आगरा। उत्तर प्रदेश के आगरा जिले को ताजनगरी के साथ बाबा भोलेनाथ की नगरी भी कहा जाता है।बटेश्वर नाथ मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है। बटेश्वर यमुना नदी के तट पर आगरा से 70 किमी की दूरी पर स्थित है। बटेश्वर एक समृद्ध इतिहास के साथ सबसे पुराने गांवों में से एक है। यह भारत में महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र में से एक है। बटेश्वर स्थल यमुना और शौरीपुर के तट पर स्थित 101 शिव मंदिरों के लिए जाना जाता है।कुछ मंदिरों की दीवारों और छत में आज भी सुन्दर आकृतियां बनी हुई है। 22वें तीर्थंकर प्रभु नेमिनाथ शौरीपुर में पैदा हुआ थे।सावन के दूसरे सोमवार पर आगरा के एक खास मंदिर के बारे में जानें।इस मंदिर का इतिहास बड़ा ही रोचक है।बताया जाता है कि डकैतों के समय कोई भी डकैत इस मंदिर में घंटा चढ़ाने के बाद ही बीहड़ में जाते थे। बटेश्वर धाम के दर्शन किए बिना कोई भी डकैत यहां से गुजरता नहीं था।

जानें बटेश्वर धाम के बारे में।

आगरा जिले की बाह तहसील में बटेश्वर गांव के पास तीर्थराज बटेश्वर मंदिर है।सावन के महीने में यहां पर भारी संख्या में बाबा भोलेनाथ के भक्त पहुंचते हैं।मंदिर के पीछे यमुना नदी है।यमुना नदी के किनारे ही भोलेनाथ की लगभग 101 शिवलिंग की श्रंखला मौजूद है।यहां पहले शिवलिंग की स्थापना 1646 में भदावर घराने के राजा बदन सिंह ने की थी। बदन सिंह की सिर्फ एक बेटी थी और उन्हें अपने राज्य के लिए उत्तराधिकारी की जरूरत थी। ऐसे में राजा बदन सिंह अपनी मन्नत मांग कर शिवलिंग की स्थापना की और पूजा अर्चना की।राजा बदन सिंह की पूजा से प्रसन्न होकर बाबा भोलेनाथ ने उनकी बेटी को ही लड़की से लड़का बना दिया। इस चमत्कार से मंदिर की मान्यता आसपास के क्षेत्र में और बढ़ गई।

राजा बदन सिंह के शिवलिंग स्थापित करने के बाद उनके परिवार के तमाम राजा महाराजाओं ने यहां पर 1655 से 1773 तक करीब 40 शिवलिंग स्थापित किए।वहीं अब इस मंदिर पर लगभग 101 शिवलिंग की श्रंखला मौजूद है। लोगों का ये भी मानना है कि कार्तिक महीने में खुद बाबा भोलेनाथ यहां यमुना नदी पर स्नान करने के लिए आते हैं।भदावर घराने के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने की परंपरा के बाद से ही यहां पर जलाभिषेक होना शुरू हो गया।तब से लोग यहां आते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।

राजा बदन सिंह ने यमुना नदी के प्रवाह को जो कभी पश्चिम से पूर्व कि ओर था उसको बदल कर पूर्व से पश्चिम की ओर अर्थात् बटेश्वर की तरफ कर दिया गया था। इन मंदिरों को यमुना नदी के प्रवाह से बचाने के लिए एक बांध का निर्माण भी राजा बदन सिंह भदौरिया द्वारा किया गया था। बटेश्वर नाथ मंदिर का रामायण, महाभारत, और मत्स्य पुराण के पवित्र ग्रंथों में इसके उल्लेख मिलता है।बटेश्वर धाम मंदिर पर हमेशा से ही भदावर परिवार का वर्चस्व रहा है।मंदिर की कमेटी है उस कमेटी के अध्यक्ष भदावर परिवार के ही लोग बनते आए हैं।यही कारण है कि बाह क्षेत्र में भदावर परिवार का राजनीतिक वर्चस्व भी हमेशा बना रहता है।

आपको बता दें राजा महाराजाओं के साथ-साथ ये मंदिर डकैतों की भी मुख्य पसंद रहा है।चंबल के बीहड़ में रहने वाले डकैत किसी भी बड़े काम को करने से पहले बटेश्वर मंदिर पर घंटा चढ़ाते थे और उसके बाद ही किसी जमीदार या राजा के अत्याचार के खिलाफ बीहड़ में कूद जाते थे। चंबल के ही कुख्यात डाकू मान सिंह ने भी यहां पर घंटा चढ़ाया था।डाकू गुनगुन परिहार ने यहां घंटा चढ़ाकर बागी बनने का ऐलान किया था।
(सौ स्वराज सवेरा)