एमआरएम कॉलेज के हिन्दी विभाग द्वारा ‘हिन्दी दिवस’ पर “वैश्विक पटल पर हिन्दी की प्रासंगिता” विषयक संगोष्ठी आयोजित।

डा गजाला, डा महेश, डा चौरसिया, डा पुतुल, डा दिलीप, प्रो नीलम, डा सुकृति, डा शिखर वासनी व डा शैलजा ने रखे विचार।

हिन्दी बेहतरीन एवं प्रिय भाषा, जिसमें भावाभिव्यक्ति सरल व सहज, आत्मविश्वास व गर्व के साथ प्रस्तुतीकरण संभव- डा गजाला।

भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषा हिन्दी भारत में सर्वाधिक बोली- समझे जाने वाली भावात्मक व संपर्क की प्रमुख भाषा- डा चौरसिया।

हिन्दी सरल- सरस, समृद्ध- विकसित एवं व्यापक भाषा, जिसका वैश्विक स्तर पर बड़ा बाजार उपलब्ध- डा महेश प्रसाद।

एमआरएम कॉलेज, दरभंगा के हिन्दी विभाग के तत्त्वावधान में ‘हिन्दी दिवस’ के अवसर पर “वैश्विक पटल पर हिन्दी की प्रासंगिकता” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें डा गजाला उर्फी, डा महेश प्रसाद सिन्हा, डा आरएन चौरसिया, डा पुतुल सिंह, डा दिलीप कुमार सिंह, प्रो नीलम सेन, डा सुकृति, डा शिखर वासिनी, डा शैलजा, डा अंजली कुमारी, डा फरीदा खातून, डा सौम्या व प्रो स्नेहा कुमारी आदि ने विचार रखे, जबकि डा चित्रा झा, डा रजी हैदर, डा शीतल कुमारी, डा सरिता कुमारी, डा प्रियंका कुमारी, डा चंदा कुमारी, डा सोनी कुमारी तथा डा प्रभा किरण आदि सहित एक सौ से अधिक शिक्षिकाएं एवं छात्राएं उपस्थित थीं।

अध्यक्षीय संबोधन में प्रभारी प्राचार्या डा गजाला उर्फी ने कहा कि हमें हिन्दी में बातचीत करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। इसे सर्वमान्य भाषा बनाने के लिए हमें पहल करनी होगी तथा हिन्दी को सम्मान देना होगा। उन्होंने कहा कि हिन्दी बेहतरीन एवं प्रिय भाषा है, जिसमें भावाभिव्यक्ति सरल व सहज है तथा आत्मविश्वास व गर्व के साथ प्रस्तुतीकरण भी संभव है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषा हिन्दी भारत में सर्वाधिक बोली-समझी जाने वाली भावात्मक एवं संपर्क की प्रमुख भाषा है, जिसमें भारत की राष्ट्रभाषा बनने की भी विशेषताएं मौजूद हैं। वैसे हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी और पढ़ी भी जाती है। इसका जन्म देवभाषा संस्कृत से हुई है, जिसे संस्कृत की बड़ी बेटी का दर्जा प्राप्त है।

डा चौरसिया ने कहा कि विश्व की प्राचीन एवं सरल भाषाओं में हिन्दी अग्रणी है जो भारत की मूल भाषा है। विश्व स्तर पर भी हिन्दी की प्रमुखता एवं लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में हिन्दी के प्राध्यापक डा महेश प्रसाद सिन्हा ने कहा कि हिन्दी सरल, सरस, समृद्ध, विकसित एवं व्यापक भाषा है, जिसका वैश्विक स्तर पर बड़ा बाजार उपलब्ध है। आज हिन्दी अधिक व्यापक भाषा बन रही है, जिसमें सभी भारतीयों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि हिन्दी आजादी एवं मुक्ति की भाषा रही है, जिसमें जोड़ने की भी क्षमता है। विश्व में हिन्दी दूसरी बड़ी भाषा है, जिसके विकास में अनुवाद एवं फिल्म जगत का बड़ा योगदान है।

मुख्य वक्ता के रूप में हिन्दी विभागाध्यक्ष डा दिलीप कुमार सिंह ने कहा कि हिन्दी पूरे देश में बोलने एवं समझने वाली भाषा है जो स्वतंत्रता के पूर्व आजादी की दीपशिखा के रूप में थी। यह आमलोगों की भावनाओं को व्यक्त करने में सर्वथा समर्थ है। हिन्दी सभी भाषाओं का सम्मान करती है, जिसका शब्दकोश वृहत एवं समृद्ध है।

समाजशास्त्र विभागाध्यक्षा डा पुतुल सिंह ने कहा कि हिन्दी का सम्मान हमें हर स्तर पर करना चाहिए। यह हमेशा दूसरी भाषा को भी स्वीकार करती रही है। हिन्दी के विकास हेतु हमें न केवल हिन्दी दिवस पर, बल्कि पूरे वर्ष 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक सक्रिय रहना चाहिए। दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्षा डा शिखर वासिनी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भी आज हिन्दी की प्रतिष्ठा बढ़ रही है। हमें अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है, क्योंकि हिन्दी हमारी आत्मा में वसी भाषा है। अंग्रेजी की शिक्षिका डा शैलजा ने कहा कि हिन्दी भाषा संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा तथा सुभद्रा कुमारी चौहान लिखित कविता का सस्वर पाठ किया।

विषय प्रवेश कराते हुए हिन्दी की प्राध्यापिका प्रो नीलम सेन ने कहा कि भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को अधिकारिक भाषा के रूप में हिन्दी को चुना था, इसी कारण हर वर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिन्दी भारत की संवैधानिक रूप से राजभाषा है। भाषाओं में कोई ऊंचा- नीचा, नहीं होता है, बल्कि हिन्दी धर्म- संप्रदाय, वर्ग- जाति तथा क्षेत्र आदि से ऊपर उठकर आमलोगों की भाषा है। हिन्दी प्रेम और मित्रता की भाषा है जो संकुचित दायरे से ऊपर उठकर समाहित करने का गुण रखता है।

संस्कृत विभागाध्यक्षा डा सुकृति के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी की शिक्षिका डा माला कुमारी ने किया, जबकि अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ से किया गया।