#MNN@24X7 दरभंगा 26 सितम्बर।ऑल इंडिया सेव एडुकेशन,दरभंगा चेप्टर के तत्वावधान में भारत के महान धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी ईश्वर चंद्र विद्यासागर की 202वीं जयंती का आयोजन किया गया।इस अवसर पर मिलान चौक स्थित जिला कार्यालय में उनके तसवीर पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता ऑल इंडिया सेव एडुकेशन दरभंगा चेप्टर के सचिव डॉ लाल कुमार ने की।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सेव एडुकेशन कमिटी के सदस्य मोजाहिद आजम ने कहा कि विद्यासागर की एक बहुत ही महत्वपूर्ण विशेषता जिससे इस देश के बहुत ही कम लोग परिचित है वह है अध्यात्मवाद व भाववाद से मुक्त उनका धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी दृष्टिकोण। यह विद्यासागर के चरित्र का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है लेकिन शासक पूंजीपति वर्ग की सुनियोजित साजिश के कारण इस पर बहुत ही कम चर्चा हुई है इस धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी दृष्टिकोण ने जो उस काल में सबसे विकसित और प्रगतिशील था सत्य की तलाश के लिए उनके आजीवन संघर्ष में प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य किया। धार्मिक अंधविश्वासों कुरीतियों और रूढ़िवादी से ग्रसित तत्कालीन सामाजिक स्थिति में उन्होंने जोरदार ढंग से प्रतिपादित किया था।
इस अवसर पर टीचर्स यूनिटी फोरम दरभंगा के संयोजक सुधांशु कुमार ने कहा कि विद्यासागर के साहस का अंदाजा उनके इस कथन से भी चल सकता है – ‘ इस पर अब कोई विवाद नहीं है की सांख्य और वेदांत गलत दर्शन है’।भारतवर्ष में उन्होंने और संस्कृत और वेदांत की जगह विज्ञान, आधुनिक साहित्य और अंग्रेजी भाषा के शिक्षण की वकालत की थी। सर्वव्यापी नैतिक और सांस्कृतिक अध:पतन के इस दौर में विद्यासागर की जरूरत और ज्यादा महसूस हो रही है।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ लाल कुमार ने कहा कि इस देश के शास्त्र के ज्ञाताओं के बारे में विद्यासागर ने कहा था, ” जब किसी भी विवाद या वार्तालाप के दौरान उनके सामने पाश्चात्य विज्ञानों द्वारा खोजे गए किसी ‘सत्य’ को प्रस्तुत किया जाता है,तो वह लोग उस पर हंसते हैं और उसकी खिल्ली उड़ाते हैं। हाल में भारत के इस भाग, खासकर कोलकाता व उसके आसपास में विद्वानों में पढ़े – लिखों में यह भाव नजर आता है कि जब वे किसी ऐसे वैज्ञानिक सत्य के बारे में सुनते हैं, जिसके स्रोत की तलाश उनके शास्त्रों में की जा सकती है, तो वे उस सत्य के प्रति किसी तरह का आदर भाव दर्शाने की बजाय जीत की खुशी से झूमने लगते हैं और अपने शास्त्रों के प्रति उनका अंधतापूर्ण आदर भाव वाले से भी दुगुना हो जाता है।”
इससे भी यह पता चलता है कि सत्य की खोज में उन्होंने धर्म शास्त्रों पर भरोसा नहीं किया बल्कि वैज्ञानिक पद्धतियों और परीक्षा को सही रास्ता माना।
अन्य वक्ताओ में रौशन कुमार, करन कुमार, रूपेश कुमार,राजु कुमार, सौरभ कुमार आदि प्रमुख थे।