*”समतामूलक समाज के प्रतिमूर्ति संत कवि रविदास” विषयक ऑनलाइन कार्यक्रम में 50 से अधिक व्यक्तियों की हुई सहभागिता*
*कवि रविदास अपनी प्रेमपूर्ण वाणी से संपूर्ण मानवता को सदा आलोकित करते रहेंगे- प्रो प्रभाकर*
*संत रविदास के कर्म और प्रेम के सिद्धांत से समतामूलक समाज की स्थापना संभव- प्रो अजीत*
*समतामूलक समाज के स्वप्नद्रष्टा व मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का सितारा रविदास हमारे प्रेरणास्रोत- डा आलोक*
हिन्दी साहित्य के विकास हेतु कृत संकल्पित अंतरराष्ट्रीय संगठन हिन्दी साहित्य भारती की दरभंगा इकाई के तत्वावधान में रविदास जयंती की पूर्व संध्या पर “समतामूलक समाज के प्रतिमूर्ति संत कवि रविदास” विषयक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किलाघाट, दरभंगा में किया गया। कार्यक्रम में उद्घाटन कर्ता के रूप में मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष प्रोफेसर प्रभाकर पाठक, मुख्य अतिथि के रूप में हिन्दी साहित्य भारती के बिही प्रदेश महामंत्री प्रो अजीत कुमार सिंह, मुख्य वक्ता के रूप में सीएम कॉलेज, दरभंगा के हिन्दी- प्राध्यापक डा आलोक कुमार राय, सम्मानित अतिथि के रूप में हिन्दी साहित्य भारती के प्रदेश संगठन महामंत्री डॉ सतीश चंद्र भगत, विशिष्ट अतिथि के रूप में अवकाश प्राप्त ई शशिनाथ दास, विशिष्ट वक्ता के रूप में बी एम कॉलेज, रहिका के हिन्दी विभागाध्यक्ष डा संतोष कुमार, इग्नू के सहायक समन्वयक डा शैलेन्द्र श्रीवास्तव, डा शिशिर कुमार झा व डा कीर्ति चौरसिया, डा सुमित कोले, डा अरुण कुमार, डा प्रेम कुमारी,आरती, कृष्ण मोहन, देवलाल, देवचंद्र, कार्यकारिणी सदस्य सतीशचंद्र पाठक, निधि, धर्म प्रकाश, शम्भू मंडल, अमरजीत, युगल सर्राफ, जूही, आकाश, उमाशंकर, त्रिलोकनाथ, धर्म प्रकाश, श्याम, नीतू, अजीत मिश्रा, श्याम, मो जफर, अमन, विनीता, नलिन, रुचि, अनिल, रंजू, आहिलरजा खान, दयानंद, कृष्णा पासवान सहित 60 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया। उपस्थित व्यक्तियों ने संत कवि रविदास के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए प्रो प्रभाकर पाठक ने कहा कि आज समाज में समरसता की सर्वाधिक जरूरत है। कवि रविदास अपनी प्रेमपूर्ण वाणी से संपूर्ण मानवता को सदा आलोकित करते रहेंगे। रविदास काव्य रूपी यश से सदैव हमें प्रेरित एवं मार्गदर्शन करते रहेंगे। रविदास में ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ उक्ति को चरितार्थ किया था।
अपने संबोधन में मुख्य अतिथि प्रो अजीत कुमार सिंह ने कहा कि संत रविदास द्वारा प्रदर्शित कर्म एवं प्रेम के सिद्धांत से समतामूलक समाज की स्थापना संभव है। रविदास मन की पवित्रता पर विशेष बल देते थे। वे जाति, संप्रदाय, ऊंच-नीच की भावना को मिटाना चाहते थे। उन्होंने कर्म को ही पूजा मानकर समतामूलक समाज की स्थापना में अत्यधिक योगदान किया। उन्होंने बताया कि हिंदी साहित्य भारती अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदी को राष्ट्रभाषा का वैधानिक दर्जा दिलाना है। यह भारतीय संस्कृति, राष्ट्रप्रेम, संस्कृत- हिंदी सहित अन्य भाषाओं के प्रचार- प्रसार हेतु कार्य करता है।
मुख्य वक्ता डा आलोक कुमार राय ने कहा कि समतामूलक समाज के स्वप्नद्रष्टा एवं मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के सितारे रविदास हमारे प्रेरणास्रोत हैं। रविदास निरंकारी संत थे, जिन्होंने कर्म से ईश्वरप्राप्ति का मार्ग बताया।
ई शशिनाथ दास ने कहा कि संत रविदास ने अपने कर्म एवं आचरण से दलित समाज को समाज के मुख्यधारा में लाया। वे वैदिक धर्म- संस्कृति तथा राष्ट्रधर्म को महत्वपूर्ण मानते थे।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रदेश संगठन महामंत्री डा सतीश चंद्र भगत ने कहा कि रविदास 14 वीं सदी के महान संत कवि एवं कर्म के पुजारी थे। उन्होंने गार्हस्थ्य आश्रम में रहते हुए संतधर्म का निर्वाह कर समाज को समता का संदेश प्रदान किया।
विशिष्ट वक्ता के रूप में डा संतोष कुमार ने कहा कि रविदास महान विचारक एवं समाजवादी प्रनेता थे, जिन्हें नवजागरण का दूत कहा जाता है। उन्होंने दलित समाज का नेतृत्व किया और लोगों को समानता का प्रमुख सिद्धांत दिया। वे आध्यात्मिक गुरु भी हैं जो हिंदी सहित अन्य भाषाओं के भी ज्ञाता थे।
अध्यक्षीय संबोधन में हिन्दी साहित्य भारती, दरभंगा के अध्यक्ष डा आर एन चौरसिया ने कहा कि रविदास सतगुरु, महान कवि तथा भक्तिमार्ग के महापुरुष थे, जिन्होंने परमात्मा को जाति- धर्म, वर्ग- संप्रदाय व रंग- रूप आदि से परे बताया। वे जन्म से सब को समान मानते थे तथा ईश्वर भक्ति का अधिकार सब को प्रदान किया। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक भेदभाव पर करारा प्रहार कर परमात्मा को सर्वव्यापी एवं सर्वसुलभ एवं सभी के अंतरात्मा में विराजमान बताया। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं, जिन्हें अपनाकर हम समाज को नैतिक पतन से बचाकर समतामूलक समाज की स्थापना करने में सफल हो सकते हैं।
राजकुमार गणेशन के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत डा शैलेंद्र श्रीवास्तव ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डा शिशिर कुमार झा ने किया।