#MNN24X7 दरभंगा विश्व जल दिवस अवसर पर कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ट वैज्ञानिक सह अध्यक्ष डॉ दिव्यांशु शेखर ने बताया कि बदलते जलवायु के परिवेश में ग्लेशियर के पिघलने की वजह से स्वच्छ जल की कमी हो रही है। कृषि में सबसे अधिक पानी की खपत होती है इसलिए कृषि में जल की मांग को पूरा करने के लिए जल संचयन और जल प्रबंधन के तरीकों को अपनाने पर जोर दिया और बताया कि जल कृषि उत्पादन के साथ फसलों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। जल मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करता है एवं जल कृषि में उपयोग होने वाले रसायनों और उर्वरकों को घोलता है। इसलिए विश्व जल दिवस के अवसर पर जल के महत्व को समझें और जल संचयन और जल प्रबंधन के तरीकों को अपनाएं।

कार्यक्रम का संचालन मृदा व जल अभियांत्रिकी विशेषज्ञ ई. निधि कुमारी ने किया। एवं बतलाया कि बदलते जलवायु परिवर्तन के परिवेश में जल प्रबंधन बहुत ही जरूरी है, भूमिगत जल को अगर संरक्षित ना किया जाए तो आने वाले समय में हमें पीने योग्य पानी की समस्या होगी साथ ही कृषि में सिंचाई हेतु जल की आवश्यकता की कमी से जूझना पड़ेगा। कार्यक्रम में ई. निधि ने बताया कि खेती में विभिन्न तकनीक जैसे कि शून्य जुताई पद्धति, रेज्ड विधि पर खेती इत्यादि के बारे में विस्तृत जानकारी दी।

उद्यानिकी विशेषज्ञ डॉ प्रदीप कुमार विश्वकर्मा ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली एवं इसके विभिन्न तकनीक की विस्तृत जानकारी दी एवं बतलाया की इस पद्धति से 30 से 40% जल की बचत कर सकते हैं। गृह विज्ञान विशेषज्ञ डॉ पूजा कुमारी ने मोटे अनाज जैसे कि रागी,मड़ुआ, साँवा, चीना, बाजरा इत्यादि की खेती कम सिंचाई में भी हो सकती है तथा इसमें पोषक तत्व भी समुचित मात्रा में उपलब्ध होती है।

इसके बाद कृषकों को जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत केंद्र पर होने वाले खेती के विभिन्न तकनीक जैसे कि शून्य जुताई पद्धति द्वारा गेहूं की खेती, रेज्ड बेड पर गेहूं की खेती एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली जैसे कि बूंद बूंद सिंचाई एवं फव्वारा सिंचाई इत्यादि का प्रक्षेत्र भ्रमण कराया गया। इस कार्यक्रम में दरभंगा जिला के 70 से अधिक किसानों ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम में केंद्र के सभी कर्मचारीगण भी उपस्थित थे।