दरभंगा। विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद जिसका लक्ष्य है- स्वस्थ मनुष्य की स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी के रोग का शमन करना।आयुर्वेद एक चिकित्सा विज्ञान के साथ-साथ संपूर्ण जीवन विज्ञान है। हम बीमार हो ही नहीं और हमारे स्वास्थ्य की गुणवत्ता में उत्तरोत्तर वृद्धि हो इस पर विस्तृत रूप से चर्चा आयुर्वेद में की गई है।
आयुर्वेद में स्वास्थ्य संरक्षण हेतु आधारभूत सिद्धांतों को स्थापित किया गया है,जिसके अनुपालन से निश्चित रूप से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा होती है। जिसमें दिनचर्या ,संध्याचर्या
,रात्रिचर्या, ऋतुचर्या एवं सदवृत्त आदि का सविस्तार वर्णन किया गया है। आयुर्वेद में कुल छह ऋतु का वर्णन किया गया है । ऋतुओं का प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे शारीरिक क्रियाओं पर पड़ता है, जिससे हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
ऋतु के बदलने से हमारे आसपास के वातावरण में भी कई बदलाव आते हैं , जिसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर होता है। आयुर्वेद में हर ऋतु का अनुसार आहार-विहार जीवन शैली का वर्णन किया गया है, उसका पालन करने से हमारे शरीर में दोष वैषम्य नहीं होता और हम ऋतुजन्य रोगों से आक्रांत नहीं होते हैं।
महाविद्यालय परिसर में चलाए जा रहे हैं मेडिकल एस्ट्रोलॉजी विभाग के प्रभारी डॉ दिनेश कुमार ने यह बताया कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य जब वृष राशि में प्रवेश करता है, तो ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है एवं सूर्य को मिथुन राशि में रहने तक रहती है। भारतीय जयेष्ठ और अषाढ़ का माह ग्रीष्म ऋतु का समय होता है।
आयुर्वेद के अनुसार मध्य मई से लेकर मध्य जुलाई तक का समय ग्रीष्म ऋतु का होता है। 17 मई 2022 को ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। इस दिन से ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो जाएगी। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें प्रखर होती है। इस ऋतु के दरमियान तीव्र गर्मी तथा गर्म हवाएं चलती है।
राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान , मोहनपुर दरभंगा के प्राचार्य प्रो.दिनेश्वर प्रसाद ने यह बताया कि ग्रीष्म ऋतु में इंसान की शक्ति कम हो जाती है तथा शरीर में वात दोष का संचय एवं कफ दोष का ह्रास होता है। पाचक अग्नि मध्यम अवस्था में होती है। आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में सुपाच्य भोजन का सेवन करना चाहिए जो पचने मे हल्का हो । ग्रीष्म ऋतु में मधुर, शीतल द्रव तथा स्निग्ध खानपान हितकारी होता है। शीतल जल के साथ चीनी और घी मिला सत्तू का सेवन अच्छा होता है।
ग्रीष्म ऋतु में मीठे तरल सुपाच्य एवं ताजे पदार्थ का सेवन करना चाहिए। ठंडक एवं तरावट देने वाली चीजें खाएं। चटपटे, कसैले, कड़वे एवं बासी चीजें नहीं लेनी चाहिए । मूंग की दाल छिलके वाली, चने की भाजी, गेहूं की चपाती खाएं। अरहर की दाल में घी डालकर चावल के साथ खाने चाहिए। सब्जी में लौकी, तोरई ,परवल, केला, तरबूज का सेवन करना चाहिए। दूध,दही, ताजा मट्ठा एवं दूध की खीर खाए । दही रात को ना लें। गुलकंद,पेठा मिठाई , मुनक्का, खीरा एवं खरबूजा का सेवन करें । उड़द,इमली ,अमचूर, सिरका,पूरी-पराठा एवं अंडा इस मौसम में ना लें। एक गिलास दूध में घी डालकर शाम को भोजन के 2 घंटे बाद सेवन करें ।
ग्रीष्म ऋतु में दिन के समय शीतल कमरे में सोए और रात में शरीर में चंदन का लेप कर हवादार भवन के ऊपर छत पर खुली चांदनी के स्पर्श से शीतल स्थान में शयन करना चाहिए। सुबह टहलना, दो बार स्नान, ठंडी जगह पर रहना, धूप में निकलने से पहले पानी पीना तथा सिर को ढक कर जाना, बार-बार पानी पीते रहना, सुगंधित द्रव्यों का प्रयोग एवं दिन में सोना अच्छा है । बर्फ के ठंडे पानी से नये मटका या सुराही का पानी पीना हितकर है। गर्मी में चलकर आते ही पानी ना पीकर कहीं चलने से पहले पानी पिए। नींबू की शिकंजी,ठंडाई , नारियल पानी, दही की लस्सी एवं बेल का शरबत का सेवन करें । कच्चे आम को आग पर भून कर मीठा पानक बनाकर लेना चाहिए ।ताड़ के पंखे से हवा करना एवं कूलर में खस की घास लगाना चाहिए। सूती, खादी एवं हल्के रंग के वस्त्र पहनना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में स्वस्थ रहने के लिए हरड़ में उतना ही गुड़ मिलाकर सवेरे पानी के साथ प्रतिदिन लेना चाहिए।
प्रो.दिनेश्वर प्रसाद ने यह बताया कि ग्रीष्म ऋतु में धूप, अधिक परिश्रम , अधिक व्यायाम ,सहवास, प्यास रोकना, रेशमी कपड़े ,कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधन , प्रदूषित जल का सेवन अहितकर है। तीखे , नमकीन तला हुआ भोज्य पदार्थ, मसालेदार भोजन, मैदा,बेंसन से बने पचने में भारी खाद्य पदार्थों का ज्यादा मात्रा में एवं शराब का सेवन अहितकर होता है।
इस प्रकार ग्रीष्म ऋतुचर्या का पालन कर आरोग्यमय जीवन जीया जा सकता है।