शैलेन्द्र बाबू सहज शिल्प के जादूगर : हीरेन्द्र झा।

#MNN@24X7 दरभंगा, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मैथिली विभाग द्वारा प्रो शैलेन्द्र मोहन झा की जयंती विभागाध्यक्ष प्रो दमन कुमार झा की अध्यक्षता में आयोजित हुई। इस कार्यक्रम में मैथिली के चर्चित कथाकार हीरेन्द्र कुमार झा ने बतौर मुख्य वक्ता शैलेन्द्र झा के उपन्यास पक्ष पर विशद व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि शैलेन्द्र बाबू विरचित प्रतिमा और मधुश्रावणी चर्चित उपन्यासों में से है, जिसका अंत दुखान्त घटना से हुआ है। मधुश्रावणी उपन्यास सहज एवं सरल शैली में लिखी गईं प्रेम कथा है जिसमें नव-विवाहितों के द्वारा किये गए महत्वपूर्ण विधानों का वर्णन है। वधू पक्ष की ओर से भार आता है और उसके बाद ही विवाह के रस्म को पूर्ण माना जाता है। हीरेन्द्र कुमार झा ने इसके विभिन्न पक्ष को बड़ी गंभीरता से उद्घाटित किया।

अध्यक्षीय संबोधन देते हुए प्रो दमन ने कहा कि प्रो शैलेन्द्र मोहन झा हमारे विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में सन्1975 से सन्1991 तक अध्यक्ष रहे और सन् 1963 से इसी विभाग में अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया था। वे न सिर्फ प्राध्यापक रहे बल्कि मैथिली साहित्य के मान्य उपन्यासकार, कथाकार, ललित निबंधकार, अनुसन्धानकर्ता, एवं सुपरिचित संपादक रूप में प्रतिष्ठित थे।1965 में आधुनिक मैथिली साहित्य पर पीएचडी एवं 1968 में ब्रजबुली साहित्यक उदभव ओ विकास पर डी लिट की उपाधि से विभूषित हुए। प्रतिमा, मधुश्रावणी, पथ हेरथि राधा, विद्यापति, ज्योतिरीश्वर, कथा कहानी, असमिया साहित्यक इतिहास, शरचंद्र व्यक्ति ओ कलाकार आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। उनके व्यक्तित्व की सहजता एवं सौम्यता उनके साहित्य में भी परिलक्षित होते हैं। प्रो शैलेंद्र अपने समय के प्रसिद्ध अनुसन्धानकर्ता एवं उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध रहे। विभागीय शिक्षक प्रो अशोक कुमार मेहता ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व कि विशद समीक्षा प्रस्तुत की वहीं डॉ सुनीता कुमारी ने उनके साहित्य को पढ़ने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया।

कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन डॉ अभिलाषा कुमारी ने किया। इस मौके पर मनीष कुमार , नेहा, प्रियंका, प्रवीण, शीला, शालिनी, मनोज, मिथलेश, राजनाथ, वंदना, भोगेन्द्र, दीपक, हरेराम, दीपेश, सत्यनारायण आदि शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित थे।