अप्पन सभक अस्तित्व एकदोसरक बिना संभवे नहिं अछि। जाहि ठाम रहै छी,ओतुका टोल-समाजक हिसाबे मोन मिजाज बनि जायत अछि। मुदा जँ उचित अनुचित के निर्णय करबाक क्षमता नहिं रहत त’, कखनो सुख-शांति नहिं आओत। ….. …….।
जतय शांति रहत ओतय लक्ष्मी औती। ओहो धनक देवी रूप मे,बेटीक रूप मे। आई भोरे-सँ झुनझुनिया के मोन विचित्रे जेकाँ लगैय छलै। किछु हरायल त’ किछु डरायल। विवशता ओकर जिनगीक हिस्सा बनि गेल रहै। बड्ड मोन औनायछलै नईहर जेबा लेल मुदा कहबाक साहस नहिं छलै।
खूब सोचि -बिचारि क’एक दिन अप्पन माय के फोन केलक। अयबाक ईच्छा कहि कानय लागल। माय हुनका बुझा-सुझा क शांत केलखिन। किछु दिनक बाद हुनकर भाय एलखिन। सासुर में भाय के खूब मानदान भेलनि। कने कालक बाद बहिनक साउस-ससुर लग बिदागरी करेबाक ईच्छा सामने रखलखिन।
एहि गप्प पर सासुरक लोक सभ तैयार नहिं भेलखिन आ जाय देबा सं मना क’ देलखिन्ह। आब की होयत? जखन ई गप्प झुनझुनिया के कान मे पड़लै त’ ओकर सहनशक्ति जवाब देब’ लगलै आ ओ बाजि उठली!
हम त जेबे करबै। चाहे किछु भ जाय! सभ अवाके रहि गेल ई गप्प सुनि क। मुदा निर्दयी साउस अपने जिद्द पर अड़ि गेली। घर त बुझाय छलै हल्ला सँ उड़ि जायत। बेचारा भाय के किछु फुराईन ने। की कायल जाय!ओ सोचि क कहला। हम अगिला मास मे आयब, तखन ल’ जेबैन।
ई कहि ओ विदा भ गेलाह।
एम्हर झुनझुनिया के भाय पर सेहो खूब मोन तमसाय छलैन। रहि-रहि उताप चढै़ छलैन,जैं आई बेटी छी तैं ने…….। एकसरे ओ बड़बडाई छलीह, एकटा सिरीयल देखने रही अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो … वास्तव मे बड्ड दुख छै। हम आब बेटी नहिं होबय देबै…. ओकरो हमरे जेकाँ……. ई सोचैत-सोचैत निन्न लागि गेलैन ।
एकाएक जोर -जोर सँ खटखट के अवाज सुनाई देलकैन। बेंगनी वाली उठबय लगलैन।यै मलकाईन कते सुतबै? देखियौ त सुरुजदेव बड़ी देर उगलखिन।अहाँ के कुछो होई है!
डाकडर से देखा लू, बन्हिया होत ।
हमरा त नव समाचार लगै है। भगवान एगो पोता मलकाईन के द’ देथिन। हम सभ मनबै हियै। बंशक पूत तऽ सभ चाहै है ने मलकाईन।
एतबा कहि ओ अप्पन काज समटय लागल। काज पूरा होईते बेंगनीवाली के अप्पन मोनक गप्प झुनझुनिया कहय लगली। ओ हरदम बेगनीये रंगक साड़ी पहिरय छलै, तैं नाम पड़लै बेंगनी वाली । ठोर पर हरदम मुस्किये रहै छलै। सखी जेका झुनझुनिया भरि मोन ओकरा स गप्प क लै छल ।
मुदा आई सभ गप्प साउस सुनि गेलखिन्ह। बेंगनी वाली के तत डपटलखिन जे ओ डेरा गेल। ओ कहलक !मलकाईन, कनियाँ कुछो नहिं कहलखिन्ह ओ त’बस नैहरा जयतथिन ओकरे द’बोललखिन ।हँ,हँ बुझलियै जो तू आब अप्पन घर। ओ चटे विदा भ’गेल।
ओकरा गेला के बाद डाक्टरनी लग जाय लेल, तैयार होई लय कहि देलखिन्ह। नीक सँ चेकअप भेलनि, एकर बाद
(गैर-कानूनी रूप सं) अल्ट्रासाउंड सेहो कराओल गेल। एहि मे निकलल जे बेटी अछि। ई सुनिते निर्दयी साउस साफे कहि देलखिन्ह जे बोझ परहक आँटी ल’क’ की करब।ई हमर वंश थोडे़ चलाओत।
वर सेहो हुनके सभक संग भ’गेलखिन्ह। आब! विकट समस्या उत्पन्न भ’ गेल। कतेको प्रश्न दिमाग मे धूमय लगलैन। घर जा क’ स्थिर मोनसँ सोचय लगली। मोन पड़लैन जे कोना सावित्रीबाई फूले देशक प्रथम महिला शिक्षिका बनली,आ कन्या भ्रूणहत्या लेल आंदोलन चलेली। एहि पर रोक लगेली।
पता नहिं कतय सँ हिम्मत आबि गेलैन ओ संकल्प केलीह हम ई अपराध नहिं होबय देबै। आँखिक नोर पोछैत नव उछाहक संग ओ उठि गेली। ओ अपन निर्णय पर पँहुचि गेल छली ।
नीतू झा … ( दरभंगा )