मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने डा हर्ष नारायण लाल लिखित ‘नहीं जानता’ मुक्तक काव्य का किया विमोचन।

डॉ हर्ष जमीनी व्यक्ति, गंभीर चिन्तक तथा अच्छे लेखक, ये आगे भी अनवरत लिखते रहें जो हमलोगों के लिए अमूल्य हो- कुलपति।

डॉ हर्ष नारायण लाल ने इस अवसर पर कुलपति महोदय को उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित अभिनंदन पत्र प्रदान किया।

समाज से साहित्य के हाशिए पर जा रहे समय में साहित्य- सृजन डा हर्ष की सृजनात्मक क्षमता का प्रतीक- कुलसचिव।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने डा हर्ष नारायण लाल लिखित “नहीं जानता” नामक मुक्तक काव्य का विमोचन किया। इस अवसर पर उन्होंने लेखक को बधाई एवं शुभकामना देते हुए कहा कि डा हर्ष नारायण जमीनी व्यक्ति, गंभीर चिंतक तथा अच्छे लेखक हैं। ये ऐसे ही आगे भी अनवरत लिखते रहें जो हमलोगों के लिए अमूल्य हो। कुलपति ने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे इनकी पुस्तक के विमोचन का सुअवसर प्राप्त हुआ है। कवि डा हर्ष ने कुलपति महोदय को उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित पद शैली में अभिनंदन पत्र पढ़कर सुनाया और उन्हें प्रदान किया।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर मुश्ताक अहमद ने कहा कि साहित्य जीवन का दर्पण होता है, चाहे वह काव्य रूप में हो या गद्य रूप में। उन्होंने डॉ हर्ष नारायण को बधाई दिया कि उन्होंने कुलपति महोदय से न केवल अपने काव्य का विमोचन कराया, बल्कि उनके सम्मान में अभिनंदन पत्र प्रस्तुत किया। कुलसचिव ने विश्वविद्यालय की ओर से आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह हर्ष का विषय है कि आज जब समाज से साहित्य हाशिए पर जा रहा है, ऐसे समय में डॉ हर्ष का साहित्य सृजन में लगे रहना, इनकी सृजनात्मक क्षमता को दर्शाता है।

कुलपति कार्यालय में आयोजित संक्षिप्त कार्यक्रम में स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो राजेन्द्र साह, सीबीआई, कोलकाता के एसपी पद से अवकाश प्राप्त फनी भूषण कर्ण, विश्वविद्यालय के प्रेस एवं मीडिया प्रभारी डा आर एन चौरसिया, संजीव कुमार, सुनील भारती, मनोज कुमार, कुलपति के सचिव मो अशरफ अली जमाल सहित कई व्यक्ति उपस्थित थे।

ज्ञातव्य है कि “नहीं जानता” मुक्तक काव्य के कवि डा हर्ष नारायण लाल स्थानीय केएस कॉलेज के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डा पाण्डे विनय भूषण के निर्देशन में मिथिला विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से पीएच डी की उपाधि प्राप्त की थी। कवि की यह प्रथम रचना है, जिसकी प्रत्येक चौपाई स्वयं में पूर्ण है। इनका जन्म 2 मई, 1960 को बिहार के पश्चिम चंपारण स्थित लौरिया ग्राम में हुआ था।

ये मूलतः मधुबनी जिला के खड़ौआ ग्राम के निवासी हैं, जिनके पिता स्वर्गीय रामेश्वर दास हाई स्कूल में उपप्राचार्य तथा माता स्वर्गीय ललिता देवी कन्या प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्या थी। इन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम ए कर नंदनगढ़ महाविद्यालय, लौरिया, पश्चिमी चंपारण में सेवा करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कई महत्वपूर्ण कविता, कहानी व गजल आदि मैथिली, भोजपुरी और हिन्दी भाषा में प्रकाशित हुई हैं। ये आकाशवाणी, दरभंगा से सृजन कार्यक्रम में काव्य पाठ भी करते रहे हैं।

स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो राजेन्द्र साह ने कहा कि इस मुक्तक काव्य की प्रस्तुति नये ढंग से हुई है, जिसमें लेखक अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवों को काव्य रूप दिया है। काव्य में कवि ने त्याग को महानता का मार्ग बतलाया है।
सीबीआई, कोलकाता के पूर्व एसपी फनी भूषण कर्ण ने कहा कि काव्य के माध्यम से कवि आत्मज्ञान प्राप्ति का प्रयास किया है। ग्रंथ में गंभीर दर्शन प्रदर्शित हुए हैं जो समाज का सदा मार्गदर्शन करेंगे।

कवि हर्ष नारायण ने कहा कि इसमें समाज के विभिन्न पहलुओं पर दृष्टिपात किया गया है। खुद को जानना व जीवन को जीना एक कला है। पाठक काव्य को पढ़कर अवश्य आनंदित होंगे।