#MNN@24X7 दरभंगा। राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान ,मोहनपुर दरभंगा के प्राचार्य प्रो. दिनेश्वर प्रसाद ने छठ पर्व के अवसर पर किए जाने वाले व्रत का स्वास्थ्यप्रद लाभों के बारे में बताते हुए यह कहा कि -छठ व्रत के पालन करने से मनोवांछित फल प्राप्ति के साथ -साथ शरीर का शोधन होकर रोग उत्पन्न नहीं हो पाता है।

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में स्वास्थ्य की गुणवत्ता को बढ़ाने हेतु समय-समय पर शरीर का संशोधन करने के लिए कहा गया है। शरीर का संशोधन पंचकर्म के माध्यम से किया जाता है। व्रत में किया जाने वाला उपवास, लंघन की एक प्रक्रिया है, जिससे शरीर में आम का पाचन होकर रोग का क्षय होता है। भारतीय संस्कृति में ऋतु को ध्यान में रखते हुए भारतीय ऋषि- महर्षियों के द्वारा उपवास आदि व्रतों को पालन करने का निर्देश दिया गया है।

उन्होंने कहा कि भारत में कुल छ: ऋतु होती है- शिशिर, वसंत ग्रीष्म, वर्षा, शरद और हेमंत। ऋतु के अनुसार हमारे शरीर में दोषों का संचय, प्रकोप एवं शमन होता है। आयुर्वेद में ऋतु जन्य व्याधि को उत्पन्न होने से रोकने हेतु ऋतचर्या अर्थात् ऋतु के अनुसार हमारा आहार- विहार का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसमें ऋतु के अनुसार अलग-अलग आहार विहार का वर्णन किया गया है। जिसके पालन करने से दोष का संचय एवं प्रकोप नहीं होता है।

भारतीय पर्व- त्योहार की वैज्ञानिक आधार का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ज्यादातर पर्व त्यौहार ऋतु संधि काल में या दोष प्रकोप काल में मनाया जाता है। इससे दोषों का शमन हो जाता है और भावी व्याधि का समूल नाश हो जाता है। व्रतों में उपवास, जलाहार , फलाहार, मानसिक सदवृत्त आदि का सेवन करने से शारीरिक एवं मानसिक विकारों का शमन होकर आरोग्य की प्राप्ति होती है। ऋतु संधिकाल में हमें विशेष रुप से सावधानी बरतने की जरूरत होती है। जिसमें व्यतीत हो रही ऋतु के अंतिम सप्ताह एवं प्रारंभ हो रही ऋतु के प्रथम सप्ताह के बीच की अवधि के समय हमें अपने आहार-विहार पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने बताया कि कार्तिक के अंतिम आठ दिन एवं अगहन के शुरू के आठ दिन- ये सोलह दिन को यमदष्ट्रा काल कहा गया है। इस काल में स्वल्प एवं लघु आहार का सेवन हितकारी होता है। वर्तमान समय में शरद ऋतु चल रही है। छठ पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पूजा पर देवी षष्ठी की पूजा का विधान है। ऋग्वेद में मानव जीवन से जुड़े प्राकृतिक शक्तियों की विशेष रूप से उपासना की गई है- जिसमें रुद्र, इन्द्र, वरुण सूर्य, मरूत आदि मुख्य रूप से है। छठ पूजा, सूर्य , प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है।

उन्होंने बताया कि छठ षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाने जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को मनाया जाने के कारण इसका नाम छठ व्रत पड़ा। प्राकृतिक सौंदर्य और परिवार कल्याण के लिए की जाने वाली यह एक महत्वपूर्ण पूजा है। छठ पर्व सूर्य की आराधना का पर्व है। हिंदू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। धरती पर के सभी प्रकार के जीवन के आधार सूर्य ही है।

उन्होंने कहा कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा है‌। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों का संयुक्त आराधना होती है। प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण (उषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है। सूर्य किरण का चिकित्सकीय महत्व है। 36 घंटे निर्जला व्रत करने के दौरान हमारे शरीर में हमारे मिथ्या आहार- विहार के कारण संचित विजातीय तत्व, जिसे आयुर्वेद में ‘आम ‘ के नाम से जाना जाता है। उसका पाचन हो जाता है, परिणाम स्वरूप रोग उत्पन्न नहीं हो हो पाते।

उन्होंने बताया कि व्रत के दौरान किए गए उपवास आदि से शरीर में लघूता आती है। गंगा आदि नदियों के तट के किनारे मनाएं जाने से नदियों के तट की सफाई हो जाती है। इससे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है।