#MNN@24X7 दरभंगा संस्कृत संजीवनी विद्या, इस संभाषण शिविर के उपरांत प्रतिभागी धारा प्रवाह सरल संस्कृत बोलने में हो जाएंगे सक्षम।
#MNN@24X7 दरभंगा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सौजन्य से संचालित “संस्कृत अध्ययन केन्द्र” के तत्वावधान में 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर का उद्घाटन सत्र विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो की अध्यक्षता में पीजी संस्कृत विभाग में आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में वीएसजे कॉलेज, राजनगर, मधुबनी के प्रधानाचार्य प्रो जीवानन्द झा, विशिष्ट अतिथि के रूप में मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ विकास सिंह, विषय प्रवेशक डॉ आर एन चौरसिया, स्वागत कर्ता डॉ ममता स्नेही, धन्यवाद कर्ता डॉ मोना शर्मा, शिविर-प्रशिक्षक अमित कुमार झा तथा संचालन कर्ता द्वय- जेआरएफ सदानंद विश्वास एवं मणि पुष्पक घोष, डॉ प्रेम कुमारी, विकास कुमार यादव, जिग्नेश कुमार, मंजू अकेला, विद्यासागर भारती, योगेन्द्र पासवान, उदय कुमार उदेश, प्रियंका, शिवानी, शालिनी, साजिया, हेमा, दीपेश रंजन, शेखर सुमन, प्रहलाद, अंशु अमन, कृष्णा पासवान, रोशन, रजत रंजन, अभिषेक, अंकित, हिमांशु, नवजीत, प्रत्यूष, जतिन रमण, मुकेश, अमित झा तथा विपुल राय आदि सहित 140 से अधिक व्यक्ति ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में भाग लिए।
अध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि विभाग द्वारा संस्कृत संभाषण हर वर्ष न केवल विभाग में, बल्कि बाहर भी आयोजित किया जाता है। संस्कार एवं संस्कृति की रक्षक संस्कृत सर्वाधिक विस्तृत एवं सुदृढ़ भाषा है जो सभी भाषाओं की रीढ़ है। उन्होंने कहा कि आने वाला समय संस्कृत का ही है, क्योंकि यह धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। निरंतर अभ्यास ही व्यक्ति को संस्कृत संभाषण में कुशल बन सकता है। मुख्य अतिथि प्रो जीवानन्द झा ने कहा कि संस्कृत पढ़ने वाला व्यक्ति सर्वगुण संपन्न हो जाता है। इसलिए छात्र संस्कृत अध्ययन पूरे मनोयोग एवं आत्मसम्मान के साथ करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करें। आज संस्कृत के अनेक ग्रंथ एवं पांडुलिपियां उपलब्ध हैं, जिनकी व्याख्या, हिन्दी एवं अंग्रेजी में अनुवाद करने की जरूरत है।
विशिष्ट अतिथि डॉ विकास सिंह ने कहा कि संस्कृत न केवल प्राचीन एवं वैज्ञानिक भाषा है, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा को भी अक्षुण्ण बनाए हुए है। विश्व की अनेक भाषाएं नष्ट हो गई, पर संस्कृत आज भी पाणिनि के समय की तरह ही मूल रूप में विद्यमान है। संस्कृत अध्ययन के बिना अन्य विषयों के ज्ञान अधूरे रह जाते हैं। यह एआइ तथा कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है, जिसमें रोजी- रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। संस्कृत सीखने के लिए सुनाना, पढ़ना, लिखना तथा बोलना अनिवार्य है। संभाषण शिविर के संयोजक डॉ आर एन चौरसिया संस्कृत को संजीवनी विद्या बताते हुए कहा कि इसके मंत्रों, श्लोकों के उच्चारण एवं संस्कृत संभाषण से बीपी, हृदय रोग तथा डायबिटीज आदि रोग नियंत्रित होते हैं, क्योंकि संस्कृत बोलना अपने आप में एक बेहतरीन कसरत है। संस्कृत संभाषण में शुद्धता एवं स्पष्टता की विशेष जरूरत होती है, जिससे हमारी मानसिक एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा मानसिक शांति की भी प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को दैनिक जीवन में अपनाना एक सकारात्मक कदम होगा, क्योंकि इससे प्राचीन भाषा संस्कृत को आधुनिक संदर्भ में जीवंत रखा जा सकता है।
शिविर के प्रशिक्षक अमित कुमार झा ने धैय गीत गायन के पश्चात् संभाषण के महत्वों की चर्चा करते हुए विभिन्न दैनिक उपयोग की वस्तुओं के साथ डेमो क्लास का संचालन किया तथा प्रतिभागियों के आपसी परिचय का संस्कृत में अभ्यास करवाया। उन्होंने कहा कि 10 दिनों में छात्र धारा प्रवाह सरल संस्कृत बोलना अवश्य सीख जाएंगे। अतिथियों का स्वागत करते हुए विभागीय प्राध्यापिका डॉ ममता सनेही ने कहा कि अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र नासा ने भी सर्वश्रेष्ठ भाषा के रूप में संस्कृत का चयन किया है तथा भारत के संस्कृत विद्वानों का काफी सहयोग ले रहा है। वहीं धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संस्कृत- प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा ने कहा कि भारत ही नहीं अनेक विकसित देशों में भी संस्कृत की पढ़ाई एवं शोध हो रहे हैं। संस्कृत भाषा में ही हमारी संस्कृति, दर्शन, ज्ञान- विज्ञान तथा परंपराएं निहित हैं।