दरभंगा। विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेदिय जीवन एवं आहार शैली को अपनाकर कैंसर रोग होने से बचा जा सकता है। वर्तमान समय में अप्राकृतिक जीवन शैली एवं विरुद्ध आहार का सेवन करने से कैंसर का प्रसार तेजी से बढ़ा है। कैंसर में कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि करता है। शुरुआत में शरीर के एक ही अंग में बनने वाले खराब कोशिकाओं यानी कैंसर कोशिकाओं को पहले स्टेज का कैंसर और बाद में दूसरे अंग में प्रवेश करने पर इसे सेकेंडरी कैंसर कहते हैं। कैंसर सभी उम्र के लोगों को यहां तक भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है ।यह हमारे शरीर कि किसी भी अंग एवं धातु को प्रभावित कर सकता है। अधिकांश कैंसर किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है।
राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान के प्राचार्य प्रोफेसर दिनेश्वर प्रसाद ने बताया कि सुश्रुत संहिता में कैंसर को अर्बुद नाम से वर्णन प्राप्त होता है। शरीर में किसी भी प्रदेश में बढ़े हुए वातादि दोष ,मांस को दूषित करके गोल ,स्थिर ,अल्पपीडा़ युक्त, बड़ा , गंभीर धातु में फैला हुआ ,धीरे-धीरे बढ़ने वाला, कभी नहीं पकने वाला और मांस के वृद्धि से युक्त ऐसे शोफ रोग को अर्बुद कहते हैं। यह वात, पित्त एवं कफ से तथा मांस और मेद के दूषित होने से उत्पन्न होता है तथा ग्रंथि के समान इसके लक्षण होते है ।इस रोग का सही समय पर पता नहीं लगने पर जान लेवा हो जाता है। इसलिए जरूरी है कि कैंसर होने से ही रोका जाए और इसके लिए अपनी आहार -विहार में कुछ ऐसी आयुर्वेदिक औषधियों को रोज शामिल करें जो कैंसर के खतरे को कम करती है। वहीं अंग्रेजी दवाओं के सेवन से दूसरे कई कॉम्प्लिकेशन सामने आ जाते हैं जिसके प्रभाव को आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन से कम कर सकते हैं ।
कैंसर उत्पन्न करने वाले कारणों को कार्सिनोजन कहा जाता है। इनके संपर्क में बार-बार एवं लंबे समय तक रहने से कैंसर को उत्पन्न करने में ये सहायक होते हैं। धूम्रपान , तम्बाकू सेवन,रेडिएशन, किटनाशक रसायनों का प्रयोग, फास्ट फूड, जंग फूड एवं वायु प्रदूषण आदि कैंसर रोग उत्पन्न करने में सहायक है ।डॉ प्रसाद ने एंटीकार्सिनोजेनिक, एंटी ऑक्सीडेंट आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इन औषधियों का सेवन करने से कैंसर का रोकथाम किया जा सकता है। आमला चूर्ण में अमला स्वरस से तैयार की गई औषधि के अंदर एंटीऑक्सीडेंट गुण ज्यादा मात्रा में पाया जाता है ।आजकल आमलकी चूर्ण ,आमलकी रसायन , च्यवनप्राश,भल्लातकासव, त्रिफला चूर्ण ,गिलोय चूर्ण, लताकरंज,
सारीवा , हल्दी, अश्वगंधा , कांचनार गुग्गुलु आदि आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग कैंसर के बचाव एवं इलाज के रूप में किया जा रहा है। जिन लोगों के परिवार में कैंसर का इतिहास पाया जाता है उन लोगों को उपरोक्त आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करने की सलाह दी जाती है । समय – समय पर ऋतु के अनुसार पंचकर्म चिकित्सा के माध्यम से शरीर का संशोधन कराकर कैंसर रोग से बचाव किया जा सकता है।
भारतीय महिलाओं द्वारा पाश्चात्य जीवन शैली को तेजी से अपनाने के कारण बढ़ता हुआ तनाव ग्रस्त जीवन, मोटापा , समय से पूर्व प्यूबर्टी होना , ब्रेस्ट कैंसर का कारण बनता जा रहा है। प्रसव के उपरांत शिशु दुग्धपान के प्रति उपेक्षा का भाव एवं दुग्धपान के प्रति सम्यक जानकारी के अभाव में ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ा है। व्यायाम की कमी, सेडिमेंट्री जॉब, वसा युक्त भोजन के कारण मोटापा का बढ़ना साथ ही साथ तंबाकू, धूम्रपान, शराब का सेवन ब्रेस्ट कैंसर को बढ़ावा देता है।
कैंसर के प्रसार को रोकने हेतु हमें आयुर्वेदिय जीवन एवं आहार शैली को अपनाना होगा।
महाविद्यालय परिसर में चलायें जा रहें ज्योतिष चिकित्सा के प्रभारी डॉ दिनेश कुमार ने बताया कि ज्योतिष में कैंसर जैसी भयानक और अति कष्टकारी रोग के लिए मुख्यतः राहु ,केतु तथा शनि जैसे अत्यंत अशुभ एवं पापी ग्रहों को जिम्मेदार माना जाता है। ज्योतिष में केतु को गुप्त रोग का कारक, शनि रोग को अधिक समय तक बनाए रखने एवं राहु रोग को वीभत्स बनाने का मुख्य कारण माना गया है। इसलिए किसी विशेष भाव, राशि तथा अंग विशेष के प्रतिनिधि ग्रह एक साथ इन तीनों ग्रहों से पीड़ित हो , तो कैंसर जैसी अति गंभीर बीमारियां जन्म लेती है। अगर ज्योतिष विश्लेषण से किसी व्यक्ति में कैंसर का निदान हो तो यथाशीघ्र अर्थात् रोग की शुरुआती अवस्था में ही उस अंग विशेष अर्थात् जन्म कुंडली के पीड़ित भाव, राशि तथा ग्रह को शुभत्व प्रभाव प्रदान करने के लिए उपयुक्त रत्न धारण करना चाहिए एवं अशुभ ग्रहों की शांति के लिए उनसे संबंधित वस्तुओं का दान- पुण्य एवं मंत्र जाप करना चाहिए। कैंसर जैसे भयानक रोग को नियंत्रण करने में रत्न, धातुएं और ज्योतिष आधारित कई तरह के उपाय काफी मददगार सिद्ध होते हैं।