संस्कृत सप्ताह समारोह का समापन।

दरभंगा, कामेश्वर-सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा में 8 अगस्त से चल रहे संस्कृत सप्ताह समारोह का समापन 14 को कुलपति डॉ. शशिनाथ झा की अध्यक्षता में सम्पन्न हो गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद श्री गोपाल जी ठाकुर ने कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा है। इसका सर्वतोमुखी विकास मानवमात्र के लिए होना आवश्यक है।

संस्कृतशिक्षा को सर्वशिक्षा अभियान से जोड़ना सम्पूर्ण राष्ट्र की अपेक्षा है। हमें अपनी चीजों पर गौरव करना चाहिए और ऐसे ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी चीजों के गौरव से जन-जन तक पहुँचाना चाहिए। हमलोगों ने मिथिला के मखान का गौरवगाथा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जब बखान करना प्रारम्भ करना शुरु किया तो उसकी मान्यता अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली, जिसका सुखद परिणाम राष्ट्रीय मखाना अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना के रूप में हमें मिली। आज मिथिला का मखाना उद्योग हजारों करोड़ का हो गया है।

यही सुखद स्थिति गौरवगाथा के कारण लीची उद्योग को भी मिथिला प्राप्त हो रही है। इसी तरह संस्कृत की खूबियों की आत्मगौरव के साथ प्रशंसा करते रहने और इसके लिए बुद्धिजीवियों के सत्प्रयास से संस्कृत पुनः भारत को विश्वगुरु बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि इस अवसर पर दरभंगा राजपरिवार के राजकुमार रत्नेश्वर सिंह ने कहा कि हमारे परिवार की ओर से जिस उद्देश्य से इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, उसकी पूर्ति के लिए हरेक मिथिलावासी को प्रयास करते रहना चाहिए।

वहीं, विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग के प्रधान सम्पादक और राष्ट्रपति सम्मानित पूर्व कुलपति पं. रामचन्द्र झा ने कहा कि संस्कृत के विकास के लिए छात्रों का समय पर नामांकन, अध्ययन-अध्यापन, परीक्षा, प्रमाणपत्र का वितरण होते रहने पर ही इस विश्वविद्यालय का और संस्कृत का विकास सम्भव है।

आज के कार्यक्रम में मधुबनी जिला के चिकना ग्रामवासी 95 वर्षीय वयोवृद्ध संस्कृत के विद्वान् प. श्री भोला झा को पाग, चादर और सम्मानपत्र से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उन्होंने संस्कृत के विकास की शुभकामना व्यक्त की।
कुलसचिव डॉ. सत्येन्द्र नारायण सिंह ने विश्वविद्यालय के विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।

इस अवसर पर विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखित अथवा सम्पादित कुल 6 ग्रन्थों का लोकापर्ण भी किया। जिनके नाम हैं-

i. गरुडपुराणम्,संकलयिता, सम्पादकश्च- प्रो. विद्येश्वर झाः, प्राचार्यः, स्नातकोत्तर वेदविभागः, कामेश्वरसिंह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयः, दरभंगा।

ii. प्रबोधकादम्बरी (म. म. गोकुलनाथ उपाध्यायः) सम्पादकः- डॉ. चन्द्रनाथ झाः, सेवानिवृत्तोपाचार्यः, म. अ. रमेश्वरलता संस्कृत महाविद्यालयः, दरभंगा।

iii. चन्द्रसंस्कृतरत्नावली (कविचन्द्रः, प्रसिद्धनाम- चन्दा झाः)सम्पादकः- स्व. प्रो. विश्वेश्वर मिश्रः,सरिसवपाही, संशोधकः, शशिनाथ झा, कुलपतिः, कामेश्वरसिंह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयः, दरभंगा।

iv. महाभाष्यमन्थनी (डॉ. सत्यव्रत शर्मा सुजन) सम्पादकः- प्रो. दयानाथ झाः, विभागाध्यक्षः, स्नातकोत्तर व्याकरण विभागः, कामेश्वरसिंह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयः, दरभंगा।

v. संस्कृत शास्त्र में मिथिला के सरिसव-पाही परिसर का अवदान (बीसवीं शाताब्दी) – लेखकः- डॉ. काशीनाथ झाः, सहायकप्राचार्यः, साहित्य विभागः, नन्दन संस्कृत महाविद्यालयः, इसहपुर (मधुबनी)।

vi. चिद् विलास- लेखकः – डॉ. विमल नारायण ठाकुरः, पूर्वकुलसचिवः, कामेश्वरसिंह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयः, दरभंगा।

ग्रन्थों के लोकार्पण के अवसर पर ग्रन्थों के लेखक अथवा सम्पादक की ओर से ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया।

कार्यक्रम के अन्त में विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों और छात्राओं को प्रमाणपत्र भी वितरित किये गये, जिनके नाम हैं- (क) सद्यःभाषणप्रतियोगिता- 1. गौतम कुमार पाण्डेय 2. शालिनी कुमारी 3. श्यामनाथ चौधरी। (ख) श्लोकान्त्याक्षरप्रतियोगिता- 1. हरिहर मिश्र 2. सचिन कुमार झा 3. रंजन कुमार तिवारी। (ग) संस्कृतभाषण प्रतियोगिता-1.कुमारी वर्षा 2. कुमारी प्रीति 3. श्यानाथ चौधरी। (घ) अष्टाध्यायीसूत्रान्त्याक्षरप्रतियोगिता- 1. खुशबू कुमारी 2. रचना 3. हिमांशु रंजन। (ङ) सद्यःस्पूर्ति प्रतियोगिता (क्विज)- 1. निरंजन कुमार झा 2. अंकिता कुमारी 3. श्यामनाथ चौधरी।
कुलपति डॉ शशिनाथ झा ने अपनी अध्यक्षीय भाषण में इस संस्कृत सप्ताह कार्यक्रम की सफलता के लिए सबों के प्रति आभार प्रकट किया। धन्यवादज्ञापन अध्यक्ष, छात्र कल्याण और सम्पूर्ण कार्यक्रम के आयोजक प्रो. सुरेश्वर झा ने किया। प्रारम्भ में वैदिक मंगलाचरण प्रो. विद्येश्वर झा, पौराणिक मंगलाचरण प्रो. दयानाथ झा, कुलगीत और स्वागत गीत अंकिता, पूजा, वीणा, वंदना, मोना आदि छात्राओं, स्वागतभाषण प्रो. श्रीपति त्रिपाठी और मञ्चसंचालन डॉ. यदुवीर स्वरूप शास्त्री ने किया।

अन्त में राष्ट्रगान के साथ राष्ट्रव्यापी इस संस्कृत सप्ताह कार्यक्रम की सम्पन्नता की घोषणा की गई।