#MNN@24X7 दरभंगा। राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान ,मोहनपुर दरभंगा के द्वारा दिल्ली पब्लिक स्कूल, कादिराबाद, दरभंगा में “हर दिन, हर घर आयुर्वेद” कार्यक्रम के अंतर्गत ‘आयुर्वेद संबंधित अनुभव को साझा करना ‘ विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान के प्राचार्य प्रो. दिनेश्वर प्रसाद, डॉ दिनेश कुमार ,डॉ मुकेश कुमार, डॉ दिनेश राम एवं दिल्ली पब्लिक स्कूल, दरभंगा के प्राचार्य श्री संजय कुमार झा के द्वारा दीप प्रज्वलन करके किया गया। छात्रों के द्वारा स्वागत गान प्रस्तुत किया गया। प्राचार्य प्रो. दिनेश्वर प्रसाद ने बताया आयुष मंत्रालय भारत सरकार के दिशा-निर्देशन में आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत ” हर दिन,हर घर आयुर्वेद ” को पूरे भारतवर्ष में मनाया जा रहा है।
भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के प्रति जन जागरूकता फैलाने हेतु “आयुर्वेद संबंधी अनुभवों को साझा करना” विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति ही नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन विज्ञान है। आयुर्वेद का प्रथम लक्ष्य है- स्वस्थ मनुष्य की स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं दूसरा लक्ष्य रोगी पुरुष के रोग का शमन करना। आयुर्वेद बीमारी उत्पन्न ना हो इसके बारे में बात करता है। स्वास्थ्य की गुणवत्ता को बढ़ाने हेतु आयुर्वेद में दिनचर्या, ऋतुचर्या, रात्रि चर्या आदि का वर्णन किया गया है। हमारी मिथ्या आहार एवं विहार के कारण ही रोग उत्पन्न होते हैं। आहार सेवन विधि विषय पर बोलते हैं उन्होंने कहा कि-हमें गर्म भोजन, स्निग्ध, एकाग्र चित्त एवं मौन होकर बिना हंसते हुए , भोजन की प्रशंसा करते हुए आहार को ग्रहण करना चाहिए।
भोजन करने के पूर्व पैर को गीला कर लेना चाहिए। सर्वप्रथम हमें अदरक और सेंधा नमक को लेना चाहिए। इससे पाचन शक्ति बढ़ने के साथ-साथ अरुचि खत्म होती है। भोजन हमेशा धरती पर बैठकर करना चाहिए। भोजन को धीरे- धीरे चबाकर करना चाहिए। अति- शीघ्रता से भोजन नहीं करना चाहिए। पूर्व का किया हुआ भोजन पर जाने पर ही भोजन करना चाहिए। सर्वप्रथम हमें मधुर रस का सेवन करना चाहिए। भोजन के अंत में पापड़ खाना चाहिए।
भोजन के उपरांत कुल्ला कर हाथों की भीगी हुई अंगुलियों से आंख को स्पर्श करना चाहिए । इससे नेत्र की ज्योति बढ़ती है। इसके उपरांत सौ कदम चलना चाहिए। मिथिलांचल में पान का सेवन अधिक किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार भोजन के बाद पान खाना चाहिए। इससे कफ की वृद्धि एवं हृदय रोग नहीं होता है। छात्रों के बीच 21वीं सदी में आयुर्वेद की महत्ता को बताते हुए उन्होंने कहा की वर्तमान समय में पूरे विश्व की नजर भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की ओर है। आयुर्वेद के प्रति अब जनमानस की श्रद्धा बढ़ने लगी है। छात्रों को अपने घर आंगन में औषधीय पेड़- पौधों को लगाने के लिए प्रेरित किया।
डॉ मुकेश कुमार ने बताया महर्षि सुश्रुत के द्वारा स्वास्थ्य की वैज्ञानिक परिभाषा प्रस्तुत किया गया है। उनके द्वारा प्रस्तुत संपूर्ण स्वास्थ्य की परिभाषा को आज विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा भी स्वीकृत किया जा चुका है। महर्षि सुश्रुत ने स्वास्थ्य के दो पक्ष को बताया है- शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य। शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के स्तर पर अगर हम स्वस्थ हैं तो उसे संपूर्ण स्वास्थ कहां है कहा गया है। मानसिक स्वास्थ्य का वर्णन करते हुए कहा है कि ‘ जिस व्यक्ति के आत्मा, मन एवं इंद्रिय प्रसन्न हो वही व्यक्ति मानसिक स्तर पर स्वस्थ माना जाता है। आज इस भागदौड़ की जिंदगी में हम अपनी आत्मा के आनंद स्वरूप को भूल चुके हैं।
डॉ दिनेश राम ने कहा कि चित्त की अनंत वृत्तियों को योगाभ्यास के माध्यम से रोका जा सकता है और इच्छाएं जब शांत होने लगती है तो हमारा मन भी शांत होने लगता है। प्राणायाम के माध्यम से मन पर नियंत्रित किया जा सकता है। इनके द्वारा छात्रों के समक्ष प्राणायाम एवं आसन करके दिखाया गया।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ दिनेश कुमार ने कहा की हम आयुर्वेद के सिद्धांतों के साथ जितना ही करीब रहते हैं, उतना ही हमारी स्वास्थ्य की गुणवत्ता प्रबल होती है। हम आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपनाकर 100 वर्ष की लंबी आयु जी सकते हैं। हमें रात्रि में दही का सेवन नहीं करना चाहिए। बिना चीनी एवं आंवला चूर्ण मिलाकर दही का सेवन नहीं करना चाहिए। मूली की सब्जी बाजार में आ चुकी है। हम सब के द्वारा मूली के पराठे दूध के साथ सेवन किया जाता है। दूध और मूली को एक साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग होने का भय रहता है।
छात्रों को मानसिक रूप से दृढ़ता हेतु यह कहा की हम जहां पर और जिस रूप में खड़े हैं वहां ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वाह करना चाहिए। आज के युवा प्रतिस्पर्धा के दौर से गुजर रहे है। आयुर्वेद के अनुसार हमें सफलता के कारणों से ईर्ष्या करना चाहिए। इससे हमें मेहनत करने की सीख मिलती है।
मानसिक कार्यक्षमता को बढ़ाने वाले औषधियों के विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया की ब्राह्मी, शंखपुष्पी का सेवन पुष्य नक्षत्र में करने से मेधा शक्ति का विकास होता है। हमारी स्मरण शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ती चली जाती है। मानसिक खुशहाली हेतु हमें आयुर्वेद में वर्णित सदवृत्त का पालन जागरूकता के साथ करनी चाहिए।
अधारणीय वेग के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें भूख, प्यास, मूत्र,प्यास, निद्रा आंसू आदि के वेगों को नहीं रोकना चाहिए। इसको रोकने से नाना प्रकार के रोगों की उत्पत्ति होती है। धारणीय वेग के बारे में छात्रों के बीच चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि हमें मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक स्तर पर किसी प्राणी कि के विषय में अहित की बात नहीं सोचना चाहिए। अगर ऐसा विचार आए तो उसको रोकना चाहिए।