दरभंगा। विश्व विरासत दिवस के अवसर पर चंद्रधारी संग्रहालय में मिथिला की दुर्लभ धरोहरों की सात दिवसीय चित्र प्रदर्शनी ( 18-24 अप्रैल ) को शुभारंभ करते हुए प्रोफेसर विद्यानाथ झा ने कहा कि मिथिला की पुरासम्पदा एवं मूर्तियां भारतीय कला को समृद्ध करेगी।
प्रो. झा के अनुसार संग्रहालय के प्रदर्शनी मे जिन दुर्लभ मूर्तियों को प्रदर्शित की गई है वह भारत के कला इतिहास के लिए मील का पत्थर सावित हो सकेगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर उदय नारायण तिवारी ने कहा कि मिथिला के प्राचीन प्रतिमाओं के सर्वेक्षण, अध्ययन एवं प्रकाशन की नितांत आवश्यकता है।डा तिवारी ने चंद्रधारी संग्रहालय के पुस्तकालय के दुर्लभ संग्रह से लाभ उठाने के लिए शोधछात्रों को निदेशित किया। बरिष्ठ इतिहासकार डा अवनींद्र कुमार झा ने कहा कि मिथिला की पुरास्थलों के संरक्षणकार्य एवं सुरक्षण की आवश्यकता है। मूर्ति विशेषज्ञ डा सुशांत कुमार ने मिथिला की कर्णाटकालीन मूर्तियों के विषय मे विस्तार से जानकारी प्रस्तुत की। संग्रहालयाध्यक्ष डा शिव कुमार मिश्र ने अतिथियों को स्वागत करते हुए कहा कि प्रदर्शनी में प्रस्तुत कुछ ऐसी मूर्तियों के तस्वीरे हैं जो अबतक भारत में कहीं नहीं देखी गई।डा. मिश्र के अनुसार पिछले दिनों नेपाल के सिमरौनगढ मे जो वेणुगोपाल कृष्ण की मूर्ति मिली है वह भारतीय कला के लिए अद्भुत है। तिलकेश्वर गढ से प्राप्त हरिहरार्क प्रतिमा एवं सहरसा जिला से प्राप्त मारविजय शैली की बुद्ध मूर्ति देश के उन कला विशेषज्ञों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है जो लोग हमेशा मिथिला की मूर्तिकला के प्रति उपेक्षा भाव रखते रहे हैं।इस प्रदर्शनी मे बलिराज गढ,पस्टन नवटोली के बौद्ध स्तूप, राजनगर के धरोहर भवन के चित्रों के अलावा करीब छ: दर्जन देवी देवताओं की प्राचीन प्रतिमाओं के चित्र प्रदर्शित की गई है जो मिथिला की समृद्ध विरासत का प्रतीक है। लक्ष्मीश्वर पब्लिक लाइब्रेरी के सचिव तरुण मिश्र एवं क्षेत्रीय अभिलेखागार के प्रभारी सचिन चक्रवर्ती ने पुस्तकालय के कैटलॉग तैयार करने हेतु सुझाव दिया तथा पुस्तकों के डिजीटलाईजेशन की चर्चा की। इस अवसर पर कल्पना मिश्रा, शोधछात्र मुरारी कुमार झा एवं गौतम प्रकाश,रश्मि कुमारी,रत्नेश कुमार वर्मा, बीजेन्द्र मिश्र, भारत भूषण झा,संतोष कुमार, प्रमोद कुमार,दीपक कुमार झा, विजय श्रीवास्तव ,धर्मेंद्र राय,आनंद गुप्ता के अलावा अनेक शोधछात्र,बुद्धिजीवी, संग्रहालय कर्मी उपस्थित रहे।