मोनिका प्रकरण से आंदोलन पर उठ रहे सवालों पर एक अपील- सुरेंद्र प्रसाद सिंह।

मित्रों, गुमराह किये जाने को लेकर आपका आक्रोश जायज है लेकिन मोनिका समस्तीपुर की बेटी है, अपमानजनक टिप्पणी न करें- सुरेंद्र प्रसाद सिंह।

#MNN24X7 समस्तीपुर, 4 जुलाई, दलित-गरीब, पीड़ितों, वंचितों, अक्लियतों को आंदोलन के माध्यम से न्याय दिलाने को मैं (सुरेंद्र प्रसाद सिंह) करीब 35 वर्षों से आंदोलनरत रहा हूं। आंदोलन को अच्छी तरह समझता हूं। इसमें न सिर्फ आइसा, इनौस, ऐपवा, माले के लोग ही बल्कि हमारे विचारधारा के विरोधी सामाजिक एवं राजनीतिक संगठनों के लोग भी हमारे आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं और हमलोगों ने आंदोलन के बल पर हजारों-हजार पीड़ितों को दबंगों, अपराधियों के अलावे पुलिस, प्रशासन, जनप्रतिनिधि, सत्ता, सरकार से लड़कर न्याय दिलाया है। हमलोग दर्जनभर सर्वदलीय संगठन भी चलाते हैं जिनसे हजारों आंदोलनकारी जुड़े हैं।

सवाल यह है कि आंदोलन का जरूरी क्यों है? क्या आंदोलन से न्याय दिलाया जा सकता है? तो जबाब सुन लीजिए…

कई वार ऐसा देखा गया है कि पिड़ित दलित, गरीब, निरक्षर, कमजोर वर्ग के हैं। पुलिस- प्रशासन पर आरोपी, दबंगों का दबाव है। पुलिस पर आरोपी को बचाने का राजनीतिक दबाव है। पुलिस कभी जान बूझकर तो कभी अनजाने में तथ्य से सत्य की ओर नहीं पहुंच पाती है। कई बार जांच अधिकारी से भी भूल हो जाता है। पीड़ित आवाज नहीं उठा पाता है, वहां नहीं पहुंच पाता है जहां इसे पहुंचना चाहिए। वैसी स्थिति में पुलिस- प्रशासन, जनप्रतिनिधि , सत्ता, सरकार, न्याय संस्थानों का ध्यानाकर्षण के लिए आंदोलन किया जाता है और आंदोलन की दिशा सही हो तो जीत मिलती है, न्याय मिलता है।

रही बात कर्पूरीग्राम की बेटी मोनिका प्रकरण का। इसमें कुछ लोग आंदोलन को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। आंदोलनकारियों का मनोबल तोड़ रहे हैं। आंदोलनकारियों को खूब सोच- समझकर आंदोलन करने की हिदायत दे रहे हैं। हमलोगों का मानना है कि कुछेक मामलों मसलन अपहरण, रेप, उत्पीड़न में जब आप सोचने- समझने में बहुत ज्यादा समय लगाएंगे तो बेटियों का कंकाल ही मिलेगा, उनकी जनाजे को कंधा देने के लिए तैयार रहना होगा।

सीधा मोनिका पर बात की जाये तो उसके पिता ने ही दरभंगा नगर थाना में 28 जुलाई को 121/2025 मुकदमा दर्ज कराये। वे आगे आकर अपने बेटी की गायब होने और बरामद करने में पुलिस की विफलता का प्रेस ब्यान भी दिया। पीड़ित परिजन से मिलने के बाद 6 दिन आंदोलन शुरू हुआ। आपको याद दिला दें कि कई बार 5-6 दिन चुप रहने पर हमें पीड़ितों का जनाजा ही ढ़ोना पड़ा है। मोनिका बालिग है। जीवन साथ चुनने का संविधान प्रदत्त उसका अधिकार है। अगर उसने शादी कर ली और परिजन से डर है, वह पीजी की छात्रा है। उसे अपने माता-पिता या अन्य परिजनों को जानकारी दे देना चाहिए या फिर पति के साथ सोशल मीडिया पर आकर अपनी बात रखनी चाहिए लेकिन उसने 6-7 दिन चुप रहकर लोगों को मुगालते में रखा। परिणाम हुआ अनहोनी से चिंतित उसके पिता को एफआईआर दर्ज कराना पड़ा। पुलिस निष्क्रियता का ब्यान देना पड़ा। आंदोलनकारियों की आलोचना होने लगी और फिर आंदोलन का दौर शुरू हुआ। हमारा कहना है कि अगर आंदोलन नहीं होता, मामला चर्चित नहीं होता, पुलिस, सत्ता-सरकार की आलोचना नहीं होती तो मोनिका सोशल मीडिया के समक्ष उपस्थित नहीं होती और पूरा प्रकरण समझ से पड़े रहता। इस मामले में आंदोलनकारियों ने अपना सामाजिक कर्तव्य निभाया और हम भविष्य में भी ऐसे मामले में हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेंगे। जिस तरह से बेटियों-महिलाओं पर अत्याचार, ब्लातकार, हत्या, अपराध, ह्यूमन ट्रेफिकिंग के मामले बढ़े हैं। पुलिस- अपराधी- राजनेता का गठजोड़ मामले को दबाना, भटकना चाहती है, वैसी स्थिति में न्याय दिलाने को त्वरित आंदोलन की जरूरत महसूस की जाती रही है और हम नि:संदेह हमें हर कीमत पर हर कुर्बानी देकर आंदोलन के वास्ते तैयार रहना चाहिए अन्यथा लाशों का बोझ उठाने की भी सीमा पार हो जाएगा। गुंगी- बहरी सत्ता-सरकार- पुलिस- अधिकारी को चीर निद्रा से जगाने के लिए आंदोलन की जरूरत हमेशा महसूस किया जाएगा। अभी मोनिका प्रकरण खत्म भी नहीं हुआ है, हमारे सामने ताजपुर, उजियारपुर आदि जगहों की बेटियां न्याय दिलाने को आंदोलनकारियों को पुकार रही हैं। क्या आंदोलनकारी अपनी आंखें बंद कर लेंगे?आंदोलनकारियों को डेमरलाईज नहीं बल्कि हौसला अफजाई कीजिए।
लड़े हैं- जीते हैं,
लड़ेंगे- जीतेंगे।