बच्चों को दिया जाता है हेल्थ कार्ड

मधुबनी /16 जुलाई। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का मासिक प्रतिवेदन बैठक कोविड केयर सेंटर में की गई सिविल सर्जन डॉ. सुनील कुमार झा की अध्यक्षता में की गई। इस बैठक में सिविल सर्जन के द्वारा मुख्य रूप से निर्देश दिया गया कि चलन्त चिकित्सा दलों का कार्यस्थल पर उपस्थिति, मासिक प्रतिवेदन का वेब पोर्टल पर ससमय उपलोड करने, अगले तीन माह का माइक्रोप्लान वेब पोर्टल पर अपलोड करना, प्रतिमाह रेफर हुए बच्चों की तुलना में ईलाज पाए बच्चों की संख्या (अत्यंत महत्वपूर्ण ) चलन्त चिकित्सा दलों को उपलब्ध कराए गए वाहन उपकरणों एवं दवाओं की उपलब्धता एवं स्थिति चलन चिकित्सा दलों के मानदेय का ससमय भुगतान का निर्देश दिया गया.

बच्चों का ऐसे होता है इलाज :

एसीएमओ डॉ. आर. के. सिंह ने बताया स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्यक्रम की सफलता के लिए गठित मोबाइल मेडिकल टीम जिले के हर आंगनबाड़ी केंद्र व स्कूलों में पहुंचती है।टीम में शामिल आयुष चिकित्सक बच्चों की स्क्रीनिंग करते हैं। ऐसे में जब सर्दी- खांसी व जाड़ा – बुखार जैसी सामान्य बीमारी होगी, तब तुरंत बच्चों को दवा दी जाती है, लेकिन बीमारी गंभीर होगी तब उसे आवश्यक जांच एवं समुचित इलाज के लिए निकटतम पीएचसी में भेजा जाता है। टीम में शामिल एएनएम, बच्चों का वजन, उनकी ऊंचाई (हाइट), सिर की परिधि, बांह की मोटाई की नापतौल करेंगी । फार्मासिस्ट रजिस्टर में स्क्रीनिंग किये गये बच्चों से संबंधित बातों को ऑन द स्पॉट क्रमवार अंकित करते हैं ।

45 प्रकार की बीमारियों का समुचित इलाज :

आरबीएसके के जिला समन्वयक डॉ. कमलेश कुमार शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत 0 से 18 वर्ष तक के सभी बच्चों बच्चों में 45 तरह की बीमारियों की जांच कर उसका समुचित इलाज किया जाता है। इन सभी बीमारियों को चार मूल श्रेणियों में बांटकर इसे 4 डी का नाम दिया गया है। इसके तहत जिन बीमारियों का इलाज होता है उनमें दांत सड़ना, हकलापन, बहरापन, किसी अंग में सून्नापन, गूंगापन,मध्यकर्णशोथ, आमवाती हृदयरोग, प्रतिक्रियाशील हवा से होने वाली बीमारियां, दंत क्षय, ऐंठन विकार, न्यूरल ट्यूब की खराबी, डाउनसिंड्रोम, फटा होठ एवं तालू/सिर्फ़ फटा तालू, मुद्गरपाद (अंदर की ओर मुड़ी हुई पैर की अंगुलियां), असामान्य आकार का कुल्हा, जन्मजात मोतियाबिंद, जन्मजात बहरापन, जन्मजात हृदयरोग, असामयिक दृष्टिपटल विकार आदि शामिल है।

बच्चों को दिया जाता है हेल्थ कार्ड :

आरबीएसके कार्यक्रम में 0 शून्य से 18 (अठारह) वर्ष तक के सभी बच्चों की बीमारियों का समुचित इलाज किया जाता है। 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों की स्क्रीनिंग आंगनबाड़ी केंद्रों में होती है जबकि 6 से 18 साल तक के बच्चों की स्क्रीनिंग उनके स्कूलों में जाकर की जाती है ,ताकि चिह्नित बीमारियों के समुचित इलाज में देरी न हो। आंगनबाड़ी केंद्रों पर साल में दो बार यानि प्रति 6 महीने पर जबकि स्कूलों में साल में सिर्फ एक बार बच्चों के इलाज के लिए स्क्रीनिंग की जाती है। स्क्रीनिंग करते वक्त बच्चों को हेल्थ कार्ड भी उपलब्ध कराया जाता है।