#MNN@24X7 आस्था का महापर्व छठ आज नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है। इस पर्व में छठ वर्ती भगवान सूर्य से संतान की सुख-समृद्धि और दीघार्यु के लिए प्रार्थना करती है,लेकिन क्या आपको पता है हर धर्म में भगवान सूर्य को पूजा जाता है।भले ही लोगों का भगवान सूर्य को मानने का तरीका अलग अलग हो,लेकिन हर धर्म में भगवान भास्कर का जिक्र है।ऐसे में आज हम जानेंगे कि किस धर्म में सूर्य का क्या महत्व है।

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक हैं सूर्य।

बौद्ध धर्म में सूर्य को प्राकृतिक शक्ति माना जाता है। हालांकि, बौद्ध धर्म में सूर्य की पूजा करने का कोई विधि-विधान नहीं है, लेकिन हम मानते हैं कि सूर्य अपने प्रकाश से मानव जीवन में नयी शक्ति प्रदान करता है।सूर्य को बौद्ध कलाकृति में एक देवता के रूप में माना जाता है।सम्राट अशोक द्वारा बनवायी गयी प्राचीन कलाकृतियां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।बोधगया के महाबोधि मंदिर में भी सूर्य की प्रतिमा है।जिसमें सूर्य को चार घोड़ों के रथ पर उषा और प्रत्यूषा के साथ सवार दिखाया गया है।इस तरह की कलाकृति बताती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में सूर्य एक पूर्व भारतीय परंपरा से बौद्ध धर्म में अपनायी गयी अवधारणा हैं।
भिक्खु प्रज्ञा दीपए, अध्यक्ष, ऑल इंडिया भिक्खु संघ

प्रभु येसु के जी उठने का संदेश हैं सूर्य।

ईसाई धर्मावलंबी के अनुसार सूर्य प्रभु येसु के पुनरुत्थान या जी उठने का संदेश माना जाता है। सूर्य जीवन की निशानी है जो संसार के अंधकार, बुराइयों को हटाकर चारों ओर अपना प्रकाश बिना कोई भेद-भाव के सभी प्राणियों पर देता है।सूर्य आशा की भी निशानी हैं। सूर्य समी लोगों में निराशा, हताशा और व्याकुलता को हटाकर जीवन में आशा का संचार करता है।ईसाई धर्म में नत्रा व्यवस्थान में सूर्य के धार्मिक महत्व को प्रभु येसु के वचन में मैं संसार की ज्योति हूं से तुलना की गयी है। न्यू टेस्टामेंट में सूर्य के धार्मिक महत्व का विस्तृत वर्णन है। इसीलिए सेंट पाॅल ने रविवार का दिन पवित्र घोषित कर इस दिन प्रभु की आराधना, दान दिए जाने आदि को पुण्यदायी माना है।
फादर जोआकिम ठाकुर, फुलवारीशरीफ चर्च

सूर्य चक्र के सम्मुख लगाते हैं ध्यान।

जैन धर्म में सूर्य का प्रमुख स्थान है।आज संसार में आपको जीतने भी सूर्य के महत्व बताए जा रहे हैं।जैन धर्म में उससे भी बढ़कर है। जो महत्व गंगा नदी के नीचे बीचोंबीच विराजमान सबसे जिनवर जिनेंद्र की प्रतिमा का है,जो अतिशय क्षेत्र में विराजमान जिनालय और चैत्यालय का है, वहीं महत्व सूर्य का है।जैनागम के अनुसार आदिपुराण में सूर्य का वर्णन है।जैन धर्म में सूर्य की पूजा की मान्यता है,बल्कि सूर्य के अंदर चैताल्य है,जिनालय को पूजते हैं।जैन धर्म के कला-साहित्य में सूर्य को एक देवता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।सूर्यदेव के पास एक चक्र दर्शाया जाता है, जिसे धर्मचक्र माना जाता है। जैन धर्मावलंबी सूर्य चक्र के सम्मुख खड़ा होकर ध्यान लगाते हैं।
विजय कुमार जैन, महामंत्री, कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति

गुरु नानक देव ने हरिद्वार में सूर्य को अर्पित किया था जल।

अब सारी दुनिया में छठ पर्व मनाया जाता है।महापर्व छठ ईश्वर की उपासना के साथ रिश्तों को जोड़ने और भाईचारा बढ़ाने का पर्व है। गुरमत में छठ पर्व से जुड़ने का उल्लेख तो नहीं है, लेकिन परमपिता परमात्मा की उपासना का संदेश गुरु महाराज ने दिया है। गुरु महाराज ने गंगा स्नान के महत्व को भी रेखांकित करते हुए गुरु गोविंद परमात्मा का नाम ही गंगाजल है।

गुरु महाराज ने कहा -जा मिरये, इसकी गतहोवे, पीवत बहुत ना जो भ्रमाम, अर्थात गोविंद परमात्मा रूपी जल पीने और नाम जपने से सद्गति होती है।गुरुनानक देव जी महाराज जब हरिद्वार में उदासी यात्रा के दौरान पहुंचे थे, तब गंगा स्नान के दौरान पश्चिम दिशा में सूर्य देव को जल अर्पित किया था। छठ में भी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ अर्पित करने की परंपरा है। छठ ऐसा पर्व है जो समाज के हर कौम को एक साथ जोड़ने का कार्य करती है।
ज्ञानी दलजीत सिंह, कथावाचक

वेदों में कहा गया है ऊर्जा स्रोत, प्रदूषण नाशक और मानव जाति के पालक हैं सूर्य।

महान लोक आस्था का महापर्व छठ मुख्य रूप से सूर्य के प्रत्यक्ष उपासना का पर्व है।बिहार के लोग सूर्य जैसे जागृत और प्रत्यक्ष देवता की पूजा सदियों से करते आ रहे हैं।वेदों में कहा गया कि सूर्य समस्त मानव जाति के पालक और धारक हैं।सूर्य से निकलने वाली किरणें प्रदूषण का नाश करती हैं। ऋग्वेद(1.112.1), यजुर्वेद(7.42) और अथर्ववेद(13.2.35) में एक श्लोक है ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च’ जो कि सूर्य को ऊर्जा मानने की पुष्टि करता है।

ऋग्वेद(9.114.3) में मंत्र है- ‘सप्त दिशो नानासूर्या:। देवा आदित्या ये सप्त।’ यानी सूर्य अनेक हैं।यहां सात सूर्य से आशय सात सौरमंडल से है. ऋग्वेद(1.164.43) में मंत्र है, ‘शकमयं धूमम् आराद् अपश्यम्, विषुवता पर एनावरेण। यानी सूर्य के चारों और दूर-दूर तक शक्तिशाली गैस फैली हुई है। सामवेद में उल्लेखित है कि सूर्य संसार का धारक और पालक है।इसे मंत्र, सामवेद (1845) ‘धर्ता दिवो भुवनस्य विश्पति:’ में बताया गया है।

(सौ स्वराज सवेरा)