‘नयी शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता’ पर सीएम साइंस कॉलेज में संगोष्ठी आयोजित
#MNN@24X7 दरभंगा नई शिक्षा नीति: 2020, शिक्षा में उदारीकरण एवं इसके बहुउद्देशीकरण की सोच को उजागर करती है। इस नीति के अंतर्गत सरकार शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता तो देना चाहती है लेकिन संस्थाओं से वह स्वावलंबी बनने की भी उम्मीद करते हैं और संस्थाओं को स्वावलंबी बनने के लिए चरणबद्ध क्रम में एक टारगेट दे दिया गया है। यह बात ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो संजय कुमार चौधरी ने मंगलवार को सीएम साइंस कॉलेज में आयोजित संगोष्ठी में कही।
‘नयी शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि शिक्षा की नयी राष्ट्रीय नीति का मूल उद्देश्य, शिक्षा की पहुँच, समानता, गुणवत्ता, वहनीय शिक्षा एवं उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर केन्द्रित होकर मातृभाषा के सहयोग से शिक्षा को सहज, सुबोध तथा सुग्राह्य बनाना है। इससे छात्रों में रचनात्मक एवं सकारात्मक दृष्टि, तार्किक निर्णय लेने की क्षमता तथा नवाचार की भावना का विकास होगा।
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा की जनक-जानकी की मातृभूमि मिथिला संस्कार और संस्कृति की धरती रही है। उत्तम शिक्षा यहां की सदियों की परंपरा रही है। नई शिक्षा नीति 2020 में भारतीय संस्कृति, अस्मिता और गौरव के साथ इसके अस्तित्व की बात की गई है। मातृभाषा में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना इसकी खासियत है। जो भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत में जो लोग विज्ञान की पढ़ाई करते हैं, अक्सर उनका संस्कृत से कोई लेना-देना नहीं होता। जबकि जो संस्कृत की पढ़ाई करते हैं उनका भी विज्ञान की पढ़ाई से कोई सरोकार आमतौर पर नहीं देखा जाता। इस कारण अनेक तरह की भ्रांतियां विकसित हुई हैं। संस्कृत को देव भाषा कहा जाता है लेकिन यह सिर्फ देव भाषा में होकर एक दिव्य भाषा है जिसमें धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास सन्निहित है। इसे विकसित किया जाना समय की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि विज्ञान का इतिहास आर्यभट्ट से शुरू करते हैं जबकि उससे पहले की अवधि में विज्ञान के इतिहास की कोई खास बात सुनने-देखने और समझने को नहीं मिलती। आज विज्ञान और संस्कृत के अलग-थलग होने के कारण कई पांडुलिपियों को समझने बुझाने में काफी कठिनाइयां आ रही हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सन्निहित नीतियों के क्रियान्वयन के लिए शिक्षकों की नियुक्ति में विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता दिया जाना जरूरी है।
मुख्य वक्ता के रूप में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो शशि नाथ झा ने कहा कि समागम और विचार का आदान-प्रदान किसी भी संगोष्ठी की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में नीति का निर्धारण और नियुक्ति का अधिकार विश्वविद्यालय को नहीं दिया गया है। फिर स्वायत्तता को पूर्ण नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि विभिन्न शिक्षण संस्थानों में पुराने लोग लगातार सेवानिवृत हो रहे हैं पर नई नियुक्ति सरकार के हुक्म का बाट जोहने को मजबूर हैं। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा की बात को प्रमुखता से शामिल किया गया है लेकिन मातृभाषा के शिक्षकों की नियुक्ति में किसी भी तरह की तत्परता नहीं दिखाई दे रही। यह कितना हैरतअंगेज है कि विभिन्न शिक्षण संस्थानों में तमाम वर्ग खाली पड़े हैं। परंतु शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पा रही। जबकि सदन में यदि एक सीट खाली हो जाए तो लगता है कि संविधान खतरे में चला जाएगा और तुरंत न सिर्फ आपाधापी शुरू हो जाती है बल्कि तत्काल चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती। उन्होंने कहा कि आज नामांकन हो रहे हैं, पाठ्यक्रम भी चल रहे हैं लेकिन इसके व्यवस्थापन की कोई संगठित व्यवस्था नहीं हो रही है। जिसके लिए हम सभी जवाबदेह हैं।
मौके पर बेनीपुर के विधायक प्रो विनय कुमार चौधरी ने कहा कि विश्वविद्यालय के संचालन में स्वायत्तता की कभी कोई कमी नहीं रही है। खासकर बिहार के विश्वविद्यालय में स्वायत्तता हमेशा से बढ़-चढ़कर रहती आई है। लेकिन इस स्वायत्तता को सिस्टम ने स्वतंत्रता में परिणत कर इसे खोखला बना रखा है। उन्होंने कहा कि किसी भी नीति के निर्धारण को बनाने में जितना चिंतन किया जाता है उसके क्रियान्वयन में उतना ध्यान नहीं दिया जाता। जबकि यह काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने संबोधन में हाल में कुलपतियों की नियुक्ति में कुलाधिपति एवं सरकार द्वारा पारदर्शिता बरतने की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसा होने से शिक्षा क्षेत्र में उत्साह और उल्लास का अभूतपूर्व भाव जगा है। उन्होंने मंचासीन दोनों कुलपतियों से आग्रह किया कि वे विश्वविद्यालयों के विभिन्न गतिविधियों के संचालन में नियम परिनियम का गहन अध्ययन कर इसके नियमानुकूल ईमानदारी पूर्वक शिक्षा मंदिर को उन्नत बनाने की दिशा में अग्रसर हों।
इससे पहले अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य प्रो दिलीप कुमार चौधरी ने मिथिला की गौरवशाली परंपरा अनुरूप पाग, चादर, मखाना का माला एवं मिथिला चित्रकला प्रदान कर किया। अपने संबोधन में उन्होंने महाविद्यालय की विभिन्न गतिविधियों की चर्चा करते हुए नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालय को स्वायत्तता दिए जाने का समर्थन करते हुए कहा कि इसके प्रावधानों के तहत विश्वविद्यालय को स्वायत्तता मिलने से प्रशासनिक, शैक्षणिक एवं इसके अंतर्गत आने वाले संस्थानों को लाभान्वित करने के लिए सभी प्रकार के निर्णय लेने में आसानी होगी और इसका लाभ शिक्षा से जुड़े सभी हितकारकों को समान रूप से प्राप्त हो सकेगा। कार्यक्रम में विभिन्न महाविद्यालय के प्रधानाचार्य शिक्षक विश्वविद्यालय के अनेक पदाधिकारी स्नातक उत्तर विभाग के विभाग अध्यक्ष एवं शिक्षक शिक्षकों के साथ-साथ अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।