समस्त पृथ्वीवासी को प्रसन्न एवं हरी-भरी व मनोहर प्रकृत छटा युक्त पवित्र माह सावन का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्त्व- डा घनश्याम।
हिन्दू धर्म- संस्कृति के साथ ही बौद्ध परंपरा में भी सावन माह की अत्यधिक महत्ता- डा विकास सिंह।
धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण सावन माह शिव की पूजा- उपासना से भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति देने में पूर्णतः सक्षम- प्रधानाचार्य।
संस्कृत साहित्य में श्रावण माह की महत्ता विस्तार से वर्णित, जिसकी हमारे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन में अत्यधिक महत्ता- डा सरिता।
भारतीय कृषकों को प्रसन्नता प्रदान करने और हमारे बाह्य तन व आंतरिक मन को अध्यात्ममय बनाता है सावन- प्रो विश्वनाथ।
सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग के तत्वावधान में आज श्रावणी पूर्णिमा के दिन ‘संस्कृत दिवस’ के सुअवसर पर “भारतीय परंपरा में सावन की महत्ता” विषयक राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया, जिसमें महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डा अनिल कुमार मंडल उद्घाटन कर्ता, पूर्व प्रधानाचार्य प्रो विश्वनाथ झा की अध्यक्षता में जेएमडीपीएल कॉलेज, मधुबनी के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो- मुख्य अतिथि, संस्कृत विभाग, कमला नेहरु कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की संस्कृत- प्राध्यापिका डा सरिता शर्मा- मुख्य वक्ता, मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह- सम्मानित वक्ता तथा हिन्दी विभाग मारवाड़ी कॉलेज के प्राध्यापक डा गजेन्द्र भारद्वाज- विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित हुये, जबकि श्रीलंका के प्रोफेसर लेनेगल सिरीनिवास व थाईलैंड के भिखू दीप रतन- सारस्वत वक्ता तथा संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया विषय प्रवेशक सहित डा ममता स्नेही, डा मीना कुमारी, डा शशिभूषण भट्ट, डा शिशिर कुमार झा, डा रानी मिश्रा, डा शशिकला यादव, डा कीर्ति चौरसिया, प्रो संतोष दत्त झा, डा रंजना झा, डा घनश्याम चौधरी, डा संदीप कुमार, प्रशांत कुमार झा, डा चंद्रकांत दत्त शुक्ला, डा अनीता रानी, डा अर्चना कुमारी, मधुसूदन शर्मा, प्रतिमा त्रिपाठी, अमरजीत, सुरेश पासवान, विष्णु, नीली रानी, अखिलेश, शेखर, जयश्री, कविता, जितेंद्र, सूर्यकांत, आस्थानंद यादव, डा मनमोहन झा, आशुतोष, अंसार अहमद, अभिषेक, ओमप्रकाश, राहुल, अविनाश, नितीश दुबे, सरस्वती शांडिल्य, शेखर प्रसाद, धनंजय, रवीन्द्र, भाग्य नारायण, रोशन, रामकिशोर, संतोष, रामेश्वर, अनीता, पंकज, आदेश व घनश्याम चौधरी सहित 80 से अधिक व्यक्तियों ने संगोष्ठी में भाग लिया।
मुख्य अतिथि डा घनश्याम महतो में संस्कृत साहित्य में वर्णित श्रावण माह के स्वरूप एवं महत्व की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि समुद्र मंथन के बाद सावन माह में ही विष्णु के योगनिद्रा में चले जाने के कारण जगत संचालन हेतु प्रधान देव के रूप में शिव भगवान की काफी महत्ता हो जाती है। शिव ने जगत कल्याण के लिए समुद्र मंथन से उत्पन्न हलाहल विष ग्रहण कर नीलकंठ हो गए थे, जिनपर देवताओं और पृथ्वीवासियों ने जल अर्पण कर विष के प्रभाव को कम करने का प्रयास किया था।
उन्होंने कहा कि समस्त पृथ्वीवासियों को प्रसन्न एवं हरी-भरी व मनोहर प्रकृत छटा युक्त पवित्र माह सावन का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व है। विभिन्न पुराणों में भी सावन माह की महत्ता बतलाई गई है, जिसके अनुसार शिव सावन माह में ही अपने ससुराल आते हैं। यह माह व्रत- उपासना तथा पर्व- त्योहारों का होता है।
उद्घाटन भाषण में प्रधानाचार्य डा अनिल कुमार मंडल ने कहा कि धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण सावन माह शिव की पूजा- उपासना से भक्तों को आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। वैसे तो बारहों माह का अपना- अपना महत्व होता है, पर श्रावण माह धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। इस माह के प्रमुख देवता शिव हैं, जिनके व्रत करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सम्मानित वक्ता के रूप में डा विकास सिंह ने कहा कि हिन्दू धर्म- संस्कृति के साथ ही बौद्ध धर्म- परंपरा में भी सावन माह का अत्यधिक महत्व है। सावन पाली भाषा का शब्द है, जिसका संस्कृत भाषा में श्रावण शब्द बना है। इस माह का हिन्दू की तरह बौद्ध धर्म में काफी महत्व है, क्योंकि प्रारंभिक दिनों में इस माह की प्रतिपदा के दिन 50 सदस्यों ने बौद्ध धर्म- परंपरा स्वीकार किया था। श्रावण माह के पूर्णिमा के दिन ही उंगुलीमाल डाकू ने बुद्ध से दीक्षा लेकर मानवता को अपनाया था।
मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय से डा सरिता शर्मा ने कहा कि संस्कृत साहित्य में श्रावण माह की महत्ता विस्तार से वर्णित है, जिसका हमारे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन में अत्यधिक महत्व है। उन्होंने विस्तार से संस्कृत साहित्य में वर्णित सावन की महत्ता को बतलाते हुए कहा कि इस माह में अनेक पर्व एवं धार्मिक कृत्य होते हैं, जिसमें भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न परिधान पहनने की परंपरा है। डॉ सरिता ने संदर्भ सहित विश्व के प्रथम ग्रंथ ऋग्वेद से आधुनिक संस्कृत ग्रंथों में वर्णित शिव के स्वरूप व महत्व सहित सावन की महत्ता को विस्तार से बताया।
विशिष्ट वक्ता डा गजेन्द्र भारद्वाज ने लोक- साहित्य एवं लोक- परंपरा में सावन की महत्ता की विस्तार से चर्चा करते हुए इस माह में गाए जाने वाले सावन गीत व कजरी आदि के महत्व को रेखांकित किया तथा रक्षा सूत्र के माध्यम से पिता, भाई व पुत्र आदि की कुशलता की ईश्वर से कामना किए जाने की बात कही। उन्हें समाज के विभिन्न समुदायों के बीच सावन उत्सव एवं उसे मनाने के तौर-तरीकों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।
अध्यक्षीय संबोधन में पूर्व प्रधानाचार्य प्रो विश्वनाथ झा ने कहा कि भारतीय कृषकों को प्रसन्नता प्रदान करने तथा लोगों के तन एवं आंतरिक मन को अध्यात्ममय बनाने में सावन माह का काफी महत्व है। सावन माह का प्रकृति से भी गहरा संबंध है, क्योंकि इसमें अत्यधिक वर्षा होने से संपूर्ण धरती हरी- भरी हो जाती है। इस माह में दक्षिण- पूर्वी मानसून का आगमन भारत में होता है, जिससे ग्रीष्मकालीन गर्मी से पूरी धरती आद्र एवं हरी-भरी हो जाती है।
विषय प्रवेश कराते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी के संयोजक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि भारत में हर दृष्टिकोण से सावन सर्वोत्तम माह माना जाता है। इस माह में सोमवार को भगवान शिव की तथा मंगलवार को देवी पार्वती की उपासना की जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से वर्षा ऋतु में शरीर का पाचन तंत्र बिगड़ जाता है, जिस कारण प्याज, लहसुन व मसालों सहित अंडा, मांस, शराब व तंबाकू आदि का सेवन वर्जित होता है। पाचन तंत्र तथा शरीर में ऑक्सीजन व रक्त संचार नियंत्रण हेतु सावन में झूला झूलने का प्रचलन है। इससे हमारी सांसे तेज हो जाती हैं तथा शरीर में हलचल होती है, जिससे पूरे शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है। हमारा तनाव दूर हो जाता है और मन आनंदित व शरीर स्वस्थ हो जाता है।
समाजशास्त्र की विभागाध्यक्षा डा सुनीता कुमारी के कुशल संचालन में आयोजित संगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत संस्कृत के शिक्षक डा शशिभूषण भट्ट ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन इग्नू के सहायक समन्वयक डा शिशिर कुमार झा ने किया।