मंत्री महोदय ने कहा- संस्कृत को रोजगार से जोड़ना जरूरी।
मंत्री महोदय के ऐच्छिक कोष से निर्मित छात्रावास का किया गया लोकार्पण।
लगमा आश्रम को विद्यापीठ बनाने की करेंगे पहल।
#MNN@24X7 दरभंगा, 09 अक्टूबर 2022 :- शरद पूर्णिमा के मौके पर तारडीह प्रखण्ड के लगमा स्थित प्रसिद्ध जदगीश नारायण ब्रह्मचर्य आश्रम में मिथिला के विद्वानों का जमावड़ा लगा।
इस मौके पर संस्कृत व संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और वृत्ति निर्माण में इस आश्रम के योगदान पर संगोष्ठि आयोजित की गई। इस कार्यक्रम को बिहार सरकार के जल संसाधन व सूचना एवं जन-सम्पर्क विभाग के माननीय मंत्री श्री संजय कुमार झा ने भी संबोधित किया तथा वहाँ अपने ऐच्छिक कोष से निर्मित एक छात्रावास के साथ-साथ चाहरदिवारी और द्वार का लोकार्पण किया।
उन्होंने अपने संबोधन में लगमा आश्रम को विद्यापीठ बनाने के लिए बिहार सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक पहल करने की बात कही है।
उन्होंने मैथिल विद्वानों को संबोधित करते हुए संस्कृत को रोजगार से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही उन्होंने शरद पूर्णिमा के महत्व के बारे में भी बताया।
उन्होंने कहा कि आज हम शरद पूर्णिमा के दिन लगमा के इस पवित्र आश्रम में एकत्रित हुए हैं। हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का काफी महत्व है। विज्ञान भी मानते हैं कि इस दिन पृथ्वी चंद्रमा के सबसे नजदीक होती है। शास्त्रों के मुताबिक चंद्रमा मनुष्य के मन को शांत करता है।’
पूर्णिमा की रात के चांद के महत्व के बारे में बताते हुए उन्होंने देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति और मिसाइलमैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से जुड़ी कहानी के बारे में भी बताया।
उन्होंने कहा, ”कलाम साहब कहा करते थे कि वे पूर्णिमा की रात को जरूर 2-3 घंटा खुले आसमान के नीचे में बिताते थे। इस प्रक्रिया से उनका मन काफी शांत रहता था। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनका यह सिलसिला जारी रहा है। यह सीख कलाम साहब को उनके पिता ने दी थी। उनके पिता को रामेश्वर मंदिर के साधुओं ने पूर्णिमा की रात के चांद के महत्व के बारे में बताया था। कलाम साहब के पूर्वजों को रामेश्वर मंदिर के प्रथम प्रसाद ग्रहण करने का भी अधिकार प्राप्त था।”
लगमा आश्रम के योगदान का जिक्र करते हुए माननीय मंत्री ने कहा कि 21वीं सदी में भी इस आश्रम ने गुरुकुल की परंपरा को जीवंत रखा है। इस भौतिक युग में भी यह आश्रम वैदिक और संस्कृत की शिक्षा के प्रसार में जुटा हुआ है। आज भी यहां के बटुक भिक्षाटन कर अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं।
उन्होंने कहा “मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि मैं आज उनके लिए एक छोटा सा प्रयास कर पाया, उनके लिए एक छात्रावास की व्यवस्था की।”
संस्कृत को रोजगार से जोड़ने की अपील करते हुए श्री झा ने लोगों से इस भाषा से जुड़े पेशे को लेकर धारणा बदलने की अपील की।
उन्होंने कहा, ”हमें यह समझना होगा कि संस्कृत रोजगार की एक भाषा है। आज के समय में दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर हो या फिर कैलिफोर्निया जैसा अमेरिका का शहर, पंडितों के पास रोजगार है। आज का जमाना टेक्नोलॉजी का है। भारत में बैठकर पंडित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विदेशों में भी पूजा कराते हैं। उनके पास नंबर लगा होता है।”
उन्होंने आगे कहा, ये पंडित कौन हैं? ये हमारे-आपके बीचे के ही लोग हैं। इसलिए हमें इनके प्रति धारणा बदलने की आवश्यकता है। यह रोजगार के एक जरिया है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा संस्कृत के विद्वानों से इस विषय को और भी भिन्न रोजगारों से जोड़ने के लिए मंथन करने की अपील की। उन्होंने इस क्षेत्र में रिसर्च की आवश्यक्ता पर बल दिया।
उन्होंने कहा ”सरकार आती-जाती रहती है, लेकिन विद्वानों की विद्वता स्थाई है। उनकी राय सरकारों के लिए भी काफी महत्व रखती है। अगर कुछ तथ्यात्मक बातें आपकी तरफ से निकलकर आती है तो मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि मैं अपनी शक्ति के मुताबिक इसे सरकार में रखूंगा।”
इस मौके पर झा ने कहा कि मुझे सांस्कृतिक विरसातों के विकास को लेकर काम करने में एक अलग आनंद की अनुभूति होती है। जैसे संस्कृत है वैसे ही मैथिली हमारे संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। मैंने मिथिलाक्षर को लेकर भारत सरकार में काफी ठोस पहल किया था। कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति पंडित शशिनाथ झा भी इसके साक्षी हैं। मैंने केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से मिथिलाक्षर के संरक्षण और संवर्धन को लेकर एक कमिटि गठित करवायी थी। इसमें मिथिला के चार विद्धानों ने अपनी-अपनी राय दी है। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार में दे दी है। इस रिपोर्ट पर कार्रवाई का इंतजार है। जल्द ही मैं इस मामले को लेकर इस विभाग के मंत्री से मिलूंगा और इस पर ठोस कार्रवाई की कोशिश करूंगा।
मिथिला की धरती को उर्वर बताते हुए मा0 मंत्री ने इस मौके पर कई विद्वानों को याद किया।
उन्होंने कहा, ”इस धरती पर उदयनाचार्य, मंडन मिश्र, वाचस्पति मिश्र, भारती, कुमारिल भट्ट, गंगेश उपाध्याय, विद्यापति, शंकर मिश्र, पक्षधर मिश्र, खंडवाला राजवंश के पहले महराजा महेश ठाकुर, बच्चा झा जैसे विभूतियों ने जन्म लिया। उनकी विद्वता आज भी हमारे बीच ग्रंथों के रूप में मौजूद हैं।” उन्होंने कहा कि ये नाम अंतिम नहीं हैं। और भी कई विद्वान इस धरती ने दी है। यहां की जमीन इस मामले में काफी उर्वर है। इसे यहीं नहीं थमने देना चाहिए। आवश्यकता है इसे नई पीढ़ि में ट्रांसफर करने की।
संस्कृत विश्वविद्यायल के कुलपति पं. डॉ. शशिनाथ झा, जदगीश नारायण ब्रह्मचर्य आश्रम लगमा के आचार्य और कार्यक्रम के आयोजक श्री कृष्ण मोहन दास ब्रह्मचारी ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।