#MNN@24X7 पीलीभीत, उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में साठा धान की खेती करने पर लगभग 5 साल पहले प्रतिबंध लगाया गया था। प्रतिबंध लगाने का सबसे मुख्य कारण है इस फसल से अत्याधिक भूजल दोहन।जिले में लगभग 35-40 हजार एकड़ में साठा धान की खेती का अनुमान है।साठा धान की खेती न केवल तराई के भूजल स्तर को प्रभावित कर रही है बल्कि ये पीलीभीत की दो प्रमुख नदियों के लिए काल भी बनती जा रही है।इस सत्र जिलाधिकारी ने साठा धान की खेती पर लगे प्रतिबंध का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दिए हैं।
वैसे तो तराई के जिले पीलीभीत में नदियों और नहरों का जाल बिछा है।पानी की पर्याप्त उपलब्धता है, लेकिन पानी के अनावश्यक दोहन और ग्रीष्मकालीन (साठा) धान भविष्य के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है।गेहूं और गन्ने की कटाई के बाद कुछ महीनों के लिए खेत खाली होते हैं।ऐसे में किसान अपने खेतों में साठा धान की फसल को उगा लेते हैं,लेकिन इन महीनों में बारिश न होने से साठा धान में भूजल का अत्याधिक दोहन होता है।विशेषज्ञों का अनुमान है कि जिले में साठा धान की खेती की वजह से सालाना लगभग 100 करोड़ लीटर भूजल का दोहन किया जाता है।ऐसे में इस धान की खेती के चलते तराई के कई इलाकों में जल स्तर लगातार घट रहा है।
कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक शैलेंद्र सिंह ढाका का कहना है कि किसान अधिक और जल्द पैदावार के लिए ग्रीष्मकालीन धान की खेती करते हैं,लेकिन यह मुनाफा भविष्य में काफी भारी पड़ सकता है।महज एक किलो ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन में 1250 लीटर से भी अधिक भूजल की खपत होती है जो कि आने वाले समय में तराई में संकट खड़ा हो सकता है।किसानों को इस धान की बजाए उड़द,मूंग जैसी अन्य फसलों को उगाना चाहिए।ये फसलें न केवल लागत बचाएंगी बल्कि इनसे भूमि की उर्वरता भी बढ़ेगी।
बता दें कि गोमती नदी का उद्गम पीलीभीत के फुलहर झील से होता है।वहीं यह झील माधोटांडा कस्बे में है।इस इलाके के बड़े भू-भाग में साठा धान की खेती होती है। लगातार जलस्तर कम होने से झील उस अवस्था में रीचार्ज नहीं हो पाती जो गोमती की धारा को अविरल बना सके।यही हाल पीलीभीत टाइगर रिजर्व की लाइफलाइन कही जाने वाली माला नदी की है। माला नदी के बहाव को बढ़ाने के लिए सोलर पंपों का सहारा लेने के योजना बनाई जा रही है।
सौजन्य से स्वराज सवेरा