कृषि विज्ञान केन्द्र, जाले, दरभंगा में ग्रामीण युवक एवम् युवतियों के कौशल विकास एवं रोजगार करने हेतु पांच दिवसीय मशरूम उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन आज से हुआI इस प्रशिक्षण में जिला दरभंगा के विभिन्न गांव से जैसे रूपौली, केवटीरनवे, जोगियारा, राढ़ी, मेनटाउन दरभंगा से आये युवाओ ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया । यह कार्यक्रम वरीय वैज्ञानिक सह अध्यक्ष डॉ. दिब्यांशु शेखर की अध्यक्षता में शुरू हुआ। डॉ दिव्यांशु शेखर ने बताया कि हजारों वर्षों से विश्‍वभर में मशरूमों की उपयोगिता भोजन और औषध दोनों ही रूपों में रही है। ये पोषण का भरपूर स्रोत हैं और स्‍वास्‍थ्‍य खाद्यों का एक बड़ा हिस्‍सा बनाते हैं। मशरूमों में वसा की मात्रा बिल्‍कुल कम होती हैं, विशेषकर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में, और इस वसायुक्‍त भाग में मुख्‍यतया लिनोलिक अम्‍ल जैसे असंतप्तिकृत वसायुक्‍त अम्‍ल होते हैं, ये स्‍वस्‍थ ह्दय और ह्दय संबंधी प्रक्रिया के लिए आदर्श भोजन हो सकता है। पहले, मशरूम का सेवन विश्‍व के विशिष्‍ट प्रदेशों और क्षेत्रों त‍क ही सीमित था पर वैश्‍वीकरण के कारण विभिन्‍न संस्‍कृतियों के बीच संप्रेषण और बढ़ते हुए उपभोक्‍तावाद ने सभी क्षेत्रों में मशरूमों की पहुंच को सुनिश्चित किया है।

कार्यक्रम की संचालिका डॉ. पूजा कुमारी ने बताया कि भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक आम प्र‍जातियां वाईट बटन मशरूम और ऑयस्‍टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाईट बटन मशरूम का ज्‍यादातर उत्‍पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्‍परागत तरीके से की जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रशिक्षण से किसान एवं बेरोजगार लोग स्वरोजगार अपनाकर अपने व्यवसाय से अधिक से अधिक आमदनी प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही यह जानकारी भी दी कि मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षणार्थी सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं । इस प्रशिक्षण में मुख्यतः ओस्टर मशरूम की खेती के विषय में विशेष तौर पर जानकारी दी जा रही है । कार्यक्रम के दौरान कृषि अभियंत्रकी ई.निधि कुमारी ने मशरूम फार्म संरचना एवं मशरूम की पैकेजिंग के विषय में विशेष तौर पर जानकारी दी ।उन्होंने बताया कि मशरूम उत्पादन के लिए कृषि योग्य भूमि की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।किसान अगर एक बार इसी इकाई का निर्माण कर ले तो इसका उपयोग वो मुख्यतः खाद बनाने, बीज बनाने , फसल उत्पादन तथा पैकेजिंग के लिए भी कर सकते हैं ।