“भारतीय दर्शन और विज्ञान” पर संगोष्ठी आयोजित — दोनों ज्ञान परंपराओं के पूरक पक्ष : वक्तागण
#MNN24X7 दरभंगा, 31 अक्टूबर (संवाददाता)ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग एवं डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को “भारतीय दर्शन और विज्ञान” विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत झा ने की, जबकि उद्घाटन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया गया।

इस अवसर पर सीएमबी कॉलेज, घोघरडीहा के प्रधानाचार्य प्रो. जीवानन्द झा, विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. शिवानन्द झा, दर्शनशास्त्र की प्राध्यापिका डॉ. प्रियंका राय, संस्कृत प्राध्यापक डॉ. आर. एन. चौरसिया, फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, तथा संस्कृत अध्ययन केन्द्र के शिक्षक अमित कुमार झा सहित कई विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए।

मुख्य वक्ता डॉ. प्रियंका राय ने कहा कि “भारतीय दर्शन और विज्ञान विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।” उन्होंने कहा कि आज जिन तथ्यों को विज्ञान प्रमाणित कर रहा है, वे भारतीय दर्शन में पहले से ही मौजूद हैं। दर्शन अंतर्दृष्टि है, जबकि विज्ञान बाह्य दृष्टि। दोनों का अंतिम उद्देश्य सत्य और मुक्ति की प्राप्ति है। उन्होंने पीपीटी के माध्यम से छह आस्तिक दर्शनों के वैज्ञानिक पहलुओं को विस्तार से प्रस्तुत किया।
उद्घाटन भाषण में प्रो. जीवानन्द झा ने कहा कि भारतीय दर्शन में आधुनिक विज्ञान के सभी तत्व निहित हैं। दर्शन को समझने से विज्ञान के कई रहस्य उजागर होते हैं। मुख्य अतिथि डॉ. शिवानन्द झा ने कहा कि दर्शन अपने आप में विज्ञान है, जिसकी आधुनिक विज्ञान ने केवल पुनरावृत्ति की है।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. कृष्णकांत झा ने कहा कि दर्शन का मूल आधार वेद और गीता हैं। विज्ञान जहां प्रयोग से सत्य की पुष्टि करता है, वहीं दर्शन आत्मबोध और अनुभव से सत्य को पहचानता है — दोनों का लक्ष्य एक ही है, ज्ञान की प्राप्ति।
संगोष्ठी के संयोजक डॉ. आर. एन. चौरसिया ने कहा कि भारतीय दर्शन एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला जीवन दर्शन है। विज्ञान जहां भौतिक जगत के रहस्यों की खोज करता है, वहीं दर्शन आत्मिक सत्य की अनुभूति कराता है। दोनों मिलकर भारत की प्राचीन ज्ञान-परंपरा को आधार प्रदान करते हैं।
फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन की आत्मा संस्कृत में निहित है, जिसमें ज्ञान और विज्ञान दोनों के तत्त्व मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि दर्शन की गहराई और विज्ञान की प्रयोगशीलता भारतीय बौद्धिक परंपरा को अद्वितीय बनाती है।
कार्यक्रम का संचालन संस्कृत प्राध्यापिका डॉ. मोना शर्मा ने किया, जबकि मंगलाचरण श्रवण कुमार ठाकुर ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डॉ. सोनू राम शंकर, डॉ. मारुति नंदन भारद्वाज, डॉ. संजय कुमार, डॉ. चंदन कुमार, तथा विश्वविद्यालय के शोधार्थी राम सिया कुमारी और नेहा कुमारी सहित 60 से अधिक प्रतिभागी उपस्थित थे। सभी प्रतिभागियों को फाउंडेशन की ओर से प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।

 
      