दरभंगा। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि को लोग सिर्फ रामायण रचियता के तौर पर जानते है।जबकि प्रमाण की कसौटी पर इनके ज्ञान को कसते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि वाल्मीकि एक महान खगोलशास्त्री थे।इनकी अमर कृति रामायण में वर्णित तमाम खगोलीय पहलू आज भी खरे उतरते है।इन्होंने रामायण के पात्रों के संबंध में जो तथ्य वर्णित किया है वह आधुनिक सॉफ्टवेयर्स प्लेनेटोरियम गोल्ड पर भी सटीक उतर रहा है।इससे यह स्वतः साबित हो जाता है कि रामायण में दिए गए खगोलीय संदर्भ अक्षरथः सही हैं।

ये बातें लनामिविवि के प्रसिद्ध भूगोलवेता डॉ अनुरंजन झा ने कही।स्वयंसेवी संस्था डॉ प्रभात दास फाउण्डेशन तथा नागेंद्र झा महिला महाविद्यालय के तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में उन्होंने विविध उद्धरणों से यह प्रमाणित किया कि महर्षि वाल्मीकि एक निपुण खगोलशास्त्री रहे है।यही कारण है कि रामायण ग्रंथ सभी कसौटी पर प्रमाणित हो जाता है।इस संबंध में डॉ झा ने सुश्री सरोज बाला के गंभीर अनुसंधान पूर्वक लिखित पुस्तक रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी का भी हवाला दिया।

इससे पूर्व फाउण्डेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने पावर प्वाइंट के जरिए महर्षि वाल्मीकि एक खगोलशास्त्री विषय वस्तु को प्रस्तुत किया।साथ ही उदाहरणों के जरिए बताया कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण से ज्ञात होता है कि इस ग्रंथ में श्रीराम के जीवन से संबंधित सभी महत्वपूर्ण घटनाओं के समय पर आकाश में देखी गई खगोलीय स्थितियों का विस्तृत एवं क्रमानुसार वर्णन किया गया है।चाहे राम के जन्म की तिथि हो या फिर वनवास,खर-दूषण वध आदि घटनाएँ खगोलीय दृष्टिकोण से सही है।

डॉ अपर्णा झा ने बताया कि रामायण की सत्यता के कारण ही राम आज भी हर भारतीय के ह्रदय में निवास करते हैं।वैसे तो वाल्मीकि को छंद या कविता का प्रणेता माना गया है पर इनकी पकड़ खगोलशास्त्र पर भी थी।वस्तुतःमहर्षि वाल्मीकि उसी समृद्धशाली वैदिक ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसकी प्रमाणिकता आज विश्व पटल पर हो रही हैं।

जबकि डॉ सरोज राय ने बताया कि वाल्मीकि साहित्यकार के साथ-साथ प्रवीण ज्योतिषाचार्य तथा खगोलशास्त्री रहे है।रामायण में वर्णित तिथि के अनुरूप ही प्रतिवर्ष हम रामनवमी मनाते है।वहीं भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो गणेश झा ने अपने तथ्यों से साबित किया कि वाल्मीकि के रामायण में वर्णित सभी ग्रह,नक्षत्र,मौसम आदि प्रमाण सिद्ध है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ ऋषि कुमार राय ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के ध्वजवाहक महर्षि वाल्मीकि पर अनुसंधान की जरूरत है।प्राचीन काल से ही हमारा ज्ञान-विज्ञान से लैस रहा है।पाश्चात्य जगत ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए हमारे जिन तर्कों को खारिज कर दिया था आज उसे नासा-इसरो जैसे संस्थान स्वीकार कर रहे है।महर्षि वाल्मीकि का भी ज्ञान अद्भुत है और विश्लेषण से साबित होता है कि वो उच्चकोटि के खगोल ज्ञाता थे।सेमिनार में विषय प्रवेश प्रो महेश मोहन ने कराया।जबकि अतिथियों का स्वागत डॉ रंजना झा किया।

वहीं धन्यवाद ज्ञापन डॉ ममता रानी ने और मंच संचालन डॉ महादेव झा के द्वारा संपन्न हुआ।मौके पर डॉ अशोक मिश्रा, डॉ भुवनेश्वर मिश्रा, डॉ सुधा ठाकुर, डॉ वीणा मिश्र,शोधार्थी शुभेष कुमार ,भगवान जी,फाउण्डेशन के अनिल सिंह, राजकुमार आदि मौजूद थे।