारिता 200 वर्षों की हो जाएगी। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में पत्रकारिता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक का महत्वपूर्ण योगदान है।

आज के दिन इस बात का उल्लेख नितांत आवश्यक है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दी एवं भाषायी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, भारतीय पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन की साक्षी रही है।

हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारिता से जुड़े सभी बंधुओं को हार्दिक शुभकामनाएं।

(सौ स्वराज सवेरा)