अदौं काल सं मिथिलाञ्चल में धर्मऽक प्रधानता रहल अछि। एतय कोनो दिन, पक्ष वा मास एहन नहि , जाहिमे कोनो पाबनि तिहार नहि हो। एहेन कोनो गाम नहि जतय देवी-देवता केर मंदिर नहि हो वा धार्मिक व्रत पाबनिक अवसर पर अनिर्णयऽक स्थिति में एतुक्का व्यवहारे के धर्मऽक पर्याय मानि लेल जाइत हो।
“धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयः मिथिला व्यवहारतः ‘
#MNN@24X7 मुदा एहि व्रत-पाबनिऽके अनादि काल सं सुरक्षित आ संरक्षित रखबाक असल श्रेय मैथिलानी सबहक छन्हि। एहि सब व्रत कथा में एकटा अछि “जितिया व्रत कथा या “जीमूतवाहन” व्रत कथा । हिनका ‘जीवत्पुत्रिका व्रत सेहो कहल जाइत अछि। महिला एहि व्रत के अपन पुत्र सबहक आयुष्य लाभऽक कामनाएँ सं करैत अछि।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण कें अनुसारे -आश्विन कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि के सांझ पहर (प्रदोषऽक समय) स्त्रि सभकेँ राजा “जीमूतवाहन” केऽ पूजा करबाक चाही आ कथा सेहो सुनबाक चाही।
पूर्वेद्युः अपरेद्युः वा प्रदोषे यत्र चाष्टमी तत्र पूज्यः सदा स्त्रीभिः राजा जीमूतवाहनः ।।
एहि व्रत कथा केऽ चर्चा भविष्य पुराण में एहि प्रकारे भेटैइ अछि। कैलाशऽक रम्य शिखर पर आसीन महादेव सं भगवती पार्वती पूछैत छथिन्ह, हे नाथ ! कोन व्रत, तपस्या वा पूजा नियम के द्वारा सौभाग्यवती स्त्री सबहक पुत्र स्वस्थ आ आयुष्मान रहैत छथि ?
पार्वती केऽ एना पुछला पर भगवान शिव कहैत छथि जे
आश्विन कृष्णपक्षऽक अष्टमी तिथि केऽ पुत्रकामा स्त्री सभकेँ शालिवाहन राजा कें पुत्र जीमूतवाहनऽक पूजा करबाक चाही। जीमूतवाहन केऽ प्रतिमा कुश सं निर्मित कऽ जलपरिपूर्ण कलश में स्थापित कएलाक बाद नानावर्णऽक पताका आ गन्ध पुष्प आदि सं विप्रवेश धारी जीमूतवाहन कें यथाशक्ति पूजा करबाक चाही। प्राङ्गण में पुष्करिणी (छोटा तालाब या गड्ढा) बनाकर गोबर आ माटि केऽ द्वारा चील आ सियारिन केऽ सिन्दूराभ (सिन्दूर केऽ समान लाल) सिर सं युक्त मूर्ति बनाऽ केऽ ओतहि स्थापित करबाक चाही।
पानिक लगीच पाकड़ऽक डारि (डाली) रखबाक चाही। वंश बृद्धि केऽ लेल बाँसऽक पात सं जीमूतवाहनऽक पूजा आवश्यक अछि।
कथा एहि प्रकारक अछि। दक्षिणा पथ मेंऽ सागरऽक कात नर्मदा के भीड़ पर अवस्थित काञ्चनवती नामऽक नगर में मलयकेतु नामक राजा निवास करैत छलाह। ओ अर्जुने कऽ समान पराक्रमी आ योद्धा छलाह। जाहि कारण सं सबटा राजा हुनकर वशवर्ती छलाह। नर्मदा के पश्चिम कात “बाहूटार” नामक मरूस्थल में पाकड़िऽक एकटा बड़का गाछ छल। पुरान आ पैघ हेबाक कारणसँ ओहि मे धोधर (कोटर) बनि गेल छल। ओहि धोधरि मेंऽ एकटा सियारिन रहैत छलीह। ओहि गाछऽक डारि पर एकटा चील सेहो रहैत छल, दूनू में प्रगाढ़ मैत्री छल।
आसिन मासऽक कृष्ण पक्ष केऽ अष्टमी तिथि कें सन्तानऽक आयुष्य लाभऽक कामना सं नगरऽक स्त्री सभ उपास राखि केऽ जीमूतवाहनऽक पूजा केलनि , कथा सुनलनि आ अपन घर दिस चलि गेलीह। सियारिन आ चिल्ली ओहि महिला सबहक अनुकरण करैत व्रत रखलनि।
संयोग सं ओहि नगर में रहनऽ बला एकटा साहूकारऽक ज्येष्ठ पुत्र केऽ निधन ओहि दिन संध्याकाल मेंऽ भऽ गेल। हुनकर बन्धुबान्धव नर्मदा नदी के कात हुनकर अन्तिम संस्कार कऽ अपन-अपन घर आबि गेलाह। राति में भारी वर्षा भेल, भूखल सियारिन चिल्ली सं बेर-बेर पूछथि, हे सखी की अहाँ जागल छी? एक बेर तऽ ओ हाँ कहि देलक मुदा बेर-बेर अहिना पूछला पर चिल्ली केऽ आश्चर्य भेल ओ सोचऽ लागल आखिर सियारिन बेर-बेर एकहिँ प्रश्न किया पूईछ रहल अछि? एकर की कारण भऽ सकैत अछि।
ई सोईच ओ कोनो उत्तर नहि देलक आ चुप भऽ गेल चिल्ली केऽ किछु नहि बजबा पर सियारिन सोचलथि चिल्ली सुईत रहल, ई बूईझ ओ धोधरि सं बाहर ऐल आ नर्मदा नदी सं मुँह में पाईन आईन चिता केऽ आगि केऽ मिझाबथि आ शवमांस के खाथि । पेट भरि गेला के बाद शेष मांस को टुकड़े केऽ अपन धोधरि में लऽ अनैत अछि। चिल्ली सियारिन केऽ एहि क्रियाकलाप केऽ देख रहल छल। भोर भेला पर चिल्ली कहलक की सखी। पारण केऽ चर्चा नहि कऽ रहल छी, मुदा रातिकेँ बात कें स्मरण कऽ उदासीन भऽ बाजि उठली-ठीक अछि सखी अहाँ पारण करूऽ हम तऽ नगरऽक स्त्री सबहक द्वारा समर्पित द्रव्य सबहक (फल-अंकुरी आदि) पारण करब । चिल्ली केऽ बात सुईन केऽ सियारिन धोधर मेंऽ गेल आ यथेष्ट शव मांस खाऽकेऽ पारण कएलक।
किछ समय उपरांत चिल्ली आ सियारिन तीर्थराज प्रयाग गेल। ओतहि दुनू अपन मोन मेऽ कामना कऽ शरीर त्याग केलक। चिल्ली सोचलक जे अगिला जन्म में हम महामंत्री बुद्धिसेन के पत्नी बनि आ सियारिन सोचलक जे हम अगिला जन्म मऽ राजा मलयकेतु केऽ महारानी बनूँ, एहि कामना सं दूनू शरीर त्याग कएलन्हि। तीर्थराज प्रयागऽक महत्ता सं हिनका दुनू केऽ जन्म भास्कर नामऽक कोनो वेदवित् विद्वान् ब्राह्मण केऽ घर पुत्री केऽ रूप में भेलन्हि। बड़की केऽ नाम शीलवती आ छोटकी केऽ कर्पूरावती।
ई दुनू गुण आ सुन्दरता मेंऽ देव आ नाग कन्या केऽ समान छलीह। समयानुसार शीलवती केर विवाह मंत्रि प्रवर बुद्धिसेन के संग आ कर्पूरावती केऽ राजा मलयकेतु के संग संपन्न भेल। समय भेला पर शीलवती सातटा बालक केऽ जन्म देलथि। सातो बालक वृहस्पति सन बुद्धिमान् तेजस्वी आ शूरवीर छलाह। अपन पराक्रमी बालक को देखि शीलवती प्रसन्न रहैत छलीह।
रानी कर्पूरावती मृत्वत्सा हेबाक कारणें सदैव दुःखी रहैत छलीह। ताहि कारणें हुनकर शरीर क्षीण हुअ लगलन्हि, आ मोन मेऽ में वैराग्य जन्म लऽ लेलकनि। वहुत दिन बीत गेल एक दिन शीलवती केऽ सातोटा पुत्र जेऽ की सुन्दरता मेंऽ कामदेवऽक समान आ पराक्रम मेंऽ कुमार कार्तिकेयऽक समान छलाह, राजमहल मेऽ एलथि। शीलवती केऽ तेजस्वी बालक सबकेँ देखि कर्पूरावती केऽ ऊपर बज्र आघात सन छल। ओ पृथ्वी पर खसि पड़ली। कोनो तरहें उठिकेऽ बिछावन पर सुतलथि ओ।
राजा जखन महल में एलथि तखन महारानी केऽ नहि देखि सेवक सं पूछलनि? महारानी कतऽ छथि? नौकर कहलन्हि – महारानी घरे में छथि। राजा जखन घर में गेलाह। तखन कहलनि – हे मधुर भाषिणी ! अहाँ के असमय निद्रा हमरा दुःख दऽ रहल अछि। राजा केऽ एना कहला पर रानी कहलनि – हम आब तखने उठब, जखन अहां प्रतिज्ञा करी की जे हम कहब ओकरा अहाँ पूरा करब।
राजा सं आश्वासन भेटबाक बाद रानी जेऽ अपन बहीनऽक बालक केऽ देखि ईर्ष्या से दग्ध भऽ रहल छलीह। राजा सं कहलनि – हमर बहीनऽक सब पुत्रक मस्तक काटि दऽ दिअ ,यदि हमरा अहाँ जीवित देखऽ चाहैत छी तखन।
राजा पहिले तऽ रानी केऽ बहुत बुझेलन्हि की एना केनाई नीक बात नहि, एहि सं तऽ हुनका आ रानी कऽ बहुत पैघ पाप लाग । मुदा में रानी के जिद्द आ अपन सत्य प्रतिज्ञ हेबाक कारणें राजा, शीलवती के पुत्र सबकेँ मारबाक ताक में लागि गेलाह।
एक दिन शीलवती भगवान जीमूतवाहन केऽ बड्ड पैघ पूजा कऽ रहल छलीह, एम्हर राजा अप्पन किवाड़ि पर ” यन्त्रिका चक्र” लगवा देलन्हि जाहि सं एहि रास्ता सं जाय बला लोक सबहक माथ चक्र सं कटि जाय। किछु समय उपरांत शीलवती केऽ सातों पुत्र राज सेवार्थ राजमहल में आएला आ राजा हुनका सबहक गर्दनि चक्र सं कटवा देलथि, राजा केऽ एहि सं बड्ड पैघ ग्लानि भेलन्हि मुदा रानी केऽ एहि संऽ प्रसन्नता भेलन्हि।
रानी ओहि कटल मस्तक सभकेँ सातटा डाला में राखि केऽ बाँसऽक पात आ उज्जर कपड़ा सं झांपि कऽ उपहार स्वरूप अप्पन बहीन लग पठा देलन्हि । शीलवती ओहि डाला सभकेँ अपन पुतोहु सबमें बाँटि देलन्हि आ कहलनि। अपन-अपन स्वामी संग एकरा ग्रहण करब। एम्हर शीलवती केऽ पुत्र सबहक हाल बूईझ परम कारुणिक भगवान् जीमूतवाहन ई सोचलथि जे हिनका सबहक माता शीलवती श्रद्धापूर्वक व्रत राखैत हमर बहुत उपासना केने छथि। एहि बातक ध्यान करैत परम दयालु भगवान मैटक माथ बनाऽ ओकरा शरीर में जोईर देलन्हि आ अमृत सं हुनका सभकेँ अभिसिक्त कऽ अपन निवास स्थान दिस चलि गेलाह।
कर्पूरावती जाहि मस्तक सभकेँ नौकरानी केऽ माध्यमे शीलवती लग पठेने छला ओ सातो ताड़ऽक फल भऽ गेलाह। जीमूतवाहनऽक प्रभाव सं शीलवती केऽ सातों पुत्र जेना कोनो व्यक्ति घोर निद्रा सं सूईत केऽ उठल हो। ओहिये प्रकारे उठलाह आ अपन-अपन घोड़ा पर सवार भऽ घर दिस विदा भऽ गेलाह। ओतहि जाऽकऽ ओ सब स्नानादि कएलन्हि आ संगहि जीमूतवाहन केऽ प्रसाद सेहो ग्रहण कएलनि।
ओकर बाद मंत्रिश्रेष्ठ बुद्धिसेनऽक घर में की भऽ रहल अछि? परिवार शोकाकुल अछि वा नहि, वा ई सब क्रंदन किया नहि क रहल छथि? ई सोचि जखन रानी क्रन्दन स्वर नहीं सुनलैथ तखन ओ, अपन दासी केऽ समाचार बुझबाक लेल मंत्री के घर पठेलनि। दासी मंत्री केऽ घर एलथि आ सबटा वात देख बुईझ घुईर एली। दासी केऽ ई कहला पर की ओतय सभ कियो बहुत प्रसन्न छथि आ घर में आनन्दऽक वातावरण अछि ई सुईन रानी ( ईष्या कऽ कारणे) बहुत दुःखी भेलीह आ क्रोध सं नागिन जकाँ श्वास लैत बेर-बेर मूर्च्छित भऽ जैत छलीह।
दोसर दिन फेर शीलवती केऽ पुत्र सभकेँ अपन महल मेंऽ आओल देखि रानी, राजा सं कहलनि जे हे राजन् अहाँ तऽ हमरा एहि सातो भाई केऽ मस्तक काटि के देने छलौं, हम तऽ आश्चर्य चकित छी जेऽ अहाँ हमरा संग छल केने होयब। अन्यथा एक बेर फेर ई केना आईब जइतथि? राजा आश्चर्य चकित भऽ किछु समय चुप रहला, फेर बजलाह- हे महादेवी। हम अहाँ के सामने हिनकर मस्तक काटने छलहुँ। फेर अहाँ एहेन गप्प किया कहि रहल छी? हमरो एहि गप्पक आश्चर्य भऽ रहल अछि जे ई केना सम्भव भेल। लागैत अछि जे अहाँक बहीन पूर्वजन्म में कोनो शुभकार्य केने छथि जकर प्रभावे हुनकर सातोटा पुत्र जीवित छथिन्ह आ प्रसन्न सेहो छथिन्ह। अहाँ एहेन पुण्य नहि केने होयब ताहि कारणें पुत्रशोक सं पीड़ित भऽ गेल छी। ई सुईन रानी किछु नहि बाजलथि बस उदास भऽ गेलीह।
ओकर पश्चात् मंत्रिश्रेष्ठ बुद्धिसेन अपन पत्नी शीलवती सं अपन पुत्र संग भेल सबटा वृत्तान्त कहि सुनेलन्हि। वर्ष बीत गेला कऽ पश्चात् एकबेर फेर जितिया व्रत केर समय आयल तखन रानी दासी केऽ माध्यमसँ अपन पैघ बहिन लग समाद पठेलनि जे अपना दुनू संगहि पारण करब। शीलवती ओहि दासी केऽ माध्यमे उत्तर पठेलनि जे महारानी के संग दासी सबहक पारणा उचित नहि । दासी केऽ मुहे एहि प्रकारऽक वचन सुईन क्रोधक अग्रणी में जरैत रानी स्वयं नौकरानी केऽ संग शीलवती केऽ घर पहुँच गेलीह। महारानी के आयल देखि केऽ शीलवती रानी केऽ पैघ सत्कार कएलन्हि आऽ कुशल समाचार पूछलनि।
रानी शीलवती सँ कहलनि – हे बहिना! पारण केर समय भऽ गेल। चलू संगहिसंग पारणा करब। शीलवती हुनका विचार पूर्वक कहलनि जे हे कर्पूरावती ! अहाँ राज सुख केऽ उपभोग करू आ संग पारणा करबाक जिद छोडू। मुदा रानी जिद नहि छोड़लनि आ बेर-बेर कहऽ लागलनि जेऽ आइ हम अहिंऽके संग पारणा करब अन्यथा करबे नहि करब। शीलवती रानी केऽ दृढ़ निश्चय केऽ बूईझ पारण सामग्री लऽके नर्मदा नदी केऽ कात आबि बैसै गेलीह आ ओऽ महारानी संँऽ कहलनि – हे देवी! राज्य सुख केर उपभोग करू, कल्याण हैत, ई कहि शीलवती नर्मदा जल में स्नान कएलन्हि , देवता सबहक पूजा केलनि। जितिया व्रत केऽ प्रभावे हुनका पिछला जन्म केर घटना सभ मोन छलैन्ह। ताहि कारणें ओ रानी सं बजलीह – अहाँ कऽपूर्व जन्मऽक वृत्तान्त नहीं मोन अछि की- पुर्वजन्म में अहां सियारिन छलहुँ आ हम चिल्ली चिडै़। ई नर्मदा नदी अछि आ ओऽ रहल वाहूटार नामक मरूस्थल। एहि मरूस्थल मेऽ स्थित ओहि पाकड़िक गाछक धोधरि में अहां रहैत छलहुं आ हम ओकर डाढ़ि पर।
एक बेर नगरऽक स्त्री सबहक देखादेखी अपनो दुनू जितिया व्रत केने छलौं आ पूजा सेहो केने छलौं। कथा सुनलाक के उपरांत नगरऽक स्त्री सब अपन-अपन घर घुरि गेलीह आ अपनो दुनू अपन-अपन घोंसला में आबि गेल छलहुं।
ओहि दिन संध्या में कोनो वणिक पुत्रऽक निधन भऽ गेल। हुनकर परिजन अग्नि-संस्कार कऽ अपन घर चलि गेलाह। तखन अधरतियामे अहाँ हमरा सँ बेर-बेर पूछि रहल छलहुँ। हे सखी! अहाँ जागि रहल छी। आ हमहूँ अहाँ के हाँ मेऽ जबाब दऽ रहल छलहुँ। बहुतो बेर अहां के जबाब देला के बाद अहाँ के क्रिया-कलाप देखबाक उद्देश्य सं हम किछु समय चुप भऽ गेल रही। । हमरा सूतल बूईझ अहाँ नर्मदा नदी सँ पानि आनि-आनि केऽ चिताग्नि के मिझबैत शव-मांस भक्षण कर लगलहुँ आ शेष, बचलाहा मांस सब धोधरि मेंऽ धऽ रखलहुं।
अहाँ क खेला कऽ बाद बचलाहा शव-मांस आ हड्डी सभ एखनहुं धरि ओहि धोधरि मेंऽ शेष अछि , चलू देख लिय, ई कहि शीलवती रानी केऽ धोधरि दिस लऽ जाऽके हुनका शव मांस देखा देलखिन्ह आ कहलखिन्ह – हे बहिन ! व्रत भंग केऽ प्रभावेऽ सं अहांऽक पुत्र जीबैत नहि रहैत छथि आ चुकी हमर व्रत-भंग नहि भेल छल ताहि कारणें हमर पुत्र चिरंजीवी आ सुखी छथि।
अपन पूर्व जन्म वृत्तान्त केऽ स्मरण कऽ रानी अत्यंत दुःखी भऽ शरीर केऽ त्याग कऽ देलन्हि। एकर पश्चात् शीलवती प्रसन्नचित्त भऽ पुत्र-पौत्रादि संऽ सुशोभित भऽ अपन घर मेंऽ निवास करनऽ लगलीह। रानी केऽ निधन कऽ बात सुईन राजा बहुत दुखी भेलाह। मुदा विद्वान ब्राह्मण सबहक बुझेला पर राजा, रानी कऽ लेल उचित क्रियाकर्म कऽ ब्राह्मण सभकेँ वहुविध दान दऽ हुनका प्रसन्न कएलन्हि आऽ प्रजा पालन मेंऽ तत्पर भऽ गेलाह।
पूरा कथा कहला केऽ बाद भगवान शिव, देवी पार्वती सं कहलनि – हे देवि ! एखुनको समयमे जे स्त्री सभ विधिवत जीमूतवाहन के पूजा कऽ, उपास रखैत, व्रत कथा सनैत छथि, हुनकर पुत्र चिरंजीवी होइत छथिन्ह आ हुनकर बंधु बांधव सांसारिक सुखऽक भोग करैत अन्त में सनातन विष्णुलोक केऽ प्राप्त करैत छथि। ताहि कारणें दीर्घजीवी पुत्रऽक इच्छा राख बाली स्त्री सबहक ई व्रत अवश्ये करबाक चाही। कथाऽक अन्त में कल्याण कामना केऽ भावना संँऽ कहल जाइत अछि जे:-
जेहेन चिल्होरि के भेलैन तेहेन सब के होई । जेहन गिदरनी के भेलै तेहेन ककरो नहिं ॥
जय जिमूतबाहन भगवान की।
लेखिका:लक्ष्मी कुमारी
मनोविज्ञान(प्र.)