आज विश्व आर्द्रभूमि दिवस के अवसर पर स्नातकोत्तर जन्तुविज्ञान विभाग में एक व्याख्यान माला का आयोजन किया गया. मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिकुलपति महोदय प्रोफ. डॉली सिन्हा ने अपने सम्बोधन में इसकी महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पृथ्वी पर संतुलित पर्यावरण के लिए आर्द्रभूमि का संरक्षण बेहद ज़रूरी है. यह ना केवल जैव विविधता अपितु स्थानीय आर्थिक गतिविधियों का एक बेहद अहम श्रोत है. पिछले कई दशकों में शहरीकरण एवं आधुनिकरण के अंधी दौड़ ने इस आर्द्रभूमि को काफी नुक्सान पहुँचाया है. अतः इसका संरक्षण और इसके प्रति जनजागरण अब अतिआवश्यक होगया है. मुख्य संसाधन पुरुष के रूप में विषयवस्तु की विस्तृत चर्चा करते हुए प्रोफ. विद्यानाथ झा ने पावर पॉइंट की मदद से इस दिवस के इतिहास तथा प्रकृति संतुलन में इसकी भूमिका पर ज्ञानवर्धक प्रस्तुतीकरण किया. अपने बेहद रोचक व्याख्यान में उन्होंने भारत के कुल 48 चिन्हित आर्द्रभूमि स्थलों का वर्णन किया. साथ ही मिथिलांचल के कुशेश्वरस्थान में अपने शोध अनुभवों का वैज्ञानिक ब्यौरा भी दिया. उनके अनुसार सरकार प्रायोजित बांध निर्माण के कारण बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के क्षेत्रफल में लगभग तीन गुना तक वृद्धि हुई है और आर्द्रभूमि में जैविविद्धता को भारी नुक्सान पहुंचा है.

सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टिट्यूट, बर्रैकपोर (पश्चिम बंगाल) की डॉ. अर्चना सिन्हा ने राष्ट्रिय स्तर पर विभिन्न आर्द्रभूमि स्थलों का ज़िक्र करते हुए उन्हें संरक्षित करने के विशेष उपायों पर रौशनी डाली. अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान विभागाध्यक्ष प्रोफ. बी .एस .झा ने बीजभाषण प्रस्तुत किया. उन्होंने सभी चिन्हित स्थलों के अतिरिक्त कई अन्य आर्द्रभूमियों को भी सूचीबद्ध करने का सुझाव दिया. वरिष्ठ प्राचार्य प्रोफ. शिशिर कुमार वर्मा ने व्याख्यानमाला का संकलन प्रस्तुत करते हुए ऐसे आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला. सम्पूर्ण कार्यक्रम हाइब्रिड मोड (ऑफलाइन सह ऑनलाइन) में संचालित किया गया जिसके दौरान अनेक शिक्षक, शोधछात्र तथा स्नातकोत्तर छात्र- छात्राओं ने सक्रिय भागीदारी दिखाई. प्रोफ. एम् नेहाल ने रोचक ढंग से मंचसंचालन एवं स्वागत भाषण प्रस्तुत किया. धन्यवाद ज्ञापन प्रोफ. भवेश्वर सिंह द्वारा किया गया.