तुल न सके धरती धन धाम,
धन्य तुम्हारा पावन नाम,
लेकर तुम सा लक्ष्य ललाम,
सफल काम जगजीवन राम।
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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की देश के विख्यात राजनेता जगजीवन राम के बारे में कही गयी ये पंक्तियां उनके व्यक्तित्व का प्रतिबिंब हैं। भारतीय राजनीति के कई शीर्ष पदों पर आसीन रहे जगजीवन राम न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी, कुशल राजनीतिज्ञ, सक्षम मंत्री एवं योग्य प्रशासक रहे वरन् एक कुशल संगठनकर्ता, सामाजिक विचारक व ओजस्वी वक्ता भी थे। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बंग्ला व भोजपुरी में उनकी धाराप्रवाह ओजमयी वाणी और विचारों को सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते और अपनी वाकपटुता से वे संसद में भी लोगों को निरुत्तर कर देते। डॉ अंबेडकर ने जगजीवन राम के बारे में कहा था-‘बाबू जगजीवन राम भारत के चोटी के विचारक, भविष्यदृष्टा और ऋषि राजनेता हैं जो सबके कल्याण की सोचते हैं।’ जगजीवन राम ने आरंभ से ही समाज के पद्दलित लोगों के अधिकार और सम्मान के लिए अथक संघर्ष किया।

बाबू जगजीवन राम ने मंत्रिमंडल में रहने के दौरान पदोन्नति में आरक्षण आरंभ करवाया तो अनुसूचित जातियों के लिए देश के सभी प्रमुख मंदिरों के बंद द्वार भी उन्हीं के प्रयासों से खुल गये। सन् 1955 में छुआछूत मिटाने के लिए भी उन्होंने कानून बनवाया। सिर्फ दलितों के हित में ही नहीं वरन् राष्ट्रीय हित में भी जगजीवन राम के नाम तमाम उपलब्धियां हैं। चाहे वह वर्ष 1953 में निजी विमान सेवाओं का राष्ट्रीयकरण कर इंडियन एयर लाइंस व एयर इंडिया की स्थापना कर भारत में राष्ट्रीयकरण की आधारशिला रखना हो, चाहे कृषि मंत्री के रूप में हरित क्रांति का आगाज़ करके भारत को पहली बार खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना व अनाज का निर्यात आरंभ करवाना हो अथवा रक्षामंत्री के रूप में 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान एक लाख पाकिस्तानी सैनिकों से आत्मसमर्पण करवाकर व बांग्लादेश की स्थापना कर भूगोल बदल देने का फैसला हो। अपनी ऐसी ही कुशल राजनैतिक और असाधारण प्रशासनिक क्षमता की बदौलत जगजीवन राम 31 वर्षों तक केंद्र में कैबिनेट मंत्री व बाद में उपप्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहे।बिहार के शाहाबाद जिला के (वर्तमान में भोजपुर जिला) चंदवा ग्राम में 5 अप्रैल 1908 को एक सामान्य परिवार में शोभी राम व वसंती देवी के पुत्र रूप में जगजीवन राम का जन्म हुआ था। छह वर्ष की आयु में ही उनके ऊपर से पिता का साया उठ गया। प्रारंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई, तत्पश्चात आरा के अग्रवाल मिडिल महाजनी स्कूल से शिक्षा पूरी की और 1922 में उन्होंने आरा टाउन स्कूल में प्रवेश लिया। यहां जगजीवन राम को उस समय अस्पृश्यता की दर्दनाक वेदना झेलनी पड़ी, जब उस स्कूल में अछूत जातियों के लिए उन्होंने अलग घड़े से पानी पीने की व्यवस्था देखी। आक्रोशित होकर उन्होंने एक बार नहीं बल्कि तीन बार वह घड़ा फोड़ा। अंततः स्कूल के प्रधानाचार्य ने यह व्यवस्था दी कि जगजीवन भी उसी घड़े से पानी पिएंगे और जिसे एतराज हो, वह अपनी पृथक व्यवस्था स्वयं करे। एक मेधावी छात्र के रूप में जगजीवन प्रत्येक कक्षा में छात्रवृत्ति लेकर पढ़े और वैज्ञानिक बनने का सपना संजोये रहे, परंतु तत्कालीन परिस्थितियों में उन्हें देश की आजादी ज्यादा जरूरी लगी और वे भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।बाबू जगजीवन राम का संसदीय जीवन एक विश्व कीर्तिमान है। वर्ष 1932 में वे आरा नगरपालिका के सदस्य बने। 1936 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। दिसंबर 1937 में, वे डिप्रेस्ड क्लासेस यूनियन से बिहार विधान सभा में पूर्व मध्य शाहाबाद ग्रामीण क्षेत्र से निर्विरोध चुने गए। इसके साथ ही उन्होंने आरक्षित वर्ग के 14 दलित वर्ग संघ के सदस्यों को विजयी बनाने का काम किया वह भी निर्विरोध। 1946 के चुनाव में कांग्रेस से निर्विरोध निर्वाचित होकर वे केंद्र की अंतरिम सरकार में श्रम मंत्री बने। वायसराय लॉर्ड वावेल के निमंत्रण पर बनी इस अंतरिम सरकार में बिहार से केवल दो मंत्री थे- डॉ. राजेंद्र प्रसाद और बाबू जगजीवन राम।

बाबू जगजीवन राम एक तेज-तर्रार और ऊर्जावान राजनेता थे। एक ही निर्वाचन क्षेत्र (सासाराम) से लगातार आठ बार (पहली से आठवीं लोकसभा, 1952-1984) सांसद चुने जाने का गौरव उनकी प्रतिभा और कार्यकुशलता को सिद्ध करता है। उनकी स्पष्ट दृष्टि से जनता सदैव हतप्रभ रह जाती थी और पाती थी कि वे एक ऐसे कर्मयोगी हैं जो जनसाधारण के कल्याण के लिए पूर्णतः समर्पित हैं; खासकर दलित।

1936 से 1986 तक उनका आधी सदी का कार्यकाल शायद संसदीय इतिहास में एक विश्व रिकॉर्ड है। उन्होंने 1936 में बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और 1979 में उप प्रधान मंत्री के पद तक पहुंचे। जुलाई 1986 में उनकी मृत्यु तक वे राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में एक उज्ज्वल शक्ति बने रहे। चार प्रधानों के साथ काम करते हुए उप प्रधान मंत्री और विभिन्न विभागों के मंत्री के रूप में मंत्री, उन्होंने आम जनता की असाधारण सेवा की। उनमें परिस्थितियों को समझने और त्वरित निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी। आम आदमी के उत्थान के लिए उनके द्वारा शुरू किए गए कुछ कार्यक्रम बापू के पोषित लक्ष्य ‘हर आँख से आँसू पोंछे’ की प्राप्ति में मील का पत्थर साबित हुए हैं। अपने विशिष्ट पदों और सफलताओं के बावजूद, वे बहुत ही विनम्र और जमीन से जुड़े राजनेता थे।

जगजीवन बाबू के योगदानों में जो सबसे महत्वपूर्ण प्रतीत होता है वह यह है कि उनके पास एक नई सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि थी, जो भारत के भाग्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बाबू जगजीवन राम ने दलित वर्गों के संरक्षण, समानता और सशक्तिकरण के एक नए युग की शुरुआत की। उनका जीवन पिछड़ों की पहचान का सकारात्मक वक्तव्य था। उनकी विश्वसनीयता, समर्पण और राजनीतिक क्षमता ने दलित और पिछड़े वर्गों के बीच आत्मविश्वास और उत्साह का संचार किया। उनकी उपलब्धियों को भारत में एक नई सामाजिक व्यवस्था की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। 6 जुलाई 1986 को इस महान व्यक्ति का नई दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। 7 जुलाई 1986 को उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक स्थान चंदवा (आरा, बिहार) में हुआ। इसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी सहित देश के कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया था।

लेखक : डॉ मनोज कुमार(असिस्टेंट प्रोफेसर)
स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग, उप -परीक्षा नियंत्रक (द्वितीय) ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा।