सर्वाधिक उपयुक्त एवं संप्रेषण की पूर्ण क्षमता युक्त संस्कृत समृद्ध, परिष्कृत एवं सुव्यवस्थित भाषा- डा महेश प्रसाद।

संस्कृत सरल, सरस तथा शुद्धतम भाषा, जिसमें मानव जीवन को सफल बनाने की पूरी क्षमता मौजूद- डा मित्रनाथ।

ऑनलाइन तथा ऑफलाइन माध्यम से आयोजित संस्कृत संभाषण शिविर से सामान्य छात्रों के बीच बढ़ी है संस्कृत की लोकप्रियता- डा घनश्याम।

शिविर में शामिल एक सौ से अधिक प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा प्रदान किए गए प्रमाण पत्र तथा मेडल।

#MNN@24X7 ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में आयोजित दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर का विभागीय सभागार में समापन समारोह आयोजित किया गया।

विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के सीसीडीसी डा महेश प्रसाद सिन्हा, मुख्य वक्ता के रूप में मिथिला शोध संस्थान, दरभंगा के शास्त्र चूड़ामणि डा मित्रनाथ झा तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में स्नातकोत्तर मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो रमेश झा, शिविर- प्रबंधक डा आर एन चौरसिया, प्रशिक्षक अमित कुमार झा तथा शिविर की संयोजिका डा ममता स्नेही सहित कई प्रतिभागियों भी ने विचार व्यक्त किए। समारोह का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ, जबकि समापन सामूहिक राष्ट्रगान गायन से हुआ।

अपने संबोधन में सीसीडीसी डा महेश प्रसाद सिन्हा ने कहा कि संस्कृत दुनिया की अकेली सटीक भाषा है, जिसमें सनातन धर्म के सभी शास्त्र निबद्ध हैं। संस्कृत शुद्धतम एवं पूजा- अर्चना की भी भाषा है जो प्राचीनकालीन सारी बातों को जानने का एकमात्र माध्यम है।

डॉ सिन्हा ने कहा कि सर्वाधिक उपयुक्त एवं संप्रेषण की पूर्ण क्षमता युक्त संस्कृत समृद्ध, परिष्कृत एवं सुव्यवस्थित भाषा है। इसमें जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा और समझा भी जाता है। उन्होंने संस्कृत को वैज्ञानिक तथा कंप्यूटर हेतु सर्वाधिक उपयुक्त भाषा बताते हुए कहा कि यह भारत की एक शास्त्रीय भाषा भी है, जिसे देववाणी या सुरभारती भी कहा जाता है। आज से 3000 वर्ष पहले तक सिर्फ संस्कृत ही बोली जाती थी। नासा ने इसे भविष्य की भाषा कहा है, जिसके उच्चारण से शारीरिक व्यायाम तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है। आज विदेशों में भी संस्कृत का प्रचार- प्रसार तेजी से हो रहा है।

मुख्य वक्ता के रूप में मिथिला शोध संस्थान के पूर्व पांडुलिपि विभागाध्यक्ष डा मित्रनाथ झा ने कहा कि संस्कृत सरल, सरल तथा शुद्ध भाषा है,जिसमें मानव- जीवन को सफल बनाने की पूरी क्षमता मौजूद है। संस्कृत भाषा के अध्ययन से हम जीवन में सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। जो बातें संस्कृत में वर्णित हैं, वही अन्यत्र हैं और जो इसमें वर्णित नहीं है, वह अन्यत्र भी नहीं है।यह ज्ञान- विज्ञान, सिद्धांत- व्यावहार तथा मानवीय मूल्यों का अथाह सागर है,जिसकी महत्ता विदेशी विद्वानों ने भी मुक्त कंठ से स्वीकार किया है।

मैथिली के विभागाध्यक्ष प्रो रमेश झा ने कहा कि संस्कृत और मैथिली में नानी- नतनी का संबंध है। मैथिली भाषा के भी फलने- फूलने में संस्कृत की अहम भूमिका रही है। 100 से अधिक छात्रों के संभाषण शिविर में भाग लेने से यहां का वातावरण संस्कृतमय हो गया है। संस्कृत- ज्ञान बांटने से निरंतर बढ़ता है।

अध्यक्षीय संबोधन में विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो ने बताया कि ऑनलाइन तथा ऑफलाइन माध्यम से आयोजित संस्कृत संभाषण शिविर से संस्कृत छात्रों के अतिरिक्त सामान्य छात्रों के बीच भी संस्कृत की लोकप्रियता बढ़ी है। उन्होंने शिविर के सफल संचालन हेतु शिविर- संचालिका डा ममता स्नेही तथा प्रशिक्षक अमित कुमार झा को बधाई एवं शुभकामना देते हुए कहा कि इस तरह के शैक्षणिक कार्यक्रमों का निरंतर आयोजन होना छात्रों के लिए लाभदायक होगा।

शिविर का अनुभव रूपेश ने विस्तार से रखते व्यावहारिक जीवन में संस्कृत संभाषण के प्रयोग के स्वरूप एवं महत्व का वर्णन किया तथा अपनी पूरी दिनचर्या को संस्कृत के माध्यम से व्यक्त करते हुए शिविर को काफी लाभप्रद बताया, जबकि नीतीश ने गीत के माध्यम से संस्कृत के महत्व को व्यक्त किया।

प्रशिक्षक अमित कुमार झा के कुशल संचालन में आयोजित शिविर में अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश कराते हुए विभागीय प्राध्यापक डा आरएन चौरसिया ने बताया कि अगले नवंबर माह में पुनः संस्कृत संभाषण शिविर का आयोजन किया जाएगा तथा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहयोग से विभाग में अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण हेतु छमाही सर्टिफिकेट कोर्स भी प्रारंभ किया जाएगा।

अतिथियों का स्वागत पाग, चादर तथा मोमेंटो से किया गया, जबकि शिविर में शामिल एक सौ प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र तथा मेडल प्रदान कर सम्मानित किया गया। धन्यवाद ज्ञापन शिविर की संयोजिका डा ममता स्नेही ने किया।