नई शिक्षा नीति संविधान विरोधी, कॉरपोरेटपरस्त, और गरीब विरोधी है-संदीप सौरभ

#MNN@24X7 दरभंगा। 10 नवंबर। आइसा दरभंगा के तत्वावधान में नई शिक्षा नीति 2020 को वापस लेने, समान स्कूल प्रणाली, नियमित सत्र, समय पर परीक्षा, परिणाम, सार्वजनिक शिक्षा बचाने की माँग आदि को लेकर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय प्रांगण में “सार्वजनिक शिक्षा बचाओ कन्वेंशन” का आयोजन किया गया। कन्वेंशन में माले विधायक सह आइसा के राष्ट्रीय महासचिव सन्दीप सौरभ, कार्यकारी महासचिव प्रसेनजीत, जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. सुरेंद्र सुमन, इतिहासविद धर्मेंद्र कुंवर तथा इंक़लाबी नौजवान सभा के राज्य सहसचिव सन्दीप चौधरी वक्ता के बतौर शामिल थे।

कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन प्रो. सुरेंद्र सुमन ने किया। इस मौके पर छात्रों-युवाओं की भीड़ को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के नाम पर पुरातन शिक्षा व्यवस्था को थोपा जा रहा। ऐतिहासिक हाशियाकरण का नया रूप है यह शिक्षा नीति। यह बिल्कुल कूड़ेदान में डालने वाली शिक्षा नीति है क्योंकि यह हमारे महापुरुषों के समान शिक्षा के स्वप्न का कत्ल करती है।

आइसा के राष्ट्रीय महासचिव सह पालीगंज से माले विधायक सन्दीप सौरभ ने छात्रों-नौजवानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा को संविधान सौंपते हुए कहा था कि हम एक अंतर्विरोध के दौर में प्रवेश कर रहे। हमारे पास राजनीतिक समानता तो होगी लेकिन सामजिक-आर्थिक रूप से समानता नहीं होगी।

जिसको दूर करने के प्रावधान संविधान में किये गए।

संविधान ने जो जवाबदेही सरकार को दी थी, आर्टिकल 14 का सम्मान करना होगा, समान शिक्षा की ओर बढ़ना होगा। उसे ये मोदी सरकार साफ-साफ नकार रही है।

नई शिक्षा नीति संविधानविरोधी, कॉरपोरेटपरस्त, और गरीब विरोधी है। यह कई आधारों पर शिक्षा विरोधी है।

नई शिक्षा नीति बिहार जैसे राज्य के लिए आपदा की तरह है। हम आइसा और अपनी पार्टी भाकपा माले की तरफ से चाहते हैं कि नई शिक्षा नीति को वापस लेने के साथ ही साथ मुचकुंद दुबे कमिटी की सिफ़ारिशों को लागू किया जाए तथा बिहार एक्ट, पटना विवि एक्ट में संशोधन करके राज्यपाल को वाइस चांसलर के पद पर बहाल करने के नियम को बदला जाए। इस बार माले विधानसभा के भीतर यह प्रस्ताव लाएगी।

राष्ट्रीय महासचिव ने जेंडर सेंसिटिविटी कमिटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट जैसी संस्थाओं को कैम्पस से हटावने को सरकार का स्त्री शिक्षा विरोधी रवैय्या करार दिया।

मुख्य वक्ता के बतौर कन्वेंशन को सम्बोधित करते हुए आइसा के कार्यकारी महासचिव प्रसेनजीत ने कहा कि जिस शिक्षा नीति में दर्जनों जगह ऑनलाइन शिक्षा, कॉलेजों को मर्ज करने की बात है, निजीकरण के औचित्य बताए जा रहे उसमें आरक्षण और सामाजिक न्याय के बारे में एक शब्द नहीं है। यह नई शिक्षा नीति अम्बेडकर के शब्दों में ‘ग्रेडेड इनइक्वलिटी’ को बढ़ावा देगी। इसके लागू होते ही दर्जनों विश्वविद्यालयों में 400 प्रतिशत तक फीस वृद्धि हो रही।

अनुदान आधारित सार्वजनिक शिक्षा को बदलकर HEFA लागू किया जा रहा। अनुदान के बदले लोन आधारित शिक्षा व्यवस्था।

यह शिक्षा को अपने गिने-चुने कॉरपोरेट मित्रों के हाथों में देने की साजिश है। 4 साल का BA कौन करेगा? ऑनलाइन शिक्षा क्या निम्न वर्ग ले पाएगा?

सार्वजनिक शिक्षा को बचाने की लड़ाई में आइसा एक चुनौती के रूप में सामने आई है। देश के तमाम विश्वविद्यालयों में कन्वेंशन, छात्र पार्लियामेंट आदि के माध्यम से देश के युवाओं को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहे। सार्वजनिक शिक्षा बचाने के संघर्ष को जनसंघर्ष में तब्दील करना होगा। क्योंकि यह सवाल पूरे समाज का है। शिक्षा को मुख्यधारा का राजनीतिक सवाल बनाने की जरूरत आज हमारे सामने है।

इतिहासविद धर्मेंद्र कुंवर ने मौके पर नई शिक्षा नीति को शिक्षा का भगवाकरण करार दिया। उन्होंने इसे इतिहास की सही समझ के खिलाफ बताते हुए देश के लिए विनाशकारी परिणाम देने वाला बताया।

इनौस के राज्य सह सचिव सन्दीप चौधरी ने समाज में व्याप्त सामजिक असमानता को रेखांकित करते हुए कहा कि शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव के मामले रोज-ब-रोज देखने को मिलते हैं, वैसी स्थिति में सामाजिक न्याय का विलोपीकरण अन्यायपूर्ण है।

आइसा मिथिला विवि के संयोजक सुनील कुमार ने विश्वविद्यालय के स्तर पर नई शिक्षा नीति के प्रभावों को छात्रों-नौजवानों के सामने लाया।

कार्यक्रम का संचालन आइसा जिला सचिव मयंक कुमार ने किया।

इस अवसर पर छात्र नेता प्रिंस राज, लोकेश राज, रौशन कुमार, राजू कर्ण, सबा रौशनी, ओणम, मो.फरमान, शाहबुद्दीन, विकास, ललन, नागमणि के साथ भाकपा माले दरभंगा के जिला सचिव बैद्यनाथ यादव, राज्य कमिटी सदस्य अभिषेक कुमार, भूषण मंडल, देवेंद्र कुमार, रंजीत राम, चर्चित युवा कवि मनोज कु.झा आदि उपस्थित रहे।