दरभंगा। महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय में चल रहे पांडुलिपि संरक्षण कार्य की समीक्षा करते हुए इन्टैक बिहार स्टेट चैप्टर के सह- समन्वयक भैरव लाल दास ने कहा कि बिहार सरकार के स्पष्ट निर्देश के बावजूद कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय एवं मिथिला शोध संस्थान द्वारा पांडुलिपियों के संरक्षण कार्य में अभिरुचि नहीं लेना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस संबंध मे 25अक्टूबर को शिक्षा विभाग द्वारा उक्त दोनों संस्थानों को निदेश दिया गया कि संस्थान की पांडुलिपियों को संरक्षण करने हेतु इन्टैक के दल का सहयोग किया जाय।इन्टैक के बिहार स्टेट चैप्टर के कन्वेनर प्रेम शरण द्वारा उक्त दोनों संस्थाओं के प्रधान को 10 दिसंबर को एक पत्र लिखकर आग्रह किया गया था कि पांडुलिपि संरक्षण के लिए तिथि निर्धारित की जाय ताकि इन्टैक के विशेषज्ञों को इसकार्य हेतु भेजा जा सके लेकिन एक महीने बाद भी उक्त संस्थाओं के द्वारा इस दिशा मे कोई अभिरुचि नहीं दिखाई गई है।संग्रहालयाध्यक्ष डा शिव कुमार मिश्र के अनुसार उक्त संस्थान द्वारा सहयोग नहीं करने के कारण अब संरक्षण के निमित्त आबंटित पूरी राशि पंजी के संरक्षण पर ही खर्च की जायेगी। अबतक छ: हजार फोलियो का संरक्षण कार्य पूरा कर लिया गया है जिसमें ब्राह्मण पंजियार प्रोफेसर जयानंद मिश्र एवं कर्ण कायस्थ पंजियार संजीव प्रभाकर के पंजी के अतिरिक्त महामहोपाध्याय डा सर गंगा नाथ झा के हस्तलेख तथा बरिष्ठ इतिहासकार डा अवनींद्र कुमार झा के पूर्वजों के हस्तलेख भी शामिल हैं।प्रोफेसर जयानंद मिश्र द्वारा पंजी की कुल दश पोथी संरक्षण हेतु लैब मे जमा कराया गया था जिनमें से सात का काम पूरा कर उन्हें सौंप दिया गया है। डा मिश्र के अनुसार इन्टैक द्वारा अपने संसाधनों के माध्यम से मिथिला की पंजी एवं पांडुलिपियों का संरक्षण कराया जाना एक अपूर्व घटना है लेकिन मिथिला के उपरोक्त सरकारी संस्थानों द्वारा इसकार्य में सहयोग नहीं किया जाना अत्यंत दुखदायी है।
डा मिश्र ने इन्टैक के वरिष्ठ अधिकारियों से आग्रह किया है कि उक्त संस्थाओं के पदाधिकारियों की अपने धरोहर संरक्षण के प्रति लापरवाही के विषय मे राज्य सरकार के शिक्षा विभाग को सूचना दी जानी चाहिए। मधुबनी जिला के ननौर गांव से आये हुए पंजियार प्रोफेसर जयानंद मिश्र ने कहा कि त्रेता युग से ही मिथिला मे पंजी का प्रचलन था जिसे कर्णाटवंशी राजा हरिसिंह देव के समय मे लिपिबद्ध किया जाना प्रारंभ किया गया।प्रोफेसर मिश्र के अनुसार अधिकतर पुरानी पंजी क्षतिग्रस्त हो चुकी है लेकिन जो बची है वह मिथिला की दुर्लभ धरोहर है इसे संरक्षित कराया जाना अत्यंत आवश्यक है।अन्य पंजीकारों से भी उन्होंने आग्रह किया कि अपनी धरोहर की रक्षा हेतु वे भी इन्टैक से सहयोग प्राप्त करें।संस्कृत विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों द्वारा पांडुलिपि संरक्षण के प्रति उदासीन रहने पर प्रोफेसर मिश्र ने दुःख प्रकट किया। इस अवसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वरिष्ठ पदाधिकारी डा जलज कुमार तिवारी,पूर्व प्रशासनिक पदाधिकारी हेमंत कुमार दास,डा अयूब राईन, तालाब बचाओ अभियान के समन्वयक नारायणजी चौधरी, मूर्ति विशेषज्ञ डा सुशांत कुमार, चंद्रप्रकाश, रत्नेश वर्मा, इन्टैक के कंजर्वेटर विनोद तिवारी एवं निसात आलम ,ब्रजेंद्र मिश्र, दिवाकर सिंह,पूर्णिमा कुमारी के अलावा अन्य धरोहर प्रेमी उपस्थित थे।
16 Jan 2022