#MNN@24X7 दरभंगा। जीवन शतकीय पारी खेलने वाले मैथिली के वरेण्य साहित्यकार प्रो अमरनाथ झा का बुधवार की देर रात निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलने पर विद्यापति सेवा संस्थान ने गुरुवार को शोक जताया।

संस्थान की ओर से शोक संवेदना व्यक्त करते हुए महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने उन्हें मिलनसार स्वभाव वाला मिथिला-मैथिली के विकास का सच्चा हितैषी बताया। उन्होंने उनके विपुल रचनाकर्म को रेखांकित करते हुए कहा कि मैथिली साहित्य के भंडार को समृद्ध करने में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।

मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि उनकी रचनाशीलता ने परवर्ती पीढ़ी के लिए ऊर्जा और रचना धर्मिता की उर्वर भूमि तैयार की। डा बुचरू पासवान ने उन्हें युगद्रष्टा व त्यागी पुरुष बताते हुए कहा कि मैथिली साहित्य का विकास उनके जीवन का एकमात्र मकसद था।
वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत झा ने कहा कि प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी लेखन की निरंतरता बनाए रखना उनकी विशेषता थी। प्रो जीवकांत मिश्र ने कहा कि अपने कृतित्व एवं व्यक्तित्व के लिए वे आम मिथिलावासी के दिलो-दिमाग में हमेशा जीवंत बने रहेंगे।

प्रवीण कुमार झा ने कहा कि ‘सारस्वत सरमे हे मराल’ पुस्तक के माध्यम से अमरनाथ झा ने मैथिली के मूर्धन्य साहित्यकार रमानाथ झा के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध पक्षों का जैसी मौलिकता के साथ विवेचन किया वह आज भी स्पृहणीय बना हुआ है। हीरा कुमार झा ने अमरनाथ झा को मिथिला के पांडित्य परंपरा की अनमोल निधि बताया।

संवेदना व्यक्त करने वाले अन्य लोगों में डॉ महेंद्र नारायण राम, हरिश्चंद्र हरित, डॉ गणेश कांत झा, विनोद कुमार झा, प्रो विजयकांत झा, प्रो चंद्रशेखर झा बूढा भाई, डॉ उदय कांत मिश्र, डॉ महानंद ठाकुर, विनोद कुमार, दुर्गानंद झा, आशीष चौधरी, नवल किशोर झा आदि शामिल रहे।