केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा संचालित संस्कृत अध्ययन केन्द्र का एक उद्देश्य 10 दिनों में धारा प्रवाह सरल संस्कृत बोलना सीखाना- डॉ घनश्याम।
संस्कृत का अध्ययन- अध्यापन सामाजिक एवं सांस्कृतिक सौहार्द के साथ ही देश को 2047 से पहले ही बनाएगा विकसित भारत- डॉ अशोक सिंह।
संस्कृत के प्रचार- प्रसार में संस्कृत अध्ययन केन्द्र तथा 10 दिवसीय संभाषण शिविर का बढ़ रहा है योगदान- संयोजक डॉ चौरसिया।
#MNN@24X7 दरभंगा, संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाकर ही भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा। पश्चिमी देशों ने भी संस्कृत ग्रंथों के ज्ञान को लेकर ही अपने विज्ञान का विकास किया और विकसित बना है। भारत की एकता-अखंडता तथा आध्यात्मिक- सांस्कृतिक उत्थान में संस्कृत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उक्त बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सौजन्य से स्थापित संस्कृत अध्ययन केन्द्र के द्वारा पीजी विभाग में गत 5 दिसंबर से संचालित 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कुंवर सिंह कॉलेज, दरभंगा के पूर्व एनएसएस पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार सिंह ने कही। उन्होंने संस्कृत की महत्ता की चर्चा करते हुए कहा कि संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन सामाजिक एवं सांस्कृतिक सौहार्द के साथ ही भारत को 2047 से पहले ही विकसित बनाएगा। इसलिए सभी व्यक्ति को संस्कृत अनिवार्य रूप से पढ़ना चाहिए। डॉ सिंह ने सभी संस्कृत प्रेमी से कम से कम 10 अन्य लोगों को संस्कृत सीखाने का संकल्प दिलाया।
अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा 2022 में स्थापित एवं संचालित संस्कृत अध्ययन केन्द्र का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य 10 दिनों में धारा प्रवाह सरलतम संस्कृत बोलना सीखना भी है। संस्कृत की महत्ता सिर्फ भाषा के रूप में ही नहीं, बल्कि ज्ञान- विज्ञान के रूप में भी काफी अधिक है। उन्होंने शिविर के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यदि वैदिक संस्कृत की पढ़ाई हो तो गणना आदि काफी आसान हो जाएगा।
केन्द्राधिकारी सह शिविर के संयोजक डॉ आर एन चौरसिया ने स्वागत एवं विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि संस्कृत संभाषण से कोई भी व्यक्ति न केवल मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है, बल्कि वे दूसरे की अपेक्षा अधिक आत्मविश्वासी, सुसंस्कृत एवं समाजोपयोगी हो जाता है। उन्होंने बताया कि इस शिविर में तीन दर्जन से अधिक छात्र- छात्राएं एवं अभिभावकों ने भाग लेकर लाभ उठाया है, जिन्हें संस्कृत अध्ययन केन्द्र की ओर से प्रमाण पत्र तथा मेडल प्रदान कर सम्मानित किया गया।
प्रशिक्षक अमित कुमार झा ने बताया कि इस शिविर में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि का अभ्यास कराकर सरलतम संस्कृत बोलना सिखाया गया है। कक्षाएं दोपहर में ऑफ लाइन तथा संध्या काल में ऑन लाइन मोड में संपादित की गई, जिनमें सभी सहभागी पूरे मनोयोग से भाग लिया। अतिथियों का स्वागत पाग, चादर तथा फूल-माला से किया गया। दीप प्रज्वलित कर उद्घाटित समापन समारोह में जेआरएफ एवं शोधार्थी रीतु कुमारी ने कुशल संचालन किया। हेमा कुमारी ने स्वागत गान प्रस्तुत किया तथा धन्यवाद ज्ञापन जेआरएफ एवं शोधार्थी मणि पुष्पक घोष ने किया।
वहीं दीपेश रंजन ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया, जबकि प्रियंका एवं सलोनी ने संस्कृत में अपना परिचय देकर संस्कृत गीत प्रस्तुत किया। जिग्नेश एवं जतिन रमण ने अपने शिविर अनुभव को शेयर किया। वाणिज्य के छात्र मनोज मिश्रा ने संस्कृत को देववाणी एवं मधुर वाणी बताते हुए ‘लोक हितं मम करणीयम्…. का गायन किया।
कार्यक्रम में विकास कुमार यादव, कृष्णा पासवान, नवनीत झा, हिमांशु झा, अंकित कुमार मिश्रा, सलोनी कुमारी, मनोज मिश्रा, ब्यूटी कुमारी, अनिशा कुमारी, ममता कुमारी आदि ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया।