#MNN@24X7 दरभंगा। आज 19/10/2022 को महाराजा कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन में “प्रोफेसर हेतुकर झा स्मृति व्याख्यान सह वर्कशाप” की कड़ी में तीसरा व्याख्यान डाॅ मित्रनाथ झा ने “Mithila Painting : An Overview” विषय पर दिया। मिथिला चित्रकला के इतिहास पर विस्तृत प्रकाश डाला। 1934 के भूकंप के बाद मधुबनी के सब डिविजनल औफिसर डबल्यू जी आर्चर भूकंप की क्षति का आकलन करने के समय टूटे मकानों पर बने भित्ति चित्र देखकर अचम्भित हो गये।

उन्होंने इस चित्रकला पर एक लम्बा आलेख “मार्ग” में लिखा, तब दुनिया का ध्यान इस चित्रकला की ओर गया। बाद के वर्षों में जितवारपुर, रांटी और हरिनगर गाँव की महिलाओं ने इस कला को विस्तृत आयाम प्रदान किया। इस कला का उत्स हम वैदिक साहित्य में भी पाते हैं। आलेपन से अरिपन तक का सफर इस कला ने आवाम के हाथों से किया। साठ के दशक में पड़े अकाल ने इस कला के व्यवसायिककरण का मार्ग प्रशस्त किया। इसके नामकरण पर मधुबनी चित्रकला या मिथिला चित्रकला पर अपने विचार प्रस्तुत किया।

इस चित्रकला के विभिन्न जातियों की कला एवं उनके विभिन्न पक्षों को विस्तार से बताया। मिथिला चित्रकला को अधिक पोपुलर बनाने में डबल्यू जी आर्चर से अधिक बड़ा काम उनकी पत्नी मिचेल आर्चर ने किया। इनका लेखन इस चित्रकला को अकादमिक बहस में ला दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मैथिल विद्वानों एवं शोधकर्ताओं ने इस कला पर काफी लिखा। पहली बार लंदन में मिथिला चित्रकला की प्रदर्शनी 1948 में लगाया गया था, जो विदेश में इसकी पहली प्रदर्शनी थी। भाष्कर कुलकर्णी, उपेन्द्र महारथी, मुल्कराज आनन्द, पुपुल जयकर जैसे कला मर्मज्ञों ने इसे अकादमिक बहस में काफी प्रतिष्ठा दिलाई।

सभा की अध्यक्षता डाॅ अवनीन्द्र कुमार झा ने किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में इन्होंने मिथिला चित्रकला के वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला। पिछले पांच दशकों में इस चित्रकला में आये परिवर्तन और बाजार के प्रभाव को रेखांकित किया।

आगत अतिथियों का स्वागत संस्था के कार्यपालक पदाधिकारी श्री श्रुतिकर झा ने किया। पाग दोपटा एवं मेमेंटो से मुख्य वक्ता का स्वागत हुआ। प्रश्नोत्तरी सेशन में दीपेशचंद्र, जमील हसन अंसारी और सुशांत कुमार ने प्रश्न उठाये।

सभा में डाॅ जमील हसन अंसारी, डाॅ सुशांत कुमार, दीपेशचंद्र, संतोष कुमार, इरफान अहमद पैदल, पारस नाथ सिंह ठाकुर, संतोष, अरुण कुमार आदि उपस्थित थे।