दरभंगा। महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय के अध्यक्ष डा शिव कुमार मिश्र के अनुसार इन्टैक के विशेषज्ञ विनोद तिवारी द्वारा अपने सहयोगी देवाशीष के साथ संस्थान के प्रभारी राजदेव प्रसाद के समक्ष रघुनंदन भट्टाचार्य कृत स्मृतितत्व तथा चंडीदास शर्मण कृत गीता सुबोधिनी टीका नामक ग्रंथों का संरक्षण कार्य शुरु की गई। इस अवसर पर पांडुलिपि विशेषज्ञ पंडित मित्रनाथ झा,इन्टैक के आजीवन सदस्य चंद्र प्रकाश, पुस्तकालय प्रभारी प्रकाश चंद्र झा के अलावा संस्थान के कर्मचारीगण उपस्थित हुए।
डा मिश्र ने बताया कि इन्टैक के चेयरमैन मेजर जनरल एल के गुप्ता से एक साल पहले मिथिला की पांडुलिपियों एवं पंजी के संरक्षण हेतु गुहार लगाई गई थी जिसपर उनके द्वारा पंजी एवं दरभंगा के दो सरकारी संस्थानों मिथिला शोध संस्थान एवं कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय की दुर्लभ पांडुलिपियों की संरक्षण हेतु सहमति प्रदान की गई थी। इन्टैक बिहार चैप्टर के कन्वेनर प्रेम शरण के नेतृत्व मे इन्टैक के एक टीम ,जिसमें डा शिव कुमार मिश्र, भैरव लाल दास एवं के सी श्रीवास्तव शामिल थे,द्वारा सरकार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार से मिलकर आग्रह किया गया था कि दरभंगा के उक्त दोनों सरकारी संस्थाओं को संरक्षण हेतु निदेशित किया जाय।
सामान्य तौर पर इन्टैक राशि भुगतान के बाद ही संरक्षण कार्य करती है लेकिन मिथिला की पांडुलिपियों की ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए निशुल्क संरक्षण हेतु इन्टैक तैयार है। इन्टैक द्वारा उक्त दोनों संस्थानों के तीन- तीन हजार फोलियो के सरक्षण निशुल्क करवाने की प़ेशकश की गई। अपर सचिव द्वारा उक्त दोनों संस्थान को अक्टूबर माह मे ही संरक्षण कार्य मे इन्टैक के दल को सहयोग करने हेतु निदेशित किया गया था।जनवरी के अंतिम सप्ताह मे संस्थान के प्रभारी द्वारा इन्टैक बिहार चैप्टर के कन्वेनर को एक पत्र द्वारा संरक्षण कार्य शुरू करने हेतु आग्रह किया गया।
इन्टैक लखनऊ के निदेशक ममता मिश्रा द्वारा दो विशेषज्ञों को भेजकर कार्य शुरू कर दिया गया।लेकिन संस्कृत विश्वविद्यालय के द्वारा कोई अभिरुचि नहीं दिखाई गई है। इधर 27 नवंबर से महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय मे पंजी एवं कुछ दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण कार्य चल रही है।अबतक आठ हजार से अधिक फोलियो का संरक्षण कार्य पूरा हो गया है जिनमें ब्राह्मण पंजियार प्रोफेसर जयानंद मिश्र एवं कर्ण कायस्थ पंजियार संजीव प्रभाकर क्रमशः बारह एवं तीन पोथियों के अलावा सरिसब पाही निवासी अमल झा तथा बरिष्ठ इतिहासकार डा अवनींद्र कुमार झा के पांडुलिपि भी शामिल हैं । अमल झा के कुल 46 पोथियों पर काम चल रहे है जिनमें महामहोपाध्याय डा सर गंगनाथ झा द्वारा अंग्रेजी मे अनुवादित महाकवि विद्यापति की लिखनावली के अलावा सर गंगा नाथ झा ,डा अमरनाथ झा एवं आदित्य नाथ झा के अनेक हस्तलेख,गीता सार,राग रागिनी, बोद्धाधिकार,गीतावली पद्मपुराण आदि प्रमुख हैं।
डा अवनींद्र कुमार झा द्वारा अपने पुरुखों द्वारा कैथी एवं मिथिलाक्षर मे रचित अनेक दुर्लभ ग्रंथ संग्रहालय को प्रदान किया गया है जिनपर भी काम चल रहा है।इसके साथ ही अन्य धरोहर प्रेमियों के कुछ ग्रंथों पर भी विशेषज्ञ निसात आलम द्वारा काम किया जा रहा है। इन्टैक द्वारा इस वित्तीय वर्ष में मिथिला की पांडुलिपियों के संरक्षण पर कुल पंद्रह लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं ।जर्मनी से आयातित टिस्सू पेपर का प्रयोग इसकार्य मे किया जा रहा है ताकि पांडुलिपियों के संरक्षण की गुणवत्ता बनाया जा सके तथा अधिक समय तक ग्रंथ सुरक्षित रखी जा सके। प्रायः पंद्रह हजार फोलियो का संरक्षणकार्य मार्च तक पूरा किया जाना है।
07 Feb 2022