*संगोष्ठी में डा फुलो, डा विकास, डा प्रफुल्ल, डा नीलम, डा शिशिर व डा चौरसिया आदि ने रखे महत्वपूर्ण विचार*
*शुकनासोपदेश नवयुवकों, सामान्य जनों, प्रशासकों व राजनेताओं के लिए शाश्वत एवं व्यावहारिक मार्गदर्शक- डा फुलो*
*शुकनासोपदेश शिल्प की दृष्टि से बेहतरीन, युवा- प्रबंधन एवं युवा- मार्गदर्शन का अद्वितीय संदेशात्मक ग्रन्थ- डा विकास*
*बाणभट्ट कृत शुकनासोपदेश श्रवण- परंपरा का विशिष्ट ग्रंथ जो काफी उपयोगी, बेहद रुचिकर एवं अत्यंत ज्ञानवर्धक- डा प्रफुल्ल*
*नव यौवन, अनुपम सौंदर्य, जन्मजात प्रभुता व अलौकिक शक्ति से उद्भूत दोषों से युवा रहें सावधान- डा चौरसिया*
सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग के तत्वावधान में “युवावस्था में शुकनासोपदेश की महत्ता” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का ऑनलाइन- ऑफलाइन आयोजन कॉलेज परिसर में किया गया। संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानाचार्य डा फुलो पासवान ने किया, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में मारवाड़ी महाविद्यालय,दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह, विषय प्रवर्तन केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर के साहित्य के प्राध्यापक डॉ प्रफुल्ल गड़वाल, अतिथि स्वागत एमआरएम कॉलेज, दरभंगा की हिन्दी प्राध्यापिका डा नीलम सेन तथा धन्यवाद ज्ञापन एमएमटीएम कॉलेज के इतिहास के प्राध्यापक डा शिशिर कुमार झा ने किया।
कार्यक्रम में मारवाड़ी कॉलेज से डा सुनीता कुमारी, दिल्ली विश्वविद्यालय से शहनाज खातून, प्रभात यादव व अभय सिंह, संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा से डा दीनानाथ साह, पश्चिम बंगाल से राजकुमार चक्रवर्ती व सोमनाथ दास, डा एकता वर्मा, संगम जी झा, बालकृष्ण सिंह, डा मीना कुमारी, डा संजय सहनी, शंभू मंडल, सीतामढ़ी से आशीष रंजन व कृष्णा पासवान, अजय, सुजीत, अभिषेक झा, मनोज मंडल, सुजीत, स्वेता, कुंदन, अनुकल्प, सुरेश, खुशी सिन्हा, विनीता, अमन, कमलेश, उमाशंकर, बसीरुल, रिचा भारती, रवीन्द्र, अभय महतो, निशित चंद्र, मनीष खुराना, ज्योति, मीनू झा, मुकेश पटेल, आरती, मधुबाला सिन्हा, अतुल झा, काजल व अमरजीत कुमार सहित 65 से अधिक व्यक्तियों ने ऑनलाइन व ऑफलाइन माध्यम से कार्यक्रम में भाग लिया।
अपने संबोधन में प्रधानाचार्य डा फुलो पासवान ने कहा कि बाणभट्ट की कालजयी रचना ‘कादंबरी’ का सबसे महत्वपूर्ण अंश शुकनासोपदेश है जो नवयुवकों, सामान्य जनों, प्रशासकों व राजनेताओं के लिए शाश्वत मार्गदर्शक है। इसमें युवाओं व राजाओं को कर्तव्यबोध कराया गया है। प्रधानाचार्य ने इस ग्रन्थ पर 3 दिवसीय कार्यक्रम करने की स्वीकृति प्रदान करते हुए इसे युवाओं को प्रदत दीक्षांत भाषण कहा।
मुख्य वक्ता के रूप में डा विकास सिंह ने कहा कि शुकनासोपदेश शिल्प की दृष्टि से बेहतरीन, युवा- प्रबंधन एवं युवा- मार्गदर्शन का अद्वितीय एवं सर्वोत्तम संदेशात्मक ग्रंथ है। गुरूपदेश न मानने एवं धन के मिथ्याभिमान से विषयों में अति आसक्ति युवाओं को कुमार्ग पर ले जाकर पथभ्रष्ट कर देती है। अहंकार का मूल धन है जो अत्यंत भयंकर होता है।
विषय प्रवेश कराते डा प्रफुल्ल गड़वाल ने कहा कि श्रवण परंपरा का विशिष्ट ग्रंथ शुकनासोपदेश काफी उपयोगी, बेहद रुचिकर एवं अत्यंत ज्ञानवर्धक है। इसमें युवाओं के कर्तव्यबोध, लक्ष्मी के स्वरूप चित्रण, युवावस्था के दोष तथा गुरूपदेश की महत्ता बताई गई है। शुकनाश जैसे अनुभवी एवं ज्ञानी प्रधानमंत्री द्वारा चन्द्रापीड़ को दिया गया उपदेश आज के युवाओं के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है।
अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत विभागाध्यक्ष सह संगोष्ठी के संयोजक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि शुकनासोपदेश के अति संक्षिप्त उपदेश यद्यपि सामायिक थे, पर ये सार्वदेशिक व सार्वकालिक महत्व का सर्वजन व्यापक जीवनदर्शन है जो विश्व के समस्त युवाओं का प्रकाशस्तंभ की भांति सदा मार्गदर्शन करता रहेगा। गीता की तरह शुकनासोपदेश का भी स्वतंत्र महत्व है। यह एक ऐसा उपदेशात्मक ग्रंथ है, जिसमें युवाओं के जीवन में स्वाभाविक रूप से आने वाले दोषों तथा उत्तरदायित्वों को समझाने का प्रयास किया गया है। उन्होंने नव यौवन, अनुपम सौंदर्य, जन्मजात प्रभुता तथा अलौकिक शक्ति से उत्पन्न दोषों से युवाओं को सदा दूर रहने की सलाह दी।
विद्वतापूर्ण कार्यक्रम का संचालन एमआरएम कॉलेज, दरभंगा की हिन्दी- प्राध्यापिका डा नीलम सेन ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन एमएमटीएम कॉलेज के इतिहास के प्राध्यापक डा शिशिर कुमार झा ने किया।