#MNN@24X7 हनुमान जन्मोत्सव एक हिन्दू पर्व है जिसे चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन हनुमानजी का जन्म हुआ था। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि महाबली हनुमान चिरंजीवी है। कहने का मतलब यह है कि वे त्रेता युग से अभी तक जीवित है और श्री राम जी का नाम जाप कर रहे हैं। साथ ही हनुमान जी के जन्मदिन को हनुमान जयंती नहीं हनुमान जन्मोत्सव कहा जाता है, यही उचित भी है, क्योंकि जयंती उसकी मनाई जाती है, जिसकी मृत्यु हो चुकी है परंतु महाबली हनुमान जी अमर है, युगों -युगों से जीते आ रहे है। इसीलिए सभी भक्तगण से निवेदन है कि हनुमान जी के जन्म दिन को हनुमान जयंती न कह करके हनुमान जन्मोत्सव कहें।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि हनुमान जी रुद्रावतार हैं. उनकी पूजा करने से भगवान शिव और प्रभु राम दोनों ही प्रसन्न होते हैं. हनुमान जी का जन्म भगवान राम की सेवा करने के लिए हुआ और उन्होंने श्रीराम नाम की महिमा से पूरे संसार को अवगत कराया. हनुमान जयंती के अवसर पर वीर बजरंगबली की पूजा की जाती है. उनको प्रसन्न करने के लिए प्रिय भोग, फूल या अन्य सामग्री अर्पित करते हैं. हनुमान जी के आशीर्वाद से बल, बुद्धि, विद्या आदि की प्राप्ति होती है.
रामभक्त हनुमान को हम ना जाने कितने ही नामों से पूजते हैं। कोई उन्हें पवनपुत्र कहता है तो कोई महावीर, कोई अंजनीपुत्र बुलाता है तो कोई कपीश नाम से उनकी अराधना करता है। भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए, जिनमें से सर्वश्रेष्ठ हैं महावीर हनुमान। शिवपुराण के अनुसार त्रेतायुग में दुष्टों का संहार करने के लिए हनुमान ने शिव के वीर्य से जन्म लिया था।
जबकि हनुमान जी के जन्म दिवस के विषय में एक अन्य कथा भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि पुत्रनेमेश्टी यज्ञ के उपरांत जब अग्नि देव से मिली खीर, राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को बांट दी, तभी उसी समय कैकेयी के हाथ से एक चील ने झपट्टा मारकर खीर ले वापस आसमान में उड गई. उस खीर को लेकर वह चील उडते-उडते जब देवी अंजना के आश्रम के ऊपर से जा रही थी कि तभी,उसी क्षण माता अंजना की दृष्टि भी ऊपर की ओर ही देख रही थीं.जिस कारण से माता अंजना का मुंह हल्का खुला होने के कारण खीर सीथे उसके मुंह में आकर गिर गया और अनायास ही उन्होंने उस खीर को खा लिया. जिससे उनके गर्भ से शिवजी के अवतार महाबली हनुमान जी ने जन्म लिया. चैत्र मास की पुन्य तिथि पूर्णिमा के दिन, जनेऊ धारण किये हुए हनुमान जी का जन्म हुआ था.
जबकि शिवपुराण में हुए उल्लेख के अनुसार समुद्रमंथन के बाद देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत का बंटवारा करने के लिए विष्णु जी ने मोहिनी का आकर्षक रूप धारण किया था। मोहिनी को देखकर कामातुर शिव ने अपनी लीला रचते हुए वीर्यपात किया जिसे सप्तऋषियों ने सही समय का इंतजार करते हुए संग्रहिहित कर लिया था। उसके बाद जब वक्त आया तब सप्तऋषियों ने शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से उनके गर्भ तक पहुंचाया। शिव के इसी वीर्य से अत्यंत पराक्रमी और तेजस्वी बालक हनुमान का जन्म हुआ था।
बाल्यकाल में हनुमान वाल्मिकी रामायण के अनुसार हनुमान अपने बाल्यकाल में बेहद शरारती थी। एक बार सूर्य को फल समझकर उसे खाने दौड़े तो घबराकर देवराज इन्द्र ने उनपर वार किया। इन्द्र के वार से हनुमान बेहोश हो गए, जिसे देखकर वायु देव अत्याधिक क्रोधित हो उठे। उन्होंने समस्त संसार को वायु विहीन कर दिया। चरों ओर त्राहिमाम मच गया। तब स्वयं ब्रह्मा ने आकर हनुमान को स्पर्श किया और हनुमान जीवित हो उठे। उस समय स भी देवतागण हनुमान के पास आए और उन्हें भिन्न-भिन्न वरदान दिए।
सूर्यदेव का वरदान सूर्यदेव द्वारा दिए गए वरदान की वजह से ही हनुमान सर्वशक्तिमान बने। सूर्यदेव ने उन्हें अपने तेज का सौवा भाग प्रदान किया और साथ ही यह भी कहा कि जब यह बालक बड़ा हो जाएगा तब स्वयं उन्हीं के द्वारा ही शास्त्रों का ज्ञान भी दिया जाएगा। सूर्य देव ने उन्हें एक अच्छा वक्ता और अद्भुत व्यक्तित्व का स्वामी भी बनाया। सूर्यदेव ने पवनपुत्र को नौ विद्याओं का ज्ञान भी दिया था।
यमराज का वरदान यमराज ने हनुमान को यह वरदान दिया था कि वह उनके दंड से मुक्त रहेंगे और साथ ही वह कभी यम के प्रकोप के भागी भी नहीं बनेंगे।
कुबेर का वरदान कुबेर ने हनुमान जी को यह वरदान दिया था कि युद्ध में कुबेर की गदा भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। कुबेर ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों के प्रभाव से हनुमान को मुक्त कर दिया।
भोलेनाथ का वरदान महावीर का जन्म शिव के ही वीर्य से हुआ था। महादेव ने कपीश को यह वरदान दिया कि किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु नहीं हो सकती।
विश्वकर्मा का वरदान देवशिल्पी विश्वकर्मा ने हनुमान को ऐसी शक्ति प्रदान की जिसकी वजह से विश्वकर्मा द्वारा निर्मित किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु नहीं हो पाएगी, साथ ही हनुमान को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्रदान किया।
देवराज इन्द्र का वरदान इन्द्र देव ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि उनका वज्र भी महावीर को चोट नहीं पहुंचा पाएगा। इन्द्र देव द्वारा ही हनुमान की हनु खंडित हुई थी, इसलिए इन्द्र ने ही उन्हें हनुमान नाम प्रदान किया।
वरुण देव का वरदान वरुण देव ने हनुमान को दस लाख वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया। वरुण देव ने कहा कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने के बाद भी जल की वजह से उनकी मृत्यु नहीं होगी।
ब्रह्मा का वरदान हनुमान को अचेत अवस्था से मुक्त करने वाले परमपिता ब्रह्मा ने भी हनुमान को धर्मात्मा,परमज्ञानी होने का वरदान दिया। साथ ही ब्रह्मा जी ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि वह हर प्रकार के ब्रह्मदंडों से मुक्त होंगे और अपनी इच्छानुसार गति और वेश धारण कर पाएंगे।
तपस्या में लीन मुनी पौराणिक कथाओं के अनुसार सभी देवी-देवताओं ने हनुमान जी को अपनी शक्तियां और वरदान प्रदान किए थे, जिसके परिणामस्वरूप पवनपुत्र बेरोकटोक घूमने लगे थे। उनकी शैतानियों के कारण सभी ऋषि-मुनी परेशान हो गए थे। वे तपस्या में लीन मुनियों को भी तंग किया करते थे।
शक्तियों की याद जिसकी वजह से एक बार अंगिरा और भृगुवंश के मुनियों ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि वे अपनी सभी शक्तियां और बल भूल जाएं और इसका आभास उन्हें तभी हो, जब कोई उन्हें याद दिलाए।
समुद्र लांघना इस घटना के बाद हनुमान बिल्कुल सामान्य जीवन जीने लगे। उन्हें अपनी कोई भी शक्ति स्मरण नहीं थी। भगवान राम से मुलाकात के बाद जब सीता को खोजने के लिए लंका जाना था, तब समुद्र लांघने के समय स्वयं प्रभु राम ने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था।
माता सीता का वरदान जब सीता की खोज करते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे तब बड़ी मशक्कत करने के बाद आखिरकार उन्हें मां सीता दिखाई दीं। जब हनुमान जी ने सीता मां को अपना परिचय दिया तब सीता मां उनसे अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्हंं अमरता के साथ यह भी वरदान दिया कि वे हर युग में राम के साथ रहकर उनके भक्तों की रक्षा करेंगे।
कलयुग में हनुमान की अराधना हनुमान चालीसा की पंक्तियां “अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता” का अर्थ है कि मां देवी सीता ने महावीर को ऐसा वरदान प्राप्त हुआ जिसके अनुसार कलयुग में भी वह किसी को भी आठ सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर सकते हैं। आज भी यह माना जाता है कि जहां भी रामायण का गान होता है, हनुमान जी वहां अदृश्य रूप में उपस्थित होते हैं।
भगवान राम का वरदान रावण की मृत्यु और लंका विजय करने के बाद भगवान राम ने हनुमान को यह वरदान दिया था “जब तक इस संसार में मेरी कथा प्रचलित रहेगी, तब तक आपके शरीर में भी प्राण रहेंगे और आपकी कीर्ति भी अमिट रहेगी