वाराणसी।देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी अपने आप में अद्भुत है।काशी में पिछले कई दशकों से एक ऐसी परपंरा निभाई जा रही है जो काशी के सभी प्रमुख शिवालयों में सैकड़ों की संख्या में यादव बंधु देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक करते है।आज सावन के पहले सोमवार को भक्ति और श्रद्धा में डूबे हजारों यादव बंधुओं ने काशी विश्वनाथ के दरबार सहित कई शिव मंदिरों में हाजिरी लगाई है।पांच दशकों से वो इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे है।

देश की संस्कृतिक राजधानी काशी में सावन के पहले सोमवार को अपने आराध्य के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास का सैलाब टूट पड़ा है।हाथों में कलश लेकर देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक करने के लिए हर कोई निकल पड़ा है।हर हर महादेव की गूंज पूरे काशी में गूंज रही है।

मिली जानकारी के‌ अनुसार यादव बंधुओं द्वारा जलाभिषेक की परंपरा 1932 में अकाल के बाद शुरू हुई थी।देश में पड़े अकाल के कारण पशु-पक्षी भी जल के बिना मर रहे थे।उस समय एक साधु के सुझाव पर सैकड़ों की संख्या में यादव बंधुओं ने बाबा विश्वनाथ को प्रसन्न करने का बीड़ा उठाया। काशी की सड़के उस समय यादव बंधुओं से पट गयी थी।कलश में गंगा जल भरकर केदार मंदिर में जल चढ़ाने के बाद बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुंचे थे।

यादव बंधु पंचकोश यात्रा कर महत्वपूर्ण देवालयों में सोमवार को देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक करते है।आस्था का जन सैलाब वर्षों से देवाधिदेव महादेव की पूजा सावन के पहले सोमवार को यादव बंधुओं के रूप में करता है।मान्यता है की सच्चे मन और श्रद्धा के साथ देवाधिदेव महादेव को केवल ज़ल ही अर्पण कर दिया जाए तो वो प्रसन्न हो जाते है।अगर ये ज़ल मां गंगा का हो तो इस जलाभिषेक का महत्त्व कई गुना बढ़ जाता है।सावन के सोमवार के दिन भले ही काशी नगरी केसरिया रंग में रंग जाती हो,लेकिन यादव बंधुओं की इस बार की अराधना मां गंगा के अविरलता और निर्मलता के लिए भी थी, ताकि देवाधिदेव महादेव की कृपा से मां की अविरलता बरकरार रहे।

(सौ स्वराज सवेरा)